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आ. भाई अरूण जी, खेत खलिहान से जुड़ी तमाम पीड़ाओं को बेहतरीन दोहों में समेटने के लिए हार्दिक बधाई ।
खेत खलिहान से जुड़े हर पहलू को सुंदर दोहावली में पिरोया है आ० अरुण निगम भाई जी. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
खेत और खलिहान में, रमते सदा किसान
सच पूछें तो हैं यही, दुनिया के भगवान ।1 वाह! वाह!! क्या ख़ूब दोहा कहा है आपने । मज़ा आ गया । बहुत ही अच्छा चित्रण ।
सभी दोहे एक से बढ़कर एक ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय अरुण निगम जी ।
जनाब अरुण साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर दोहावली हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
धरती के भगवान Vs आसमां वाले Vs आम आदमी । बेहतरीन रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय अरुण कुमार निगम जी।
जनाब अरुण कुमार निगम जी आदाब, प्रदत्त विषय पर बहुत उम्दा दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।या
आद0 अरुण जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन रचना दोहों के रूप में, विषय को परिभाषित करती हुई। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये
हार्दिक बधाई आदरणीय अरुण कुमार निगम जी। बेहतरीन रचना।
आदरणीय राणा जी बहुत बेहतरीन सृजन बधाई हो
अच्छे छंद हुये है आदरणीय अरुण कुमार जी बधाई स्वीकारें ..
खेत बेच भेजा जिसे, बनने को विद्वान
राह आज तक ताकते, हैं उस की खलिहान...... "ताक रहे हैं आज तक उनको ये खलिहान " भी किया जा सकता है ।
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