आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ.सौरभ जी आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी से हमेशा रचनारत रहने का प्रयास सफ़ल होता सा दिखता है.आपको रचना पसंद आई आभार आपका
दोयम दर्जे ने इंसानियत दिखा दी थी, भीड़ धीरे-धीरे छटने लगी। किन्नर का संवेदनशील अन्य हँसी उड़ाने वालों संवेदनहीन समाश्बीनों के मुहं पर तमाचा जड़ने के सामान है | अच्छी लघु कथा हुई है आदरणीया नयना कानिटकर जी
आ.लक्ष्मण लडीवाला जी आपको रचना पसंद आई आभार आपका
गजब का विषय चुना है आदरणीया नयना जी, मेरा मानना है कि गुरुजनों की राय के अनुसार सुधार करने के बाद यह रचना अपने कथ्य के कारण बेहतरीन रचनाओं में भी शुमार हो सकती है| इस पर आगे कार्य अवश्य करें| सादर बधाई आपको इस रचना के सृजन हेतु|
"क़ौमी एकता का सिंहासन" - (लघुकथा)
'क़ौमी एकता सप्ताह' पर आयोजित मशहूर चित्रकारों की शासकीय रेखाचित्रकला प्रदर्शनी दर्शकों के लिए तरस रही थी। शिक्षा विभाग के सख़्त आदेश पर शहर के प्रतिष्ठित विद्यालयों के कक्षा बारहवीं के छात्रों को अवलोकनार्थ वहाँ भेजा गया। पंक्तिबद्ध छात्रों को देखकर चित्रकारों के चेहरे खिल गये । क्रम से रेखाचित्रों का अवलोकन करने के बाद एक विशेष रेखाचित्र को देखकर कुछ छात्र टिप्पणियाँ करने लगे।
अकरम को कोहनी मारते हुए शिवम बोला- "देख, इस सिंहासन के दोनों तरफ़ पहिये जैसी भुजाओं और टांगों से पैरदान तक हमारे धरम का चिन्ह 'ऊँ' (ओंकार) बना है, बाकियों का टेक पर और अगल-बगल में।"
"हां, लेकिन है तो सबसे नीचे न!"
"अबे, जो भी इस सिंहासन पर बैठेगा यानी इस देश में जो रहेगा, वह पहले हमारे धरम को चरण वंदन करेगा, समझे!"
"अब तू भी समझ ले, आराम-सुकून की जगह पर मेरे धरम का चिन्ह 'आधा चाँद व तारा' बना हुआ है, दुनिया में छाया हुआ है!" - अकरम ने सिंहासन की टेक (बैक) पर उँगली रखते हुए शिवम से कहा।
तभी डेविड बोला - "लेकिन घिरा हुआ है हमारे धरम चिन्ह से, देखो टेक के दोनों तरफ़ ये 'क्रॉस' के निशान!"
फिर सुरजीत ने हस्तक्षेप करते हुए कहा- "वाहे गुरु की कृपा, हमारा 'निशान साहिब' तो टेक पर सबसे ऊपर बनाया गया है, क्या बोलते हो इसके लिए, बताओ?"
"मतलब इस सिंहासन पर बैठने वाले के सिर पर भारी, हा हा हा.."- एक शरारती छात्र बोल पड़ा।
उस रेखाचित्र को बनाने वाला चित्रकार चुप्पी साधे हुए हैरत से नई पीढ़ी के विचार सुन रहा था। कुछ शिक्षक भी सुन रहे थे, लेकिन मोबाइल पर बातचीत करने या फोटो लेने में व्यस्त थे।
तभी मुख्य शिक्षक ने छात्रों से कहा- "पल्ले पड़ा कुछ? चलो रे, हो गई फारमेलटी!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
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