आदरणीय साथिओ,
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भाई सुरेन्द्रनाथ सिंह जी, अच्छी लघुकथा हुई है और विषय पर भी पूरी उतर रही है जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है. लेकिन भीड़ से यूं अचानक किसी का निकल आना और बच्चा चोरी की बात स्वीकार करना थोडा स्वाभाविकता से दूर होकर नाटकीयता की तरफ मुड़ गई है. इस पर थोडा ध्यान दें.
अच्छी लघुकथा में कुछ कसावट लायी जा सकती है आदरणीय
आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह "कुशक्षत्रप" जी बधाई आपको सार्थक रचना की
बढ़िया लघुकथा है आ. सुरेन्द्र जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. //भीड़ से निकलकर विजय ने बोलना शुरू किया।//
2. //उसकी निगाहें शिवमंगल के बेटे को खोजने लगीं।//
आ. योगराज सर की बात से मैं भी सहमत हूँ. सादर.
बहुत अच्छी लघु कथा हुई सुरेन्द्र भैया एक बढ़िया सीख देती हुई सच में अग्निपरीक्षा नारी को ही देनी पड़ती है |बहुत बहुत बधाई
वैसे भी यहाँ हर बार नारी को ही अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है।// सत्य बात ..प्रदत्त विषय को शानदार ढंग से परिभाषित किया है आपने , हार्दिक बधाई आदर्नित सुरेन्द्र जी
तालीम - लघुकथा –
मुनिया अपने घर की देहरी पर बैठी गोटियाँ खेल रही थी। उसकी सहेली लीला स्कूल से लौट रही थी, मुनिया के घर के आगे से गुजरी तो मुनिया से पूछ लिया,
"क्यों री मुनिया, आजकल तू स्कूल क्यों नहीं आती"?
"अम्मा ने मना कर दिया"।
"और खेलने भी नहीं आती"?
"उसके लिये भी नहीं जाने देती अम्मा"।
"पर इसका कोई कारण तो होगा"?
"मुझे तो कुछ भी नहीं पता"।
"तेरे बापू ने कुछ नहीं कहा"?
"बापू और अम्मा में आज खूब झगड़ा हुआ,इसी बात पर"।
"फ़िर नतीज़ा क्या निकला"?
"अम्मा अपनी ज़िद पर अड़ी रही, बोलती है मैंने अपनी आँखों से देखा था, स्कूल का चपरासी मेरी छोरी से खाने की छुट्टी में छेड़छाड़ कर रहा था| वह तो किस्मत से मैं मौके पर पहुंच गयी, छोरी का रोटी का डब्बा देने| मुझे मेरी छोरी की ज़िंदगी बरबाद ना करनी"।
"फ़िर"?
"बापू ने समझाया,” ना पढ़ेगी तो भी तो ज़िंदगी बरबाद ही होनी है"।
"वह कैसे"?अम्मा बोली|
बापू बोला , "भाग्यवान, तू जो सोचकर बैठी है, ऐसे हादसे तो घर पर भी हो सकते हैं।क्योंकि हम दोनों काम पर चले जाते हैं और छोरी घर पर अकेली होती है"।
अम्मा ने फिर पूछा,"तो अब इसका क्या तोड़ है, आप ही बताओ"?
बापू कहने लगा,"देख मेरी बात मान, अभी भी देर ना हुई, उसे स्कूल जाने दे।छोरी पढ़ जायेगी तो अपना बचाव करना खुद ही सीख जायेगी"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहब जी
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