आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय मनन जी
दिए गए विषय पर बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय प्रतिभा जी ,बधाई आपको ,सादर
हार्दिक आभार आदरणीया बरखा जी
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने। मानवेत्तर कथा का उधाह्र्ण ये रचना अपनी अंतिम पंक्ति // तू वो नहीं देख पायगी जो मैं देख रही हूँ। // बहुत कुछ कह जाती है... बहुत सुंदर... बधाई प्रतिभा जी...
हार्दिक आभार आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी
मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,प्रदत्त विषय पर,बधाई स्वीकार करें,इस प्रस्तुति पर ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी
वाह, वाह.
क्या बेहतरीन कथा.
हार्दिक आभार कविता जी हमें इतनी संवेद्नाजनक कथा देने के लिए.
प्रोत्साहन व् सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अजय गुप्ता जी
घिनट्टे
कृषि मजदूर गफलु और उसकी पत्नी ने उत्साह से अपने लड़के का नाम रखा ‘दशरथ’, पर वे दोनों उसे ‘जसरत’ कहकर पुकारते। एक दिन जब वे दोनों अन्य मजदूरों के साथ खेतों में काम कर रहे थे और सभी के बच्चे मेड़ पर खेल रहे थे तभी जमीदार ने आकर जसरत के हाथ पैर गंदे और नाक बहते देख अपनी छड़ी से उसकी पींठ पर धीरे से स्पर्श करते हुए कहा,
‘‘ क्यों रे घिनट्टे ! इतना बड़ा हो गया नाक, हाथ पैर साफ नहीं रख सकता, किसका लड़का है?’’
यह सुनकर गफलु की पत्नी दौड़कर आई, जमीदार के दूर से ही पैर छूकर अपनी साड़ी के पल्लू से जसरत की नाक पोंछते हुए बोली,
‘‘ आपका ही है मालिक !’’
जमीदार के वापस जाने के बाद अन्य सभी बच्चे उसे घिनट्टे कहकर पुकारने लगे, धीरे धीरे उसका पिता भी इसी नाम से पुकारने लगा। माॅं उसे जसरत ही कहा करती। जसरत की उलझन शुरु हो गई। उसकी रोज रोज की उदासी से तंग आकर माॅं ने उसे अपने भाई के गाॅंव भेज दिया। मामा के साथ रहकर उसने जंगल की जड़ीबूटियों से पशुओं की बीमारियाॅं ठीक करने का इतना अभ्यास किया कि आसपास के गाॅवों के लोग अपने बीमार पशुओं का इलाज कराने उसी को बुलाने लगे। वह इन्हीं जड़ीबूटियों का अल्प मात्रा में उपयोग कर गाॅंव के लोगों की छोटी मोटी बीमारियाॅं, मोच और हाथपैर की हड्डियाॅं ‘डिसलोकेट’ हो जाने पर उन्हें भी ठीक करने लगा। एक बार पशुओं में ऐसा रोग फैला कि वे चल ही न पाते और कुछ दिनों बाद मर जाते। जसरत ने उनका उपचार शुरु किया और सफलता मिलने लगी। उसके पिता ने भी अपने जमीदार के इस रोग से बीमार बैलों और भैंसों का इलाज करने के लिए जसरत को बुलाया और उसने जाकर अपनी दवा से उन्हें मरने से बचा लिया। गाॅंव के प्रतिष्ठित लोगों और जसरत के बचपन के मित्रों के सामने जमीदार बोले,
‘‘ गफलु ! तुम्हारे लड़के ने हमारा बड़ा उपकार किया है, बताओ क्या चाहिए?’’
‘‘ कुछ नहीं मालिक! जिन्दगी भर आपका ही नमक खाया है, बस घिनट्टे ने तो उसी का कर्ज उतारना चाहा है ’’ गफलु ने सकुचाते हुए कहा।
अपने पैर के अंगूठे से जमीन को कुरेदते, नीचे देखते हुए जसरत बोला,‘‘ मालिक ! मैं कुछ बोलूॅं’’
‘‘ क्यों नहीं; बोलो, क्या चाहते हो?’’
‘‘उस दिन आपने भले ही प्यार से मुझे घिनट्टे कहा हो, पर था तो वह अपमानसूचक ही। मेरी माॅं के अलावा़ सभी लोग इसी नाम से पुकारने लगे जो मुझे कभी अच्छा नहीं लगा। मालिक ! मुझे मेरा नाम वापस कर दो’’
पश्चाताप में रुंधे गले से जमींदार बोले,
‘‘ अरे, जो सबको जीवन देने का "जस" करने में "जुटा रहता" हो वह ‘‘जसरत’’ नहीं तो और क्या कहला सकता है रे !’’ और नोटों की गिड्डी देने हाथ आगे बढ़ाए पर, वह जमीदार के दूर से ही पैर छूकर वापस चला गया।
मौलिक व अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ टी आर सुकुल जी।प्रदत्त विषय दृष्टि पर लाज़वाब लघुकथा।आपकी इस प्रस्तुति ने मुझे चकित कर दिया।जिस ग्रामीण परिवेश के माहौल का चित्रण किया है, बहुत ही रोचक बन पड़ा है। यथार्थ के बेहद करीब है।मुझे लघुकथा बहुत पसंद आई।विशेषकर इसका शीर्षक।
कभी कभी प्यार कहा शब्द जिंदगी भर के लिए नासूर सा बन जाता हैं,जबकि क्षमा मांगने पर भी। बेहतरीन लघुकथा द्वारा ,सबसे बड़ा बदलाव जमीदार द्वारा जसरत से पश्चाताप में ,माफ़ी के साथ ,उसके काम की नाम के अनुरूप तारीफ़ करना।बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी,
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