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आदरणीय योगराजभाईसाहब, सकारात्मक सोच से एक परिवार ही नहीं, समाज और उससे ऊपर राष्ट्र भी मानसिक रूप से समृद्ध होता है. नकारात्मक दृष्टिकोण पूरे समाज को हतोत्साहित कर अकर्मण्य बना देता है. इस सूक्ति-भाव को आपकी लघुकथा ने क्या ही खूबसूरत तरीके से सामने रखा है. मालीकाका का ढांढस देना या आश्वस्त करना कहीं गहरे छू गया. कीचड़ के जमाव पर नहीं, उसमें कल को खिलने वाले कमल की संभावना को ध्यान में रखा जाता कर्म ’योगः कर्मषु कौशलम्’ को बरतने और अनुभव करने के आनन्द से आप्लावित कर देता है.
इस लघुकथा की भावदशा ने मुझे व्यक्तिगत तौर पर बहुत ही सुखी किया है, आदरणीय. बारम्बार बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ
वैसे, जौहड़ शब्द हमारी ओर अधिक प्रचलित शब्द नहीं है. अतः कथा पढ़ने के क्रम में इस शब्द को लेकर मैं अवश्य ही असहज था. लेकिन लेखन में यही अनुभवी और अभ्यासी कमाल हुआ करता है कि आंचलिक या अपारम्परिक शब्द भी प्रयुक्त होकर वाचन-प्रवाह को बहुआयामी बना देते हैं. यह शब्द लघुकथा के अंत तक न केवल समझा हुआ लगने लगा बल्कि अपनी उपादेयता से आश्वस्तकारी भी था. एक प्रभावी एवं सफल प्रस्तुति हेतु पुनः हार्दिक बधाइयाँ.
सादर
बहुत बढ़िया लघुकथा, सकारात्मक पहल से सदा विरोध के स्वर स्वयं ही दब जाते हैं।
क्या जवाब उनको----में शायद दें लिखना रह गया है।
प्रत्युत्तर को सार्थक करती कथा , बहुत बहुत बधाई आपको
जिस दिन इस कीचड़ में कमल खिल गए, तब इन सबकी ज़ुबानों पर ताले पड़ जाएंगे।" ये पंक्तियाँ प्रत्युत्तर विषय को सार्थक कर रही है | अर्थात नाक भौ सिकोड़ने वाले को करारा जवाब मिल जाएगा | सार्थक लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई आ. योगराज प्रभाकर जी साहब |
आदरणीय योगराज सर, कर्म पर विश्वास और उसकी महत्ता को दर्शाती शानदार लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
अस्वस्थ्यता के कारण संक्षिप्त टीप दे रहा हूँ. क्षमा चाहता हूँ. सादर
आदरणीय प्रधान संपादक जी, आपकी रचना के माध्यम से आज एक और अहम सीख मिली । आपके आलेख में लघुकथा के तीन मूल बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है कि - 1 क्या कहना है 2 कैसे कहना है 3 क्यों कहना है । अापकी इस अमूल्य कृति ने एक और बहुत बड़ी सीख दी है- वो ये है कि कहां कहना है । भैंस के आगे बीन बजाने का क्या फायदा ? मुझे पूर्ण आशा है कि आपके तालाब के 'कमल' इस संदेश को भली भांति समझ गए होंगे । प्रस्तुत लघुकथा न केवल उपसन्न प्रकश्न को पूर्णरूपेण परितुष्ट कर रही है बल्िक इस कथा की एक-एक पंक्ित अपने आप में एक सघन संदेश भी दे रही है । इस स्थविर प्रस्तुति हेतु अतीर्ण शुभकामनाएं । सादर
//आपके आलेख में लघुकथा के तीन मूल बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है कि - 1 क्या कहना है 2 कैसे कहना है 3 क्यों कहना है । अापकी इस अमूल्य कृति ने एक और बहुत बड़ी सीख दी है- वो ये है कि कहां कहना है । //
इस टिप्पणी की सारगर्भिता अत्यंत सुखकर है, रवि भाई.
आदरनीय योगराज जी , जिंदगी में फल प्राप्ति का फलसफा पेश किया है , आप जी ने लघुकथा में , बधाई हो सर जी
आदरणीय सर, आपकी लेखनी से वास्तव में कब-कैसे-क्यों-कहाँ का मिश्रण समझ में आ रहा है, इसके अलावा कीचड़ में कमल खिलाया जाता है इसकी शिक्षा भी एक नये तरीके से मिल गयी| नमन सर|
विसम परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच को दर्शाती हुई एक आदर्श लघुकथा के लिए बधाई आपको सर
आ० कांता रॉय जी, अर्चना त्रिपाठी जी, नीता कसार जी, माला झा जी, ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, पंकज जोशी जी, राजेश कुमारी जी, रजनी गोसाईं जी, सुधीर द्विवदी जी, प्रतिभा पाण्डेय जी, नेहा अग्रवाल जी, तेजवीर सिंह जी, सविता मिश्रा जी, सीमा सिंह जी, श्रधा थवाईत जी, रेनू भारती जी, वीर मेहता जी, जानकी वाही जी, शेख शहजाद उस्मानी जी, मदनलाल श्रीमाली जी, शशि बंसल जी, जिल्ले-इलाही सौरभ पाण्डेय जी, डॉ नीरज शर्मा जी, लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी, मिथिलेश वामनकर जी, डॉ रवि प्रभाकर जी, मोहन बेगोवाल जी, डॉ विजय शंकर जी, चंद्रेश कुमार छतलानी जी एवं मीना पाण्डेय जी:
मेरे इस तुच्छ से प्रयास को सराहने और रचना को अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से नवाजने हेतु आप सभी विद्वान् साथियों को दिल से शुक्रिया कहता हूँ I
एवमस्तु.. हा हा हा हा........................
पुनः बधाइयाँ और शुभकामनाएँ आदरणीय
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