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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-67

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 67 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह खुदा-ए-सुखन मीर तकी मीर की ग़ज़ल से लिया गया है|


"ये धुआँ सा कहाँ से उठता है"

212   212     1222

फाइलुन फाइलुन मुफाईलुन 

(बह्र: खफीफ मुसद्दस् मख्बून मक्तुअ )
रदीफ़ :- से उठता है 
काफिया :- आँ ( कहाँ, जहां, आसमां, जाँ आदि)

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 जनवरी दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय मोहन भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही कही है , दिली बधाइयाँ आपको ।

आदरणीय मोहन बेगोवाल सर बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

आँखों से यां जुबाँ से उठता है 
दर्द आखिर कहाँ  से  उठता है .......... बढ़िया मतला 


वो जैसी जिन्दगी निभायेगा 
साथ उस के जहाँ से उठता है .......... बढ़िया 


उम्र भर घर रहा था जो अपना 
बन जनाजा मकां से उठता हैं .... बढ़िया 


राज तो झूठ का है सब पासे 
सच लगे क्यूँ बयाँ से उठता है ....बढ़िया 


पूछते हैं बहाने से मुझ को 
"ये धुआं सा कहाँ से उठता है" ..... बढ़िया गिरह 


याद उस को रखे जमाना भी 
मर्द जो कारवां से उठता है .... वाह 


बात अंजाम तक ले आयेंगे 
कोई कब दरमियाँ से उठता है..... बहुत खूब 

बधाई और शुभकामनायें 

 सभी दोस्तों का राए देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 

आभार 

आँखों से यां जुबाँ से उठता है
दर्द बता कहाँ से उठता है
वो जैसी जिन्दगी निभायेगा
साथ उस के जहाँ से उठता है

वाह शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

आ० मोहन बेगोवाल जी बहुत बहुत बधाई 

मेरे ही आशियां से उठता है ।

और शोला कहाँ से उठता है ।

 

बिजलियाँ मेहरबान हैं शायद

जो धुआँ गुलसितां से उठता है ।

 

जगमगाती है रात की क़िस्मत

चाँद जब आसमाँ से उठता है ।

 

उठ रही है नज़र तुम्हारी या

तीर कोई कमां  से उठता है ।

 

हार जाते है आँधी-तूफ़ां भी

प्यार जब जिस्मो-जां से उठता है ।

 

चाँद  करने लगा है मनमानी

इनक़्लाब आसमाँ से उठता है ।

 

कोई जा के उसे जगाये तो

शोला उसके मकां से उठता है ।

 

जाने जाता है किस जहां में वो

कोई जब इस जहां से उठता है ।

 

यूँ तो सब ठीक है, मगर फिर भी

ये धुआँ सा कहाँ से उठता है

 

[मौलिक-अप्रकाशित]

बहुत ख़ूब जनाब...
//जगमगाती है रात की क़िस्मत
चाँद जब आसमाँ से उठता है ।

उठ रही है नज़र तुम्हारी या
तीर कोई कमां से उठता है ।//

सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय अजीत शर्मा 'आकाश' जी।

आपकी टिप्पणी से उत्साहवर्द्धन हुआ .... शुक्रिया !!!

वाह वाह वाह ! मुशायरे की बेहतरीन गजलों में से एक ग़ज़ल हुई है आ० अजीत शर्मा आकाश जीI हर शियर पुरनूर और पुरकशिश है, ढेरों ढेर बधाई हाज़िर हैI 

आपने जो हौसला अफ़ज़ाई की है, उसका आभार व्यक्त नहीं कर पा रहा हूं .... बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब !!!

जनाब अजीत शर्मा 'आकाश'जी आदाब,बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही आपने,दिल बाग़ बाग़ हो गया,ढेरो मुबारकबाद आपको |
भाई चाँद आसमान पर निकलता है,उठता नहीं,

एक बात बताइये,आसमान पर इंकिलाब कैसे उठता है ?

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