आदरणीय साथिओ,
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अादरणीय जानकी वाही जी, प्रथम प्रस्तुति 'असली विकास' का शीर्षक कुछ जम नहीं रहा इसके शीर्षक पर कुछ और परिश्रम करना चाहिए था। इस लघुकथा के कथ्य से मैं थोड़ा असहमत हूं (हालांकि कथानक पर बात न करके श्िाल्प पर बात की जानी चाहिए क्योंकि कथानक लेखक का अधिकार क्षेत्र होता है) कुछ किलो मुफ्त अनाज लेकर वर्तमान एम.एल.ए. के विकास कार्य बिल्कुल शून्य कर दिए गए । तो गोया दुबारा सत्ता में वापिस आने के आधार विकास न होकर खैरात बांटना हो गया। यह लघुकथा एक नाकारात्मक संदेश दे रही है ।
दूसरी प्रस्तुति भ्रमित मानसिकता का शीर्षक भी जमा नहीं । परन्तु परिवेश की जटिलता एवं व्यक्ित मन की गुत्िथयों को सुलझाने के लिए जिस प्रकार प्रतीकों का सहारा लिया गया है उससे कथा के शिल्प सौन्दर्य में वृद्धि होने के साथ साथ कथा की व्यंजना का भी विस्तार हुआ है । हालांकि कथा में कसाव वांछनीय है । बहरहाल शुभकामनाएं स्वीकारें ।
आदरणीया जानकी जी , पहली कथा में आपने बहुत ही सधे हुए तरीके से बता दिया कि नेताओं को चोर और घटिया बताने वाली जनता खुद कैसी है। और साथ ही यह भी लोगों के अपने अपने विकास कैसे होते हैं। बहुत बढ़िया। दूसरी कथा की काफी लम्बी प्रस्तुति नहीं जंची । पहली का शिल्प बढ़िया है तो दूसरी का अंत बहुत ही सकारात्मक। पहली कथा में पात्र का नाम चरण चन्द्र रख कर आपने बता दिया कि आपको मात्र एक शब्द से भी व्यंग्य करना आता है , बहुत ही बढ़िया। भविष्य में भी आपकी कथा इसी चाव से पढ़ना चाहूंगा।
बधायी आदरणीया
हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी वाही जी।दोनों ही लघुकथायें बहुत सार गर्भित और बेहतरीन हैं।मुझे दूसरी लघुकथा ने अधिक प्रभावित किया।
बहुत बढ़िया रचनाएँ कही हैं आदरणीया जानकी जी, दोनों रचनाओं के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें| भ्रमित मानसिकता के शीर्षक पर और कार्य किया जा सकता है| सादर,
"दाता"
चिलचिलाती धूप में काम करते हुए पसीने से तरबतर रामू की हालत देखकर उसके भाई में श्यामू ने कहा:
"भाई धुप बहुत तेज़ है, आओ कुछ देर उस बरगद के नीचे विश्राम कर ले।" श्यामू ने बरगद की और इशारा करते हुए जवाब दिया।
"हाँ भाई ठीक कहते हो। इसके नीचे छांव भी है और ठंडक भी, यही तो इस पेड़ की विशेषता है।"
"पुराने ज़माने में तो ऋषि -मुनि इसके नीचे बैठकर तपस्या भी करते थे। शायद इसिलिये इसे बरगद दादा कहकर बुलाते हैं । " बरगद के नीचे बैठते हुए दोनों ने उसकी तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए।
"हाँ सुना हैं, बरगद के नीचे हवा भी शुद्ध होती हैं।" श्यामू भी अपना ज्ञान बांटने लगा।
"और इन बड़े बड़े पेड़ो की वज़ह से ही कुदरत की कहर से बचा जा सकता है ।"
"ठीक कहा भैया तुमने, अब देखो तो इसके आस पास कितनी ठंडक रहती है ।“
अपनी प्रशंसा सुन बरगद भी ख़ुशी से झूम उठा। तेज हवाओं ने भी उसका साथ देकर उसे और उत्साहित कर दिया। उसने अपने आस पास खड़े अन्य पेड़ों की तरफ देखा, तो उन सब ने सर झुककर बरगद को प्रणाम कियाI बरगद को अपना कद कई गुणा बड़ा महसूस हुआI सभी उसका जयघोष कर रहे थे कि तभी उससे लिपटी कोमल लताओं ने रुंधे स्वर में कहा:
“सबको जीवन देने वाला बरगद दादा! तुम हमारे हिस्से की धूप और पानी छीनकर हमारी हत्या क्यों करते हो?”
बरगद निरुत्तर था, उसे अब अपना कद बहुत बौना लग रहा था।
मौलिक एवं अप्रकाशित
बहुत ही सुंदर लघुकथा कही है आ० कल्पना भट्ट जीI बरगद की गोद में दम तोड़ती लताओं का दर्द बखूभी उभारा हैI हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
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