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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-92

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 92 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अख्तर शीरानी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"अब मुस्कुरा के भूल  जाएँ तो क्या करें   "

221   2121     1221      212

मफ़ऊलु फाइलातु मफ़ाईलु फाइलुन 

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )

रदीफ़ :- तो क्या करें  
काफिया :- आएँ (जाएँ, सदाएँ, वफ़ाएँ, हवाएँ आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 फरवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आद0 अंजलि जी सादर अभिवादन। बढ़ियाग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर मुबारकवाद कुबूल फरमाएं। सादर

जी आपका तहेदिल से शुक्रिया

श्रेष्ठ प्रयास के लिए बधाई की पात्र हैं अंजलि जी आप !!!

तहेदिल से शुक्रिया आपका अजीत शर्मा 'आकाश' जी

आदरणीया अंजलि जी संभवत आपकी पहली गजल से रूबरू हुआ हूं अच्छी गजल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ 

जी रवि शुक्ला जी। नव लेखिका हूँ। मंच पर प्रथम प्रस्तुति। सीखने का मौका देने के लिए obo का हार्दिक आभार। हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका शुक्रिया

बहुत खूब.।

बहुत शुक्रिया आपका 

आदरणीया अंजलि जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई क़ुबूल करें 

अंजली जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई 

यादें तुम्हारी हमको सताएँ तो क्या करें।

आँसू भी चार हम न बहाएँ तो क्या करें।।

नफ़रत की ख़ूब तेज़ हवाएँ तो क्या करें।

उल्फ़त का दीप हम न जलाएँ तो क्या करें।।

खाकर फ़रेब इश्क़ में हम बेवफ़ा हुए।

आईं न रास हमको वफ़ाएँ तो क्या करें।।

ईमान हमको अपना बचाना है मोमिनों।

हैं घात में हसीन बलाएँ तो क्या करें।।

ऐ ज़िन्दगी जो ज़ख़्म भी तूने हमें दिये।

अब मुस्कुरा के भूल न जाएँ तो क्या करें।।

आसाँ बहूर में भी जो कहतें हैं बे ब,हर

आईना उनको हम न दिखाएँ तो क्या करें।।

बीमार ए इश्क़ हैं हमें लिख देना ला' दवा।

आती नहीं हैं काम दवाएँ तो क्या करें।।

हम भी बशर हैं कोई फ़रिश्ते नहीं 'सहर'।

मिलती हैं अपने पास ख़ताएँ तो क्या करें।।

          मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय अफरोज़ जी।

  • बहुत ही बेहतरीन गजल, हर शेर मुकम्बल। दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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