Tags:
Replies are closed for this discussion.
रामू के सुबह आते ही साहिब ने पूछा "कल क्यों नहीं आया ?"
तब रामू ने कहा,”मैं कल इस लिए नहीं आया,घर वाली का आपरेशन करवाना था" ।
“मगर तुम तो उस रोज कह रहे थे,दो बेटियाँ हैं,और आप की छोटी अभी छे महीने की है, ठहर जाता”, साहिब ने कहा
“तो फिर एक और..........” रामू के ने धीरे से कहा.
फिर साहिब ने पूछा घर वाली कैसे मान गई, मैंने कहा, “हमारे साहिब की भी दो बेटियाँ हैं, तब उस ने कहा “हम भी दो बेटियाँ रखेंगे,और इनको पढ़ा लिखा कर इनका पालन पोषण तो हमें इस कमाई से ही करना है .......”. ।
"पर साहिब जी, अगले महीने गाँव जा रहें हैं, छुटियाँ चाहिए, इन बेटियों के मुंडन कराने है" रामू ने कहा
"पर अभी तो तुम कह रहे थे, तेरी घर वाली ने ये फैसला इस लिया कि साहिब की दो बेटियां हैं"।
“क्या तुम ने ये नहीं बताया कि साहिब तो ऐसे रीति रिवाज़ को भी नहीं मानते, जिन में गरीब का इतना खर्चा हो जाता हो ” ।
“मगर हम लोगों तो ये करना पड़ता है,घर वाली कह रही थी “मुझे तो उन से सदा मिलना है” अगर हमने ये नही किया तो घर के लोग क्या कहेंगे, कुछ देना पड़ना था बहनों को इस लिए यहाँ पर आ कि मुंडन नहीं कराए” नाई और गाँव के लोग अलग नराज़ हो जाएँगे “ रामू ने कहा।
“ऐसे तो भूचाल आ जायेगा हमारे गाँव में साहिब जी, जैसे आप कहते हैं कि हम बेटियों के मुंडन न कराएं, चाहे ऐसा करने में बीस हजार का खर्चा हो जाएगा ” रामू ने कहा
“आना तो चाहिए, ऐसा भूचाल,तभी हिलेगी जर्जरी बुनियाद पुराने समाज की,नए समाज का होगा निर्माण ” , साहिब ये कहते हुए अख़बार पढने लगे और रामू ये सुन, सिर हिला काम में लग गया ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
आदरणीय मोहन सर, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
साहब भी कह कर अख़बार पढने लगे, रामू भी सर हिला कर काम में लग गया, आपके गूढ़ विचारों को दर्शाती इस रचना हेतु बधाई स्वीकार करें|
जब पुराना खत्म होता है व नया अपना स्थान लेता है तो भूचाल तो आता ही है क्योंकि परिवर्तन के लिए कोई जल्दी से तैयार नहीं होता। सुन्दर कथा आ. मोहन बेगोवाला जी।
सब कुछ गड्ड मड्ड हो गया - है कौन किस से क्या कह रहा है, मेरे ऊपर से निकल गया I ऐसी लचर सम्प्रेषण वाली रचना पोस्ट करने का क्या फायदा बेगोवाल साहिब ?
अगर आप इस को अपने मापदंड में नहीं पाते तो कृपया जल्दी से इसे remove कर दीजिए , मेहरबानी होगी
मोहन बेगोवाल साहिब, यहाँ मेरे मापदंड नहीं चलते, बात केवल विधा सम्मत ही की जाती है I मैंने जो भी कहा पूरी ज़िम्मेवारी के साथ कहा है I इस लघुकथा में दो पात्रों का वार्तालाप है, मगर इन्वर्टेड कौमास सही तरीके से नहीं लगाए गए जिसकी वजह से स्पष्टता कम हो गई I फिर रचना की यह पंक्ति देखिये :
//फिर साहिब ने पूछा घर वाली कैसे मान गई, मैंने कहा, “हमारे साहिब की भी दो बेटियाँ हैं, तब उस ने कहा “हम भी दो बेटियाँ रखेंगे,और इनको पढ़ा लिखा कर इनका पालन पोषण तो हमें इस कमाई से ही करना है .......”. ।//
अब उन दोनों के इलावा ये तीसरा "मैं" कौन ही ?
