आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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ये लोन कम्पनियां और दूसरे ये मोबाइल कंपनिया रोज नए प्लान बताती है लूटने के लिए...पर पीछे से होता कुछ और है ...अच्छी रचना पर हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया
आ. जानकी जी रोजमर्रा की जिन्दगी मे वाकई आज हम इस झूट से जुझ रहे है और इंसानी होड से दो दो हाथ होते इस रचना मे पर्दे के पिछे का खेल उभरकर आया है. बधाई आपको
आदरणीय जानकी जी ! प्रस्तुत लघुकथा विषय को पूर्णता से सार्थक कर रही है जिस हेतु आपको बधाई । लघुकथा की लघुता तो उसकी संक्षिप्तता (Conciseness) से है, जो संक्षेप में विस्तार की बात बहुत सहजता से कह जाती है। आपकी लघुकथा के संवाद /मैम ! ग्यारह प्रतिशत महीने की दर से। ये बहुत आकर्षक योजना है।और आपको इससे बहुत लाभ होगा।आपके घर के आगे आपकी पसन्द की कार दूसरों की ईर्ष्या का कारण बनेगी।" चाँदनी की आवाज़ में गज़ब की मिठास थी।/ में ग्यारह प्रतिशत महीने की दर से के बाद का सारा संवाद अनावश्यक है । और उससे पहले /राज श्री ने यूं ही पूछ लिया/ ये भी मुझे अनावश्यक लगा। और पायल का / हां चांदनी.......... आदमी को छोड़ती हैं/ यह पंक्ितया इस लघुकथा की प्राणपंक्ितयां है जिनमें लघुकथा का पूरा सार है परन्तु इनकाे बहुत सपाटता से बयां कर दिया गया है। और अंत की पंक्ित के बारे में मैं आदरणीय प्रधान संपादक जी से इत्तेफाक रखता हुआ ये मानता हूं कि ये भाषणबाजी सी हो गयी है। बहरहाल आपका प्रयास और कथ्य सराहनीय है परन्तु प्रस्तुतिकरण जल्दबाजी का शिकार हो गया प्रतीत होता है। सादर
मोहतरमा जानकी वाही साहिबा ,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती तथा सन्देश देती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आवरण से पर्दा ही उठा दिया आपने ...खून चूस लेते यह तो ..सच्ची जोंक ..बढ़िया जोंक ..बधाई
अच्छी कथा हुई है आदरणीया जानकी जी | हार्दिक बधाई |
हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी।बेहतरीन प्रस्तुति।
गुरु दक्षिणा
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रात के ग्यारह बजे अचानक बिजली चली गयी । पंडित हरिहर दरवाजा बंद कर, सोने की तैयारी करने लगे । अचानक पीछे की ओर से किसी के कूदने की आवाज आई।
‘‘ कौन है? कौन है? .. .. अरे बिजली को भी अभी ... ...‘‘
टार्च लेकर ढूॅंडने निकले हरिहर जी ने ज्योंही कौने की ओर टार्च से उजेला फेका उन्हें दो युवक अपना मुॅंह काले कपड़े से ढाॅंके दिखाई दिये।
‘‘ कौन हो तुम लोग? यहाॅं क्यों घुसे हो? जल्दी से बताओ नहीं तो अभी पुलिस को बुलाता हूँ । हमारा पढ़ाया हुआ छात्र ही यहाॅं का पुलिस इंस्पेक्टर है, बचोगे नहीं समझे?‘‘
उन लोगों ने हरिहर जी के पास आकर ज्यों ही अपने मुॅंह से कपड़ा हटाया, टार्च की रोशनी में चेहरा पहचान कर बोले,
‘‘ अरे! सित्तू तू है ? यहाॅं क्यों आया है, और ये कौन है ?‘‘
‘‘ हाॅं पॅंडज्जी ! मैं सीताराम और ये है भगवानदास, वही भग्गू जिसे आप रोज मुर्गा बनाते थे‘‘
‘‘ अरे गधो! क्या पढ़ाते समय मुर्गा बनाने का बदला लेने आये हो? मैं ने तो तभी कह दिया था कि तुम लोग किसी काम के लायक नहीं निकलोगे, बन गये न डाकू? और अब अपने शिक्षक के घर पर ही अंधेरे में डाॅंका डालने आये हो?‘‘
