आदरणीय साथिओ,
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वाह ! किसी ओर की बेटी की इज्जत ही नहीं, जब खुद की बेटी की इज्जत दांव पर लगी तो चिंता हुई | कहानी सुन्दर है पर पंचिव असुर आठवीं कक्षा का अंतर कोई जरूरी नहीं था | हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय अपराज़िता जी।आज की सरकारी योजनाओं की खोखली हक़ीक़त को बड़े ही सलीके से लघुकथा के रूप में ढाला है।आप की कलम की रवानगी में एक भावी उत्तम लघुकथाकार के सारे गुण मौजूद हैं।बेहतरीन प्रस्तुति।
कथा अच्छी है . प्रस्तुति और भी अच्छी , भँवर को मैं खोजता रहा .
बहुत जबरदस्त कटाक्ष आज की गन्दी मानसिकता रखने वालों पर भी ऐसी शिक्षा प्रणाली पर भी |बहुत दुःख होता है की आज कल ऐसे हालात हो गए हैं की इन मुद्दों पर कलम चलानी पड़ रही है झकझोर जाती हैं ऐसी घटनाएं |
इस सफल सार्थक लघु कथा हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई आद० अपराजिता जी |
बहुत सुंदर व सार्थक प्रस्तुति आदरणीय अपराजिता जी. बधाई आप को .
आ. अपराजिता जी, भ्रष्ट नौकरशाही, शिक्षा व्यवस्था में विसंगति, लैंगिक शोषण और आदिवासियों की हीन दशा को इस एक लघुकथा में बहुत अच्छे से उभारा है आपने. कथा प्रदत्त विषय से न्याय भी कर रही है और संदेशप्रद भी है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आ.अपराजिता जी,उम्दा कथा हुई है। इतना स्पष्ट लिखने के लिए जिगर चाहिए. बधाई स्वीकारें!
विषय को पूर्णरूपेण सार्थक करती इस लघुकथा का शीर्षक चयन बहुत बढ़ीया व शिल्प प्रशंसनीय है। यौन शोषण कथानक पर पूर्व में यथेष्ट मात्रा में लिखा जा चुका है। अब जरूरत है आस पास बिखरे अनदेखे व अनछुए कथानकों की तलाश कर उन पर कलम चलाई जाये। सादर शुभकामनाएं निवेदित हैं । सादर
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