For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सिर्फ तुम्हारी ......अतुकांत // डॉ. प्राची

मेरा,
तुम्हारी होने का बोध-
घुला है संदल सा
मेरी चेतना में,
कि विस्तारित होती ही जाती है
प्रेम सुगंधि
चहुँदिश.....
ये बोध-
स्पंदन स्पंदन सा
अंकित है
संवेदी कोषों की स्मृतियों में,
कि आईना भी अब मुझमें
सिर्फ तुम्ही को तो पाता है.....
गूँजती हैं
सिर्फ तुम्हारी स्वर लहरियाँ
अस्तित्व की अतल गहराइयों में,
जब ख़ामोशी की चादर ओढ़
डूबने लगती हूँ मैं अक्सर अकेली.....
प्रेमअगन में तप-तप,
यों गेरुआ हुई जाती है रूह-
कि झुलस जाता है
तुमसे इतर हर ख़याल क्षण भर में
ज्यों विलय ही बन चुका है नियति.....
पर,
अकेला छोड़ जाने से पहले
यदि,
कर सको
तो कर दो आज़ाद मुझे
"सिर्फ तुम्हारी" होने के
इस बोध से.....

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 10, 2016 at 10:12pm

यदि,
कर सको
तो कर दो आज़ाद मुझे
"सिर्फ तुम्हारी" होने के
इस बोध से.....-------------फिर् पुरुष भी  'सिर्फ तुम्हारा' क्यों रहे. . बंधन  भी दोनों के लिए है और आजादी भी --अपने-अपने भाव . सादर ,

Comment by Rahila on February 9, 2016 at 4:38pm
वाह.. आदरणीया प्राची दी! पहली बार आपकी लेखनी की चमक देख रही हूं । बहुत शानदार लेखन।बहुत बधाई ।सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2016 at 1:39pm
सम्पूर्ण उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 9, 2016 at 2:12am
आदरणीय डॉo प्राची सिंह जी , इस शानदार अतुकांत कविता के लिए बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 9, 2016 at 1:33am

आदरणीया प्राची जी, बहुत ही शानदार अतुकांत.... विशेष अंतिम पंक्तियाँ. मुग्ध कर दिया आपने. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. 

आज न जाने क्यों यह कविता पढ़ते हुए 'इज़ाज़त' फिल्म याद आ गई.

Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 9:52pm

 अतुकांत में पिरोई  इस खूबसूरत  अभिव्यक्ति के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीया प्राची जी 

Comment by Sushil Sarna on February 8, 2016 at 2:58pm

प्रेमअगन में तप-तप,
यों गेरुआ हुई जाती है रूह-
कि झुलस जाता है
तुमसे इतर हर ख़याल क्षण भर में
ज्यों विलय ही बन चुकी है नियति.....
यदि,
कर सको
तो कर दो आज़ाद मुझे
"सिर्फ तुम्हारी" होने के
इस बोध से....

बहुत सुंदर आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी ...... अंतर्मन की भाव सरिता को आपने जिस ख़ूबसूरती से प्रवाह दिया है वो पाठक को आरम्भ से अंत तक वाह करने के लिए बाध्य कर देता है। इस अनुपम आंतरिक भाव बोध को समेटे अतुकांत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
30 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service