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जी निलेश सर,बहुत बहुत शुक्रिया|
वाह। दूसरे और छटवें बेहतरीन अशआर के साथ बढ़िया ग़ज़ल। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोह़म्मद अनीस शैख़ साहिब।
बहुत शुक्रिया उस्मानी साहब |
आदरणीय अनीस जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल ।शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का संज्ञान लें ।
जी आरिफ़ भाई,कुछ अलग करने की कोशिश में ज्यादा अलग हूँ गया है ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
आदरणीय मोहम्मद अनीस शैख़ साहब, अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
शुक्रिया महेंद्र भाई आपने हौसला बढाया है |
उम्दा अशआर हुए हैं भाई अनीस शेख़ जी। मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब की सलाह का संज्ञान अवश्य लें। इस सद्प्रयास हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय मो० अनीस शेख साहब, आपकी कोशिशें बनी रहें. इस सद्प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुभ-शुभ
आद० मो.अनीस साहब अच्छी ग़ज़ल कही है मुबारकबाद देती हूँ ...जिन्दा रहना जुदा भी होके यहाँ ..कर सकते हैं
आदरणीय अनीस साहब, उम्दा कहन, उम्दा गजल। बधाइयाँ।
था जो पत्थर मेरी नज़र में कभी
वो मुहबब्त सिखा गया है मुझे | इस शेर पर विशेष बधाइयाँ।
अच्छी गजल हुई आदरणीय अनीश जी बधाई हो ।
आ. भाई समर जी द्वारा इंगित मिसरा यूँ कर सकते हैं -
ज़िन्दा रहना हो और हो के जुदा
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