आदरणीय साथिओ,
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प्रत्युत्तर हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सुनील जी. वैसे आपकी आयोजन में कमी खलती है इसलिए गुज़ारिश है कि यथासम्भव अपनी उपस्थिति बनाये रखें. सादर.
अच्छी लघुकथा है भाई सुनील वर्मा जी, जिस हेतु बधाई प्रेषित है. लघुकथा स्वतंत्र रूप में सफल है किन्तु प्रदत्त विषय के साथ धक्के से जोड़ने का प्रयास लग रहा है.
//उस पर ठप्पा यह कि 'भइई, हम तो सीधा मुँह पर कहने वाले आदमी हैं। किसी को बुरा लगे तो लगे।'//
"ठप्पा" पर "तुर्रा" शब्द कहीं अधिक उपयुक्त है.
लघुकथा का समापन बहुत सुंदर और सार्थक लगा | हार्दिक बधाई
प्रिय सुनील भाई, प्रस्तुत लघुकथा की शुरूआत बहुत प्रभावशाली ढंग से हुई । / उम्र के उस ढलान बिंदु पर खड़ा हुआ आदमी जहाँ गाड़ी चलती नही लुढ़कती है/ यह एक पंक्ित लघुकथा विधा की शक्ित को प्रदर्शित करने के लिए काफी है कि चंद शब्दों में किसी पात्र की स्थिति कैसे बयां की जा सकती है । इस एक पंक्ित से ही देवदत्त बाबू की अवस्था का चित्रण सहजता से हो रहा है । वाह!
/ नींद आँखों से कोसों दूर थी। / और बहू के दूध का गिलास लाने में बहुत कम समय अंतराल है तो ऐसे में / नींद की देहरी तक जा पहुँचा / कुछ अटपटा सा लग रहा है । लघुकथा की अंतिम पंक्तियाें /बच्चों, विलेय और विलायक दोनों के समांगी मिश्रण से ही एक संतृप्त विलयन बनता है।/ की भाषा सरल होनी चाहिए थी, क्योंकि लघुकथा में भाषा की सरलता बहुत महत्वपूर्ण होती है । मेरा विचार है कि आम बोलचाल की भाषा अधिक सम्प्रेष्णीय होती है और मेरे जैसे साधारण पाठक के लिए अधिक बोधगम्य होती है । हॉं, लघुकथा प्रदत्त विषय से थोड़ी इधर-उधर प्रतीत हो रही है । सादर !
हर बार आपकी रचना में कोई नई बात देखने और सीखने को मिलती है। इस रचना में भी कुछ बढ़िया प्रयोग मिले। हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील वर्मा जी। सुधीजन और गुरूजन शेष सब कुछ कह चुके हैं, जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिला।
अच्छी कथा हुई है सुनील भैया | पर हर बार की तरह नहीं लगी | सादर |
आखरी सज़ा
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सेठ धर्मी चन्द की गिरफ्तारी की खबर सुनते ही क़स्बे के कुछ पत्रकार और नगरवासी थाने में पहुँच गये | वहाँ मौजूद पुलिस ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया | सब एक आवाज़ में बोल पड़े "हमें इनस्पेक्टर साहिब से गिरफ्तारी के बाबत पूछना है "
इनस्पेक्टर का इशारा मिलते ही कुछ लोग अंदर पहुँच जाते हैं | पहले एक पत्रकार पूछता है ,"सेठ जी यहाँ के प्रतिष्ठित आदमी हैं,इनकी पहुँच ऊपर तक है ,इन्हें किस जुर्म में गिरफ्तार किया है ?"
इनस्पेक्टर ने जवाब में कहा " क़स्बे में जुआ ,सट्टा ,नक़ली दवाओं का काम ,सरकारी राशन में हेरा फेरी आदि गैर क़ानूनी काम इनके इशारे पर हो रहे हैं "
दूसरे पत्रकार पूछने लगा ,"आपके पास इसके सुबूत हैं ?"
इनस्पेक्टर ने फ़ौरन जवाब दिया "इनके खिलाफ गवाह, फोन रेकॉर्डिंग ,हेरा फेरी के दस्तावेज मेरे पास हैं"
बीच में एक और आदमी कहने लगा " आगे आप क्या करेंगे ?"
जवाब में इनस्पेक्टर ने कहा ,"कल अदालत में पेश करके इन्हें रिमांड पर लेंगे ?"
पीछे एक बुज़ुर्ग आह भरते हुए बोलने लगे ,"इनस्पेक्टर साहिब ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नहीं , सेठ जी ने कई साल पहले जब मुझे इनके काले कारनामों का पता चला तो मुझे चोरी का झूठा इल्ज़ाम लगा कर सज़ा करवा दी थी और नौकरी से निकाल दिया था "
तब से ही मैं निराशा भरे जीवन में यही स्वप्न देख रहा हूँ कि कब मेरे अपमान का बदला पूरा होगा "
इनस्पेक्टर ने बुज़ुर्ग से कहा ," लेकिन आपका इस में क्या फ़ायदा हुआ ?"
बुज़ुर्ग ने लंबी साँस लेते हुए जवाब में कहा:
"आपने इन्हें गिरफ्तार करके मेरे द्वारा निराशा भरे जीवन में देखे गये स्वप्न को ताबीर बख़्श दी "
(मौलिक व अप्रकाशित )
जनाब सुनील साहिब ,लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।टाइप त्रुटि हो गई ,दूसरा की जगह दूसरे टाइप हो गया , ध्यान दिलाने का शुक्रिया ।
कथा अच्छी है। संदेशप्रद है कि व्यक्ति जो बोता है वही काटता है। पर कथा दिवास्वप्न शीर्षक को परिभाषित नहीं करती। दिवास्वप्न अर्थ दिन का सपना, हवाई किले बनाना या ऐसे सपनें जो पूरे न हों। आपकी कथा में बुजुर्ग का सपना पूरा हो रहा है। यह दिवास्वप्न नहीं है।
मुहतर्मा संगीता साहिबा, लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया। दिवा स्वप्न का मतलब निराशा में बैठे बैठे ख्वाब देखना भी होता है , और मेरी लघुकथा में पात्र ऐसा स्वप्न देखता रहा जो खुद पूरा नहीं करसका । फिरविषय के विपरीत लघुकथा कैसे हुई?
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहब. बधाई
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