‘‘ सही कहा पॅंडज्जी , आपने पूरा आशीर्वाद तो रज्जू यानी राजेश को दिया इसलिये वह पुलिस इंस्पेक्टर अर्थात् लाइसेंसी चोर है और हमें आशीर्वाद देने में हमेशा कंजूसी की , फिर भी आपके अभिशाप से ही सही, अब हम हैं इनामी चोर ‘‘
‘‘ ठहरो मैं अभी राजेश को बुलाता हॅूं‘‘
‘‘ बुला लेना, पहले माल निकालो क्या क्या जोड़ रखा है, तुम्हारे किस काम का है, अकेले तो हो, हमें दे दो सब ‘‘
‘‘खट खट ! खट खट !‘‘
‘‘ देखो पॅंडज्जी ! कोई दरवाजे पर आया है, शायद राजेश ही होगा, बिलकुल चुप रहना नहीं तो ...‘‘
‘‘ अरे ! राजेश?‘‘
‘‘ हाॅं पंडित जी ! बिजली देर में आयेगी, अभी खबर मिली है कि दो चोर जेल से निकल भागे हैं और कुछ आतंकी भी इस इलाके में घुस आये हैं इसलिये सतर्क रहना, अंधेरे में कोई भी दुर्घटना घट सकती है, कुछ भी हो तो हमें तत्काल बताना‘‘ कहते हुए राजेश चला गया।
‘‘ ठीक किया पॅंडज्जी । हमें बचा लिया , इसे आपका आशीर्वाद मान कर अब हमें कुछ नहीं चाहिये, चिंता मत करो हम अभी चले जाते हैं।‘‘
‘‘ लेकिन तुम लोग इस समय कहाॅं जाओगे? इस गंदे काम को छोड़कर कोई अच्छा काम करो, कब तक छिपे रहोगे, पुलिस के सामने समर्पण कर दो, मैं राजेश से कहकर तुम्हारी सजा माफ करवा दूॅंगा‘‘
‘‘ पंडज्जी! स्कूल से हमारी और तुम्हारी छुट्टी हो चुकी है, पाठ पढ़ाना बंद करो और ....‘‘
वाक्य पूरा हुआ ही नहीं था कि फिर से दरवाजे पर खट खट की आवाज आई।
‘‘ देखो ! शायद राजेश को हमारी भनक लग गई है, सावधान रहना समझे? जाकर देखो कौन है?‘‘
दरवाजा खोलते ही एक आतंकी गन आगे किये हरिहर जी को धक्का देकर नीचे गिराते हुए भीतर घुस आया और बोला,
‘‘बता, कौन कौन हैं घर में, हमें यहाॅ कुछ दिन रुकना है, हमारे दो साथी और हैं‘‘
‘‘ मैं तो अकेला ही रहता हॅूं, लेकिन भैया! आप हैं कौन और इस अंधेरे में ही क्यों आये?‘‘
‘‘ देेख रे बुड्ढे ! ज्यादा सवाल न कर, बस चुपचाप रह , मैं तब तक अपने साथियों को बुलाता हॅूं‘‘ कहते हुए पास में पड़ी एक बेंच पर बैठ कर अपने साथियों को मोबाइल से संदेश भेजने लगा। इधर सित्तू और भग्गू को समझने में देर न लगी । चुपचाप पीछे से आकर सित्तू ने उसकी गन को और भग्गू ने उसकी गर्दन को जकड़ लिया और झटके से बेंच पर से नीचे पटक कर उसकी छाती पर चढ़ वैठे।
‘‘ बोल.. तू कौन है और तेरा टास्क क्या है? बोल.. नहीं तो तेरी ही गन से तुझे यहीं खत्म कर दॅूंगा।‘‘
‘‘ क्या तुम लोग भी... ..? ‘‘
‘‘ हाॅं, हम लोग भी ... ... ? अपना पासवर्ड बताओ ‘‘
‘‘ पुलिस स्टेशन‘‘
‘‘ अबे साले! झूठ बोलता है। यह पासवर्ड तो फर्जी है। भग्गू! इसके हाथ पैर बाॅंध दे , इसका बैग और मोबाइल छुड़ा ले । और, पॅंडज्जी आप रज्जू को ... ‘‘
‘‘ लेकिन तुम लोग ? ‘‘
‘‘हमारी चिंता न करो , रज्जू के साथ ही हम लोग भी जहाॅं से आये हैं वहीं चले जायेंगे। हमारे इस काम को अपनी गुरुदक्षिणा समझो, लेकिन अब केवल किताबी ज्ञान से किसी की योग्यता या अयोग्यता का मूल्याॅंकन कभी नहीं करना।‘‘
मौलिक और अप्रकाशित
बहुत ही सुंदर लघुकथा. उम्दा. मगर थोड़ी लम्बी हो गई. बधाई इस शानदार विषय व लघुकथा के लिए.
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