आदरणीय साथिओ,
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बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आद० मोहन बेगोवाल जी हार्दिक बधाई
कलाई सजवांने (लघु कथा)
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बिटिया ममता का खत मिला जिसमे लिखा था -
आज बाजार गई थी जहाँ रँग-बिरंगी राखियों की चारो ओर रौनक छायी हुई थी । मन में उमंग छायी हुई थी कि वीर की कलाई सजाऊँगी । तभी मन में ख्याल आया कि मुझे ब्याह कर माँ-बापू ने तो परदेस भेज पराई कर दिया ।
खत पढ़ते ही भैया योगीराज ने तुरन्त फोन लगाजर कहाँ - "बहन दुखी मत हो । माँ-बापू ने तो तुझे इसी शहर में हृदय के पास ही ब्याहा था पर भाग्य की आस में कर्मवीर ही ले गए । हमने तुझे हृदय में सहेज रखा है । तुझे यह जानकार ख़ुशी होगी कि बापूं ने पहले ही मेरा रिजर्वेशन करा दिया है । रक्षा बन्धन के दिन अच्छी सी राखी से कलाई को सजवाने मैं आ रहा हूँ | और हाँ, तुझे कुछ दिन के लिए मेरे साथ आने की तैयारी करके रखना ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
सुंदर रचना विषय पर, बधाई आपको
इस कथा में एक बेटी ने ख़त में एक बात कही, और बाद में उसके भाई ने एक बात कह दी - इसमें कथा कहाँ है और क्या है? क्या शादीशुदा बेटी से भाई को राखी बाँधने का अधिकार छिन जाता है?
//माँ-बापू ने तो तुझे इसी शहर में हृदय के पास ही ब्याहा था पर भाग्य की आस में कर्मवीर ही ले गए ।// इस पंक्ति का क्या अर्थ है?
यह लघुकथा है ? आदरणीय कृपया मार्गदर्शन दें | सादर | यह तो बात चित प्रतीत हो रही है |
सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी।
बहुत बहुत बधाई आद० लक्ष्मण लडीवाला भाई जी |
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