आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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बहुत अच्छा कथानक चुना है भाई विजय जोशी जी, बधाई प्रेषित हैI
आदरणीय विजय जी ,
एक जीवन्त तस्वीर के पीछे की सच्चाई को बहुत खुबसूरती के साथ प्रस्तुत किया है.
उस एक बूँद को देख कर एक पुरानी कविता याद आ गयी.
"आँख का आँसु ढलकता देख कर जी हमारा तड़प कर रह गया"
सादर.
बिलखते मासूम के पेट की आग से ताप पाकर, एक बूंद निकली तो सही, पर आंसू की। अाँखों से छलक कर, गालों तक आई। और उसे सूखने से पहले चित्रकार ने अपनी तस्वीर में कैद कर लिया।
अब उस 'तस्वीर' पर पैसों की वर्षा हो रही थी।----सही कहा ऐसी तस्वीरों को देख कर सब सराहते हैं किन्तु उस तस्वीर की असलियत के पीछे उसकी मूल कहानी के पीछे कोई नहीं जाता |प्रतीकों के माध्यम से बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आपने हार्दिक बधाई आ० विजय जोशी जी ,
धरती का दोहन ,भू-जल का नीचे जाता हुआ स्तर , अकाल, सूखा, भुखमरी जैसी भयावह परिस्थिति को आपने अपने कथा में कम शब्दों में विस्तार देते हुए जो चित्रण किया है वो चकित करता है , चित्रकार द्वारा उन संवेदनाओं के वैश्यीकरण को भी यहाँ खूब कथ्य मिला है . कथा शिल्प के लिहाज से भी सुन्दर है . बधाई स्वीकार करें इस सार्थक सृजन के लिए आदरणीय विजय जी .
आ.विजय जी. अकाल,भूजल के सिमटते स्त्रोत-- सच्चाई पर आधारित इस शानदार लघुकथा के लिये तहे दिल से बधाई स्वीकार करें ।
जनाब विजय जोशी साहिब ,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघु कथा के लिए ... मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
मार्मिक ,कटु और सटीक कटाक्ष हमारी हर दिन रिक्त होती जा रही संवेदनशीलता पर , बधाई इस सार्थक रचना पर आदरणीय विजय जोशी जी
हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जोशी जी! मार्मिक लघुकथा!तसवीर बनाने वाले मालामाल हो जाते हैं परंतु तसवीर का पात्र भूखों मरता रहता है!
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