आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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अपनी नयी अवधारणा के लिए इस कथा पर हजारों बधाई , जय हो .
बहुत शानदार लघु कथा वाह्ह्ह सुनील भैया दिल से बधाई इस प्रस्तुति पर | सच में परदे के पीछे से ये भी पुत्र वाद की परम्परा को बढावा देते थे |बहुत सारगर्भित लघु कथा हुई |
कोई लंबी चौड़ी टिप्पणी नहीं । सिर्फ और सिर्फ 'वेलडन सुनील भाई।' नवीनता, मौलिकता और ताजगी लिए इस आयोजन की अब तक की सर्वश्रेष्ठ लघुकथा के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । कीप इट अप ।
मोहतरम सुनील वर्मा साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
रचना तो अच्छी है...लेकिन अंत उपदेशात्मक और विषयानुरूप? ....समाज में परदे के पीछे रहने वाले... वाली लाइन ही इस रचना से अलग लग रही है...
//कि समाज में परदे के पीछे रहने वाले हम लोगों ने अकारण ही जिस तरह बेटे के जन्म को उत्सव का पर्याय बना दिया है, अब उसे बदलने का वक्त आ गया है।"//
इस संवाद की तरतीब सही नहीं है, मेरी राय में यदि इसे प्राण-पंक्ति की तरह कथा के अंत में रखा होता तो इस लघुकथा का प्रभाव बहुगुणित हो जाताI
//धन्यवाद स्वरूप लड़की ने अपनी हथेली में नोट फँसाने के लिए डाली कमला की अँगुली को कसकर पकड़ लिया।//
इस पंक्ति को और सरल बनाएँI
बहरहाल लघुकथा बहुत उत्तम हुई है, जिस हेतु हार्दिक प्रशस्तिवाद प्रेषित है भाई सुनील वर्मा जीI
एक अलग सोच | बढ़िया इस कथा के लिए आदरणीय सुनील भैया | हार्दिक बधाई |
आपकी लघुकथा अच्छी लगी आदरणीय सुनील भाई! हार्दिक बधाई प्रेषित है।
//"हाँ, मुझे पता है। पर मैं सोच रही थी, कि समाज में परदे के पीछे रहने वाले हम लोगों ने अकारण ही जिस तरह बेटे के जन्म को उत्सव का पर्याय बना दिया है, अब उसे बदलने का वक्त आ गया है।// वाह क्या सुन्दर ढंग से आपने प्रदत्त विषय को समाज में व्याप्त लिंग भेद के घिनोने सत्य से जोड़ा है ...ढेरों बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सुनील जी
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