साथियों,
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प्रिय शिज्जु शकूर जी, अच्छी ग़ज़ल कही है,दाद कुबूल करें।
कोई आकर सिखा गया है मुझे
ज़िन्दगी जीना आ गया है मुझे
मेरी क़िस्मत कि अपनी महफ़िल में
ख़ुद वो आकर बुला गया है मुझे
पास आकर कोई इशारों में
राज़-ए-उल्फ़त बता गया है मुझे
कोई कमज़र्फ मेरे जीवन पर
करके अहसाँ जता गया है मुझे
धीरे धीरे सही मगर यारो
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"
कोई 'संतोष' ख़्वाब में आ कर
मेरी ग़ज़लें सुना गया है मुझे
मौलिक/अप्रकाशित
बहुत उम्दा ग़ज़ल बधाई होसंतोष जी
जनाब संतोष जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
कृपया आयोजन में अपनी सक्रियता दिखाएँ ।
आदरणीय सन्तोष जी बहुत अच्छी गजल हुई बधाई हो
आ. संतोष जी अच्छी ग़ज़ल है, हार्दिक बधाई आपको
जनाब संतोष साहिब,
अच्छी ग़ज़ल कही, दाद हाज़िर है,,,
...अपनी महफ़िल में खुद वो बुला गया है मुझे....उम्दा,बधाइयाँ।
आ. संतोष दादा,
अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद और बधाई स्वीकार करें
कोई आकर सिखा गया है मुझे
ज़िन्दगी जीना आ गया है मुझे। बहुत ही सहज तरीके से कहा गया गंभीर शे'र और ग़ज़ल का मतला ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आदरणीय संतोष खिरवड़कर जी ।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय संतोष जी। इस प्रस्तुति पर मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
वह वाह भाई संतोष खिरवड़कर। अच्छे अशआर हुए हैं खासकर गिरह कमाल की लगाई है, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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