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अगर बचाना हमें देश को, मन में हो ये भान।
आगे बढ़ते रहें सदा ही, खेत और खलिहान। बहुत ही उम्दा पंक्तियाँ । आशावादी दृष्टिकोण ।
बहुत ही सशक्त और सारगर्भित छंद के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय वासुदेव अग्रवाल जी ।
मोहम्मद आरिफ जी रचना को आपसे सम्मान मिला लिखना सार्थक हुआ। आपका बहुत आभार।
आदरणीय बासुदेव जी, सुन्दर सरसी छन्द में विषय से पूर्णतः न्याय हुआ है।
सौपान को सोपान, हमरे को अपने, चुका रहें को चुका रहे कहना, मेरी दृष्टि में अधिक उपयुक्त होगा।
आ0 अरुण कुमारजी सुझावों और रचना को मान देने के लिए आपका बहुत आभार।
आ. भाई बासुदेव जी, प्रदत्त विषय पर बेहतरीन दोहे रचे हैं । कोटि कोटि बधाई स्वीकारें ।
आ0 लक्ष्मण धामी जी बहुत आभार।
सरसी छंद पर आधारित सभी द्विपदियाँ बहुत ही प्रभावशाली हुई हैं आ० वासुदेव अग्रवाल नमन जी. हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
मुहतरम जनाब बासुदेव साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर सरसी छन्द हुए हैं ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
आ0 तस्दीक़ अहमद जी आपका तहे दिल से शुक्रिया।
यथार्थ, आशा-प्रत्याशा सब कुछ सहज कहती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी।
आप शेख शहज़ाद उस्मानी जी आपका तहे दिल से शुक्रिया।
जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन'जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करते बढ़िया सरसी छन्द लिखे आपने ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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