आदरणीय साथिओ,
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बेटे बेटी का चक्कर है किन्तु भाषा इतनी आंचलिक है कि सही निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन है . हिदी भाषियों की असुविधा का विचार अगली रचना में अवश्य करें . सादर .
कथ्य तो समझ में आ गया जो प्रदत्त विषय से न्याय कर रहा है ..हार्दिक बधाई आपको आदरणीया निधि जी
निधि जी आपने तो पूरी की पूरी लघु कथा राजस्थानी भाषा में ही लिख दी जिसको समझने में पाठकों को कुछ समस्या निःसंदेह आयेगी .मैं तो दो बार पढने से समझ गई हूँ कहानी अच्छी संदेशप्रद है बहुत बहुत बधाई
जवाब नहीं मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब, हहाहहहह्हा....
आदरणीया निधि अग्रवाल जी कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। बरहाल आयोजन में शामिल होने के लिए बधाई।
आदरणीया निधि अग्रवाल जी आपकी रचना दो-तीन बार पढने पर भी उसकी तह तक जाने मे असमर्थ हूँ. बहरहाल सहभागिता हेतु बधाई
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आदरणीया निधि जी, जितना समझ आया उसके हिसाब से बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर