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थोडा समेटने का हुनर तो अभी सीखना है. कोशिश जारी रहेगी. आपका शुक्रिया वीरेंदर वीर साहब.
बहुत खूब जनाब इमरान साहब। बड़ी ख़ूबसूरत लघुकथा हुई है। दिली दाद कुबूल कीजिए।
अशरफ बेटा संस्थापक सदस्य किसी संस्था की बुनियाद में लगे पत्थर की तरह होता है. तुम भी नींव के पत्थर बनकर रहो. तुमसे इमारत की मज़बूती रहेगी. तुम दिखाई देने की ख्वाहिश मत पालो.' प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है बुनियाद के पत्थर दीखते नहीं पर ईमारत की मजबूती को दर्शाते हैं... सादर!
एक अच्छी सीख अच्छा सन्देश देती लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई आ० इमरान खान जी
सुन्दर लघु कथा के लिए बधाई स्वीकार करे इमरान खान जी. आप की लिखने की शैली अच्छी है.
पर नींव चाहे नजर आये या न ,पर इस के पथ्थर से ही इमारत निर्भर करती है
संस्थापक सदस्य नीव के पठार की तरह होता है जिस पर मजबूत इमारत टिकी होती है - वाह इन पंक्तियों ने कहानी का सर कह दिया | बहुत बहुत बधाई श्री इमरान खान भाई
वाह वाह वाह - क्या गज़ब की लघुकथा कही है भाई वीर मेहता जी I नफरत की बुनियाद के बीज कैसे डाले गए, बहुत सुंदरता से उसका खुलासा किया है I इस सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई हाज़िर है I
इस मंच पर केवल दो शब्द की टिप्पणी करना वर्जित है परन्तु मेरे पास तो 'वाह' और 'आह' के सिवाए और शब्द ही नहीं है आदरणीय वीर भाई जिससे मैं आपकी इस अनमोल कृति को सराह सकूं । लघुकथा के बारें में कहा जाता है कि इसकी कसूती लघुता, तीक्ष्णता, लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, कलात्मकता, गहनता, तेवर तथा व्यंजना है, यह सब आपकी लघुकथा में सहजे ही झलकता है । प्रस्तुत लघुकथा की तन-बना इतना कसा व सुगठित है कि उसमें से बाल भर के निकलने को भी रिक्त स्थान नहीं छाेड़ा आपने । यह इस आयोजन की अब तक की सर्वश्रेष्ठ कथा है। आपको हृदय से शुभकामनाएं निवेदित है आदरणीय वीरेन्द्र वीर मेहता भाई जी ।
आदरणीय वीरेंदर जी बहुत शानदार लघुकथा हुई है. //.....इस गुनाह की बुनियाद तो उसी दिन पड़ गयी थी जिस दिन पहली बार मेरी गुलेल से जख्मी परिंदे की तड़प पर मेरी खुशी में शामिल हो आपने मेरी पीठ थपथपाई थी।// हिंसा के बीज कहाँ से उपजे इसे बड़े सधे ढंग से शाब्दिक किया गया है. हार्दिक बधाई इस लघुकथा की प्रस्तुति....
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