For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-37 (विषय: भारत)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-37 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. गत तीन वर्ष में गोष्ठी के पिछले 36 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव  में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उन पर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-37
विषय: "भारत" 
अवधि : 29-04-2018  से 30-04-2018 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 8314

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरनीया नीता जी, बहुत ही शुक्रिया 

बेहतरीन यथार्थपूर्ण कटाक्षपूर्ण सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सुनील वर्मा जी।  जैसी आपसे मंच अपेक्षा करता है, उस से भी बेहतर। विषयांतर्गत पूरी यथार्थपूर्ण भावपूर्ण प्रवाहमय रचना भारत के पर्यटन का अहम नकारात्मक पक्ष पेश करने में पूरी तरह सफल हो रही है।

//फ्रेंच में कहा "जे पेंसे क्यूसे तीप न्येस तरम्प (मुझे लगता है यह आदमी हमें बेवकूफ बना रहा है।)"// .. इसके साथ रचना का बेहतरीन अंतिम वास्तविक किंतु कटाक्षपूर्ण व्यंगात्मक संवाद लघुकथा को सार्थक सिद्ध करता है। तीर और तरकश का बेहतरीन अनुप्रयोग। इस हेतु विशेष बधाई।

शेष विशेषज्ञ, गुणीजन ही बता सकेंगे। शीर्षक के बारे में भी। 

बहुत ही प्रभावोत्पादक लघुकथा कही है भाई सुनील वर्मा जी. अतिथि की परिभाषा भी रुतबा देखकर तय की जाती है, यह बात बिलकुल सत्य है. महेश का जवाब सुनकर औंधी पड़ी तख्ती का हँसाना इस लघुकथा की जान है. तरकश शीर्षक भी एकदम सटीक है. इस उत्तम लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें.  

प्रदत्त विषय को सार्थक करती बढ़िया लघुकथा, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

अपने घर के अतिथियों में भी उनकी हैसियत के हिसाब से फ़र्क़ किया जाता है तो बाहर की बात ही अलग है. प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया और प्रभावी रचना, बधाई आपको आ

तख्ती भी हकीकत से अंजान नहीं थी, हकीकत झेलते-झेलते। बढ़िया कथ्य पर आपको बधाई आदरणीय। 

जनाब सुनील साहिब ,सुंदर लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

  आदरनीय सुनील जी, बहुत बढ़िया लघुकथा के लिए बधाई 

यथार्थ! ऐसा ही होता है| आखरी पंक्ति कथा की जान है| हार्दिक हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील भैया| 

बेहतरीन लघुकथा जनाब ।

हार्दिक बधाई आदरणीय सुनील जी।बहुत अच्छी लघुकथा।

              सीमाएँ

                 --

विदेशी आक्रांता जा चुके थे।अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता हुआ क्षत-विक्षत वह एक पात विहीन वट वृक्ष के नीचे पड़ा हुआ था। अपने लोग तसल्ली का मलहम लगाते,चले जाते।कुछ राजनेता आये।अपनी अपनी डींगों के पहाड़ खड़े कर गये।किसी ने कहा ,'अरे हमने ही तो इसे बचाया है,नहीं तो फिरंगी इसे तहस-नहस कर गये होते।' फिर कोई अपनी हाँकता कि हमी ने तो गोरों को सात समंदर पर का रास्ता दिखाया।पीठें ठोकी जा रही थीं।आत्म-वंदना आत्म-प्रवंचना का रूप ले चुकी थी।शर-ग्रथित शरीर पर लोग लकीरे खींच रहे थे,अपने -अपने इलाके तय कर रहे थे।बलिदानियों की आत्मा इन्हें धिक्कार रही थी। स्वातंत्र्य संग्राम के बचे सिपाही व्यथित थे।वे चुपचाप इन स्वार्थी और लोलुप लोगों के दुराग्रह पर पश्चाताप के आँसू बहा रहे थे।बँटवारे में बचा आधा शरीर कंपकपा रहा था।
तभी अदबकारों का झुंड तमाशबीनों की भाँति आ गया।वक्तव्य उछले।अक्षर और हर्फ़ में द्वंद्व छिड़ गया।उनकी भी सीमाएँ तय होने लगीं।शब्दों के छींटे अर्द्ध तकसीम शरीर पर पड़ने लगे।कोई कहता-- दिलासा के सब कायल हैं।कोई कहता--इच्छा सबकी होती है।किसीने हर्फ़ और वर्ण में मेल करने की बात की।भाषा के ठेकेदार भड़क गए।भाषा भाषा होती है।उससे खिलवाड़ न हो,ऐसा उनका मत था।हर शब्द की अपनी भाषा है और हर भाषा के अपने शब्द हैं,वे इसके पक्षधर थे।हाँ, आंग्ल भाषा के शब्द उपयोग में आ जायें तो कोई एतराज नहीं।घायल अर्द्ध वदन पर शब्दों के तीर घाव किये जा रहे थे।तभी एक समष्टिमूलक अदीब उधर से गुजरे।माजरा उनकी समझ में आ गया।उन्हीने कहा--
-दिलासा जो न करा दे।
-मतलब?' एक अन्य अदीब चिल्लाया।
-यानि कि खुद को ऊपर बताने की इच्छा।
-फिर उर्दू-फ़ारसी और हिंदी के शब्दों का घालमेल?
--शब्द अभिव्यक्ति के माध्यम हैं,चाहे जिस भाषा के हों।भेदभाव नहीं होना चाहिए।
-बेढ़ब की बातें हैं ये सब।भाषा और शब्दों का अनुशासन कायम रहना चाहिए,'पहले से विद्यमान लेखक मंडली ने आलाप किया।
-ओह..हहह,'एक हृदयविदारक चीख सुनाई पड़ी।
-कौन, आप कौन?' वृक्ष की जड़ के पास पड़े रक्तरंजित पाँव विहीन आधे वदन से अदीब ने पूछा।
-भारत।भारत हूँ मैं।कभी आर्यावर्त था मैं।
अदीब चौंक गया।उसने नमन के शब्द कहे जिसमें वर्ण और हर्फ़ मिले जुले थे।
लेखक मंडली ठिठोली करने लगी।

@

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
5 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
9 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
14 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
15 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service