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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग-1)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

कृपया मुशायरे सम्बंधित अधिक जानकारी एवं मुशायरा भाग 2 में प्रवेश हेतु नीचे दी गयी लिंक क्लिक करें 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

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आ. दण्डपाणि जी मैं आ. निलेश शेवगाँवकर जी की बात से सहमत हूँ। बहरहाल, सहभागिता हेतु बधाई

आदरणीय दंडपाणि जी आदाब,

                        ग़ज़ल के प्रयास हेतु हार्दिक बधाई । गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।

आ. दण्डपाणी जी,
आप को और अभ्यास की आवश्यकता  है...
ढेरों ग़ज़लें पढ़ें जिस से ग़ज़ल  आप में समा सके 
सहभागिता के लिए बधाई 

आदरणीय दण्डपाणि जी बेहतरीन और सफल प्रयास के लिए दिल से बधाई

आद० दण्डपाणी जी दूसरी ग़ज़ल के लिए बधाई लीजिये बाकी गुणीजन कह ही चुके हैं संज्ञान में लें 

आदरणीय दण्डपाणि जी, आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। कृपया गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें। सादर।

भाई दण्डपाणी नाहक जी, ग़ज़ल अभी बहुत मेहनत मांग रही है. सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकार करें. 

आयोजन में आपकी सहभागिता भली लगी आदरणीय दंडपाणि नाहक जी. 

आपका अभ्यास बना रहे. 

शुभ-शुभ

आदरणीय दण्डपाणि नाहक साहब 

अच्छे अशआर कहे हैं ...मश्क़ करते रहें ..और निखार आएगा...बहरहाल मेरी तरफ से ढेर सारी दाद और मुबारकबाद|

आदरणीय दण्डपाणि जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई आपको, सहभागिता हेतु आभार।


*दूसरी प्रस्तुति


ओ बी ओ पर जमा गया है मुझे
पक्का शायर बना गया है मुझे।१।


नभ  में  तारा  सा  उभार गया
बुलबुला कब कहा गया है मुझे।२।


क्या तुझे दी समर ने सीख न पूछ
सब्र करना  तो  आ  गया  है मुझे ।३।

आईना तो  नहीं  हुआ  हूँ मगर
नस्ब फिर भी करा गया है मुझे।४।


लाख कोशिश उसी ने की है तभी
इल्म थोड़ा  तो  आ  गया  है मुझे।५।


नब्ज  मेरी  उसी के हाथ रही
तरबियत दे बचा गया है मुझे।६।


रस्म हर इक निभा रहा हूँ यहाँ
हीन  थोड़े  कहा  गया  है मुझे।७।

मुक्त मन से पढ़ा सबक वो सभी
शायरी नित सिखा गया है मुझे।८।


यत्न कर यश मिलेगा खूब कभी
राज  ये  भी  बता  गया  है मुझे।९।

शख्सियत क्यों न उनके जैसी करूँ
ताज  उनका  जो भा  गया  है  मुझे।१०।


ब्याज से बढ़ असल है यार जहाँ
दीन  रख  ये  बता  गया  है मुझे।११।

           और ये दुमछल्ले

सबसे परिवार में दुलार मिला
मान इतना दिला गया है मुझे ।१२।


रोज  मैं-मैं  की  रट  से दूर हुआ
हमपे अब नाज आ गया है मुझे।१३।

मौलिक/अप्रकाशित


नस्ब = स्थापित
तरबियत=शिक्षा दीक्षा

...........

मित्रों,

मेरी दूसरी प्रस्तुति मूलतः पहले लिखनी शुरू हुई थी  , पर शुरुआत किस अंदाज में करूँ । सूझ नहीं रहा था । अंततः मार्गदर्शक भाई समर जी के अंदाज को ही अपनाया ।

यह प्रस्तुति शताब्दी समारोह और भाई समर जी के सम्मान में कही गयी है । हर मिसरे के प्रथम अक्षर मिलाकर देखिये क्या हासिल होता है । इसे बेहतरीन करने हेतु खुले मन से मार्गदर्शन करें ।

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"सुविचारित सुंदर आलेख "
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सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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