आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय उस्मानी जी,
आपने मेरी लघुकथा लिखने के इस प्रयास को सराहा. मुझे सबकुछ मिल गया. आभार...
माँ की सूझ बूझ से एक आक्रोश पनपने से पहले ही रुक गया ,एक नया आयाम दिया है आपने विषय को , हार्दिक बधाई आपको आदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ जी
आदरणीया, आपने मेरी इस लघुकथा लिखने के इस प्रयास को सराहा इसके लिए हार्दिक धन्यवाद...
लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है आ. ब्रजेंद्र नाथ मिश्रा जी, बधाई स्वीकारें। भाषा/बर्तनी की त्रुटियाँ आंखों को चुभ रही हैं, उस तरफ भी ध्यान दें।
पूरी गिलाश = "पूरा गिलास"
गाय की दूध = "गाय का दूध"
//छोटी - छोटी बातों का ख़याल रखकर ही रिश्तों की डोर को मजबूत बनाते हुए संयुक्त परिवार के ढाँचे को कायम रख जा सकता है।// यह पंक्ति नितांत अनावष्यक है, लघुकथा में इस प्रकार के "भाषण" या "उपदेश" के लिए कोई स्थान नहीं है।
आदरणीय योगराज जी,
आपने मेरी लघुकथा पढ़ी और प्रयास को सराहा, इसके लिए ह्रदय तल से आभार. आपने जो मार्गदर्शन दिया है, मैं उन्हें अगले प्रयास में अवश्य अमल में लाऊंगा.
बहुत खूब कथा हुई हैं....बधाई
श्रुआअत से लघुकथा बहुत ही सुन्दर तरीके से संदर्भित हुई है लेकिन अंत में कथा में लेखक की उपस्थिति ने लघुकथा में खलल डाल दी है . आखिरी पंक्ति हो हटाने के बाद भी लघुकथा अपने कथ्य को साकार करेगी ऐसा मेरा भी मानना है . बधाई आपको सार्थक लघुकथा के लिए आदरणीय ब्रजेन्द्र जी .
आ. ब्रजेन्द्र नाथ जी नये आयम की इस रचना के लिए बधाई आपको
हार्दिक बधाई इस सुंदर रचना के लिए आदरणीय ब्रजेन्द्र जी |
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