आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत बहुत आभार आ ओम प्रकाश जी
//इतने गरीब घर की लड़की के लिए इतने बड़े घर से रिश्ता आया था| उसकी माँ ने उसकी कितनी बलैया ली थी कि क्या किस्मत पायी है // गरीब घर की लड़की को कम आंकने की गलती तो कर दी सुमित ने ...कथा प्रदत्त विषय से न्याय कर रही है ..बधाई इस सारगर्भित रचना के लिए आदरणीय विनय कुमार जी
बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पण्डे जी, अक्सर लोग गलत आकलन कर बैठते हैं
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी। बेहतरीन प्रस्तुति।
पर्दे के पीछे.....
"मिल आए वकील साहब से,क्या कहा उन्होंने, तैयार हो गए वो पैसा देने को। " सुधीर के आते ही सीता ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
"हाँ मिल आया, पर बात नहीं बनी, अब इसमें उनका भी दोष नहीं कई किसानों को लाखों रूपया दे चुके हैं, सबका यही हाल किसी ने भी नहीं लौटाया पैसा । सुधीर हताश स्वर में बोला।
"हाँ सो तो है,इस बाढ़ ने सब तबाह कर दिया।पर सुनो जी अब लेखा कि शादी को एक माह रह गया, कैसे करेंगे का...""।
"अरे नहीं -नहीं तू चिंता मत कर शादी समय पर ही होगी, मैंने कल ही इस मकान को गिरवी रखने का फैसला कर लिया है। "
"क्या कह रहे हो जी,कहा से चुकायेंगें इतना कर्ज, पहले ही.... "।
"धीरे बोल,और सुन लेखा को कुछ पता नहीं चलना चाहिए, तू शादी की तैयारी शुरू कर।"
"ओट में खड़ी लेखा ने सारी बात सुन सुनील को फोन लगाया "हैलो सुनील मैं लेखा, मुझे तुमसे इसी समय जरूरी बात करनी हैI"
"हाँ, बोलो,"दूसरी ओर से आवाज आई।
"क्या तुम सच में मुझसे शादी करना चाहते हो?"
"हाँ पर,ऐसा क्यों पूछ रही तुम "?
"मैं तुम्हें सब बाद में बताउंगी पर प्लीज तुम अपने पिताजी को मना कर दो कि तुम अभी एक साल तक शादी नहीं कर सकते, प्लीज प्लीज सुनील,।
"हाँ पर क्यों "सुधीर ने आश्चर्य से पूछा।
"अगर कल तक तुम्हारे घर से शादी टलने की खबर नहीं आई तो फिर ये शादी शायद कभी न हो पाए सुनील।"
तभी खाने के लिए माँ आवाज सुन लेखा ने फोन काट दिया।
अब बाप- बेटी दोनों खुश -खुश खाने का अभिनय कर रहे थे।
मौलिक व अप्रकाशित।
ऐसे समझदार रिश्तें अगर हों तो कोई समस्या ही न आये संबंधों में| अंत और बेहतर किया जा सकता था, बढ़िया रचना विषय पर, बधाई आपको
बहुत अच्छी लघु कथा लिखी आद० डॉ० वर्षा चौबे जी मुझे बहुत पसंद आई बहुत बहुत बधाई |
मोहतरमा वर्षा चौबे साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बीच का हिस्सा तो याद आ रहा कहीं पढ़ा है हमने ..अब आपने अपनी पुरानी कथा ही यहाँ प्रेषित की हो तो पता न ..बधाई अछि कथा के लिए
खासकर यह लाइन पढ़ी हुई लगी ..."ओट में खड़ी लेखा ने सारी बात सुन सुनील को फोन लगाया "हैलो सुनील मैं लेखा, मुझे तुमसे इसी समय जरूरी बात करनी है "।
बहुत बढ़िया लघुकथा कही है आ० डॉ वर्षा चौबे जीI वाह वाहI प्रदत्त विषय के साथ पूर्ण न्याय हुआ है, हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
//"मिल आए वकील साहब से,क्या कहा उन्होंने, तैयार हो गए वो पैसा देने को। " सुधीर के आते ही सीता ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
"हाँ मिल आया, पर बात नहीं बनी, अब इसमें उनका भी दोष नहीं कई किसानों को लाखों रूपया दे चुके हैं, सबका यही हाल किसी ने भी नहीं लौटाया पैसा । सुधीर हताश स्वर में बोला।//
इन पंक्तियों के बगैर भी रचना पूरा सन्देश दे रही हैI
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