आदरणीय बेगोवाल जी, वार्तालाप का ताना बाना कुछ ऐसा उलझा हुआ है कि कथा संप्रेषणीय नहीं बन पाई और कथा में निहित संदेश उभर कर सामने नहीं आ पाया । कथा को यदि थोड़ी और चुस्ती से व उद्धरण चिह्नों के सही प्रयोग से कहा जाता तो कथा प्रभावशाली बन सकती थी । सादर
लगुक्था में ये मेरी दूसरी कोशिश थी, मुझे लगा के जो रचना एक खास स्तर तक की नहीं होती उसे हटा देना चाहिय , मेने एक बार फिर लिखने की कोशिश की है, कृप्या राए देना , क्या मुझे इस विधा में हाथ अजमाना चाहिए , मेहरबानी होगी
रामू के सुबह आते ही साहिब ने पूछा "कल क्यों नहीं आया ?"
रामू ने कहा,”घर वाली का आपरेशन करवाना था" ।
“मगर तुम तो उस दिन कह रहे थे,दो बेटियाँ हैं,और आप की छोटी बिटिया अभी छे महीने की है, ठहर जाना था ”, साहिब ने रामू से कहा
“ तो भगवान की फिर मेहर हो जानी थी” रामू ने धीरे से खुद को कहा.
फिर साहिब ने पूछा, बता तेरी घर वाली कैसे मान गई, चाहती नहीं थी कि उसकी गोद में भी बेटा खेले
नहीं जब मैंने कहा, “हमारे साहिब की भी दो बेटियाँ हैं,
तब मेरी घर वाली ने कहा “हम भी ये दो बेटियाँ ही रखेंगे,और अच्छा पालन पोषण करके पढ़ाए लिखायंगे, अपनी कमाई जितनी है ये ही पल जाएँ तो.......।
अगले ही पल रामू ने कहा,साहिब जी, अगले महीने गाँव जा रहें हैं, छुटियाँ चाहिए, इन बेटियों के मुंडन कराने है"
"पर अभी तो रामू तुम कह रहे थे, तेरी घर वाली ने ये फैसला इस लिया कि साहिब की दो बेटियां हैं तो हम भी दो बेटियां रखेंगे।
“क्या तुम ने घर वाली को ये नहीं बताया कि साहिब तो ऐसे रीति रिवाज़ को भी नहीं मानते, जिस में गरीब का घर लुट के बजार ले जाए ” ।
हाँ, मगर हम लोगों को तो ये करना पड़ता है”, रामू ने सिर झुकाते हुए कहा ।
साहिब जी, मेरी घर वाली कह रही थी “बातें तो मुझे सुननी होगी, आप को कोई कुछ थोडा कहेगा, इसी इंतजार में तो सभी बहनें, नाई और गाँव के लोग रहते हैं, कुछ को खाने को मिलेगा और कुछ के हाथ में नगदी व् कपड़े आएंगे “ रामू ने साहिब की तरफ देखते हुए कहा।
“अगर बेटियों के मुंडन नहीं कराएँगे तो हमारे गाँव में तो भूचाल आ जायेगा” साहिब जी, ऐसा करने में बीस हजार का खर्चा भी तो आयेगा, पर ये तो......". रामू बोला ।
साहिब के ये शब्द भी रामू के कानों पे पड़े, “आना तो चाहिए, ऐसा भूचाल,तभी हिलेगी जर्जरी बुनियाद गले सड़े समाज की,नए समाज का तभी निर्माण होगा ” , साहिब ये कहते हुए अख़बार पढने लगे और रामू सिर हिला काम में लग गया ।
यदि आप इस विधा में खुद को सहज पाते हैं, तो आपको अवश्य प्रयास करना चाहिए। लेकिन ऐसा प्रयास पूरी तैयारी करके किया जाये तो बेहतर होगा।
सड़े गले रूढ़िवादी ढकोसलों की बुनियाद का खत्म होना ही अच्छा .....लघु कथा का सन्देश बहुत अच्छा आ० मोहन बेगोवाल जी | आप लघु कथा तेवर और कलेवर चेप्टर अवश्य पढ़ें तथा प्रयास करे रहें अवश्य बेहतर कर सकेंगे |बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |