आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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मैं भी आ० राजेश कुमारी जी से पूरी तरह सहमत हूँ कि अंत तक आते आते (जोकि लघुकथा का अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील अंग होता है) कथा फुस्स होकर रह गईI माँ ऋचा को दोबारा क्यों लाना चाहती है? उसके आने से आक्रोश कैसे पैदा होगा? ये बात आप सही तरीके से संमझा नहीं पाए आ० मोहन बेगोवाल जी या फिर मुझे ही समझ नहीं आईI
लघुकथा में सार्थक प्रयास आपका सराहनीय है आदरणीय मोहन जी . दरअसल लघुकथा लेखन में सबसे अधिक मेहनत पंच पंक्ति और शीर्षक चुनाव पर ही अधिक होता है . जरा सा पंक्तियों में बदलाव इस लघुकथा जीवंत कर जाएगा . कथा का कथ्य और उद्देश्य सार्थक है . आप प्रयासरत रहिएगा . शुभकामनाएं आपको .
मोहतरम जनाब मोहन बेगोवाल साहिब, प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
आ. मोहन बेगोवाल जी प्रयास के लिये अनेक बधाईयाँ
मुआवजा
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शहर में दंगा हो गया था। दोनों पक्ष जगह-जगह आमने-सामने थे। अफवाहें कच्चे कानों के पंखों पर सवार बेलगाम उड़ रही थीं। तभी खबर उड़ी कि चैक पर एक मारा गया। दोनों पक्षों को यही समझ आया कि उनका आदमी मारा गया। बहुतों ने चैक के आसपास रहने वाले अपने परिचितों को मोबाइल लगाया पर किसी को किसी से कोई सही जानकारी नहीं मिल पाई। पता नहीं खबर सच थी या झूठ किंतु उसने दंगा और भड़का दिया था।
ऐसे में वही हुआ जो होना था। शहर के कई क्षेत्रों में कफ्र्यू घोषित हो गया। पुलिस ने खदेड़-खदेड़ कर लोगों को अंदर कर दिया। दो दिनों में ही सबकी बिल्ली बोल गयी। दो दिन बाद मृतक के पक्ष के लोग एस.पी. के कार्यालय में अपना विरोध दर्ज करवाने के लिये जमा थे। उनके राजनैतिक आका भी साथ में थे। सभी बेहद आक्रोश में थे, नेता लोग एस.पी. महोदय के तबादले से लेकर सस्पेंशन तक की धमकियों से नवाज रहे थे। इस बीच आॅफिर में मौजूद क्लर्क ने कम्प्यूटर आॅन कर दिया था। एस.पी. महोदय ने सबका ध्यान उस ओर आकर्षित किया। दंगे की सीसी टीवी फुटेज चल रही थी। दोनों ओर से पत्थर चल रहे थे। मृतक सबसे अधिक उन्माद से पत्थर चला रहा था। तभी मृतक के थोड़ा पीछे एक घर के दरवाजे में खड़े एक युवक के हाथ में कट्टा चमका। उसने धीरे से सामने की भीड़ का निशाना लिया। ओह शिट ! उसके पीछे से तेजाब की बोतलें लिये दौड़ते आ रहे एक अन्य युवक का कंधा उससे टकराया और निशाना चूक गया। गोली उनके अपने पक्ष के ही सबसे उन्मादी व्यक्ति के लग गयी थी।
नेताओं के चेहरे फक थे, बोलती बंद थी। एस.पी. महोदय अजीब से भाव से उन्हें घूर रहे थे। ये लोग सत्ता पक्ष के समर्थक थे।?
दूसरे दिन लोगों को अखबार में पढ़ने को मिला कि नगर के फैले साम्प्रदायिक दंगे में मारे गये व्यक्ति के परिजनों को सरकार ने 5 लाख के मुआवजे का ऐलान कर दिया है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
किसी ने सच ही कहा है कभी कभी दूसरों के लिए खाई खोदने वाला इंसान खुद उसमे गिर जाता है सी सी कैमरे के फुटेज ने बोलती बंद करदी सब की वरना विरोधी पक्ष की गलती मानते हुए और बबाल होता | दंगों में अक्सर ये ही देखने को मिलता है की चिंगारी नेताओं की ही लगाई होती है कितने बेगुनाह फिर उसकी चपेट में आते हैं |
बहुत अच्छी लघु कथा आद० सुलभ अग्निहोत्री जी हार्दिक बधाई
लघुकथा कहने सा सद्प्रयास हुआ है आ० सुलभ अग्निहोत्री जी, किन्तु रचना अभी बहुत समय और मेहनत मांग रही है जिसका इशारा सुधि साथी कर ही चुके हैंI कृपया उन बातों का संज्ञान लें और मेरी तरफ से हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करेंI
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