"घाट पर ठहराव कहाँ" - लघुकथा संग्रह,
लेखिका - सुश्री कांता रॉय
प्रकाशक - समय साक्ष्य, देहरादून,
मूल्य : १५०/= रुपये (जन संस्करण), २०० रुपये (पुस्तकालय संस्करण)
ISBN NO.978-81-86810-31-5
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मेरे जैसे नवांकुर की पहली पुस्तक पर , आप जैसे वरिष्ठजन के हाथों इतनी सुंदर मार्गदर्शनयुक्त समीक्षा मेरे लिए अनमोल है ।
मै कमियों को दिल से स्वीकार करती हूँ और आगे के लेखन और प्रकाशन के लिए सदा सचेत रहने का प्रयास करूँगी ।
किसी भी नवांकुर की पहली पुस्तक की समीक्षा इतनी आसान कार्य नहीं होता है। लेकिन हमारे सर जी ने कब आसान रास्ता चुना है?
आपकी इस समीक्षा ने साबित किया है कि वरिष्ठजनों में अभिभावकीय भाव से ही नवांकुरों के लेखन को सम्बल और सही तराश मिलती है ।
मेरे जैसे नवांकुरों के लेखन के सम्बल है आप । आपने लघुकथा लेखन को एक विस्तार दिया है ,जो किसी की सोच से परे था ,आपने वो काम किया है । हजारों में लोग प्रेरित हुए है हिन्दी साहित्य की ओर लघुकथा-लेखन के माध्यम से । एक नई क्रांति का संचार हुआ है आपके द्वारा । ये हिन्दी साहित्य में पहले कभी इतने व्यापक पैमाने पर किसी भी विधा के लिए नहीं हुआ था । आपको हिन्दी साहित्य में इस प्रवाह के लिए , इस नव संचार के लिए सदा याद किया जायेगा ।
कितनी कृतज्ञ हूँ , मै बयान नहीं कर सकती हूँ इसे शब्दों में । ये मेरे जीवन का सबसे अनमोल और अनुपम उपहार है ।
बारम्बार नमन आपको सर जी ।
एक एक पंक्ति पढने और समझने योग्य है, दो-तीन बार पढने के बाद भी लगता है अभी पूरा पढ़ नहीं पाया|
"घाट पर ठहराव कहाँ" जैसे लघुकथा संग्रह की विभिन्न श्रेणियों की लघुकथाओं पर आदरणीय योगराज जी सर, (मेरी राय में) आपकी प्रतिक्रिया और समीक्षा वास्तव में केवल नवांकुरों के लिये ही नहीं वरन स्थापित लेखकों के लिये भी मार्गदर्शन हेतु मील का पत्थर हैं|
नमन आदरणीय सर !!
हार्दिक बधाई आदरणीय कान्ता जी!आपकी पुस्तक "घाट पर ठहराव कहॉ"मैंने भी पढी!कुछ रचनायें बहुत सुन्दर हैं!हम लोग लगभग एक ही साथ इस क्षेत्र से "नया लेखन नये दस्तखत" के माध्यम से जुडे हैं!लेकिन कांता जी हम सबको पीछे छोड गयीं!इसका मुख्य श्रेय कांता जी की मेहनत,परिश्रम,लगन,अनुशासन और दूरदृष्टि को जाता है!इसके अलावा एक सक्षम मार्ग दर्शक का होना भी अनिवार्य है!और वह कार्य किया हमारे आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी ने! मुझे आश्चर्य होता है कान्ता जी की दिनचर्या के बारे में सुनकर!एक गृहणी, एक व्यवसायी,एक लेखिका,एक समाजसेविका,कई सारे ग्रुपों की सक्रिय सदस्य,कई ग्रुप की एड्मिन भी हैं!कैसे कर लेती हैं इतना सब कुछ!विश्वास ही नहीं होता!मगर दोस्तो, सफ़लता के आकाश को वही लोग छू पाते हैं जिनकी नज़र केवल और केवल अपने उद्देश्य या टार्गेट पर होती है!रात दिन एक करना पडता है!भूख,प्यास ,नींद सब गंवानी होती है!"नया लेखन नये दस्तखत" के सभी सदस्यों की तरफ़ से मैं आदरणीय कान्ता जी को बधाई देता हूं!हम सभी को आदरणीय कांता जी की उपल्ब्धि पर गर्व है!सभी सदस्यों की ओर से मैं उनको और भी उज्ज्वल भविष्य के लिये शुभ कामनायें देता हूं!हम सबकी आशा है कि आदरणीय कान्ता जी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें! साथ ही ग्रुप और गुरु दौनों का नाम रौशन करें!
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, आपने प्रमाणित कर दिया कि आप लघुकथा और लघुकथाकारों के लिये अपना सर्वस्व प्रदान करने को सदैव तत्पर रहते हो!आपकी निष्ठा, आपकी विद्वता,आपके आदर्श,आपकी सहयोगिता को कोटि कोटि नमन!
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