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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 55 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम स्नेही स्वजन,

मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| मिसरों में दो रंग भरे गए हैं लाल अर्थात बहर से ख़ारिज मिसरे और हरे अर्थात ऐब वाले मिसरे|

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Tilak Raj Kapoor

बहुत किया है यकीं कौन बार बार करे
जिसे यकीं हो वही उनपे दिल निसार करे।

हर एक बार मुहब्‍बत में चोट खाता है
तुम्‍हीं बताओ कि दिल किस पे ऐतबार करे।

ज़हे नसीब कहूँ जान भी अगर मॉंगे
मगर है शर्त कभी पीठ पर न वार करे।

न याद अहद दिलाया यही ख़याल रहा
नज़र मिला के उसे कौन शर्मसार करे।

मैं ख़ाक अपनी उड़ा कर उसे दिलाऊँ यकीं
वो मेरी ख़ाक किसी और पर निसार करे।

चलूँ कि वक्‍त हुआ अलविदा कहूँ सब को
करे न याद कोई दिल न बेक़रार करे।

तमाम रात है बाकी, चलो कि दीप बनें
न जाने कब हो सहर, कौन इंतिज़ार करे।
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मिथिलेश वामनकर

जो आसमां के लिए ये चमन निसार करे
कहाँ कयाम करे, कौन सा दयार करे

अजीब जेब है देखो तो सौ गुहार करे
भला वो सुब्ह से ही किस तरह उधार करे

बुझा चराग उजाले का इश्तिहार करे
भला किसी पे कोई कैसे ऐतबार करे

ये मशविरा है यूं दिल को न बेकरार करे
ये इश्क आग है, वो खुद को, होशियार करे

ग़ज़ल, महीन कभी फलसफा वक़ार करे
सुखनवरों का ये लहजा मिजाजदार करे

हमें हसीन सा लम्हा भी जेर-बार करे
हंसी हंसी में कोई दिल का कारबार करे

अरूज़ से न सही, बह्र से करार करे
अदीब कुछ तो अदब पे भी इख्तियार करे

दुआ में हाथ उठे खुशनुमा बयार करे
ख़ुदा से रूह मिले, जिस्म आबशार करे

अभी तो चाँदनी उजियास बेशुमार करो
"न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे"
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गिरिराज भंडारी

गुज़र गुज़र के हवाओं को सोगवार करे
वो तेरी याद है, मुझको भी बेक़रार करे

शजर शजर में हरिक बाग़ के, ख़िज़ाँ लिपटी
कहो ! बहार का वो कितना इंतिज़ार करे ?

नज़र नज़र में वो जो ख़ौफ़नाक मंज़र है
वही तो है, मेरी आँखों को आबशार करे

बिखर बिखर के सभी ख़्वाब गुम हुये,लेकिन
सिसक सिसक के भी दिल उनपे एतबार करे

दबी दबी सी बहुत नेकियाँ दिखीं गुल सी
सभी को आंत की ऐठन ही खार खार करे

नफस नफस में है तस्बीह तेरे नामों की
हरेक लम्हा नज़र दीद बार बार करे

किसी किसी में जिया साथ साथ वहशी भी
किसे कहूँ ? कि वो दामन को तार तार करे

सफर सफर में इरादों का फर्क होता है
कोई है डूबता दरिया में, कोई पार करे

क़दम क़दम में अँधेरा छिपा, बढ़ो फिर भी
“ न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे ”
__________________________________________________________________________________
दिनेश कुमार

नक़ाब चेहरे पे बातें लुआबदार करे
जिसे भी देखिए वो पीठ पर ही वार करे

ग़ज़ल के मतले से ही बज़्म ख्वाब-ज़ार करे
मुशायरे का वो आग़ाज़ शानदार करे

निगाह-ए-नाज़ से दिल का मेरे शिकार करे
मैं बेक़रार हूँ मुझ से भी कोई प्यार करे

ये सिर्फ़ ख़्वाबों किताबों की बात लगती है
कि इक ग़रीब की इमदाद मालदार करे

नए ज़माने का रहज़न नया मिज़ाज उसका
वो लूटता है मगर पहले होशियार करे

चराग़ ले के भी ढूंढेंगे तो मिलेगी नहीं
जहाँ में एक भी हस्ती जो माँ सा प्यार करे

हवा के ज़ोर से ही कश्तियाँ नहीं चलतीं
कि नाख़ुदा भी ख़ुदा से ज़रा गुहार करे

ग़मे हयात में वो, सोच कर यही तो मरा
" न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे "

तसव्वुरात के अफ़्लाक से ये उतरा है
मेरा कलाम तो मौसम भी ख़ुशगुवार करे

न जाने कौन सी बस्ती का तू है बाशिंदा
तुझे 'दिनेश' कोई ग़म न बेक़रार करे ...?
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Samar kabeer

वफ़ा की राह में दामन को तार तार करे
कोई तो आए ,मुझे आके बेहिसार करे

बताऐं कैसे , कि दिल किस तरह मचल्ता है
हमारे सामने ख़न्जर पे जब वह धार करे

किसी ख़ुशी की नहीं है तलब मिरे दिल को
तुम्हारे ग़म की तमन्ना ये बार बार करे

वह मैं नहीं हूँ कोई और होगा दीवाना
तिरे ख़ुलूसो वफ़ा पर जो एतबार करे

ग़रीब -ए-शह्र के दिल से दुआ निकलती है
ख़ुदा किसी को न दुनिया में बे दियार करे

इन्हें तो बम के धमाके ही अब जगाऐंगे
जो सो रहें हों उन्हें कौन हौश्यार करे

भरौसा किस पे करें, कुछ समझ नहीं आता
जब आदमी का यहाँ आदमी शिकार करे

चलो ब जानिब-ए -मंज़िल उखाड़ लो ख़ैमे
" न जाने कब हो सहर कौन इन्तिज़ार करे"

निकल चलो कि ज़मीं पाँव न पकड़ले कहीं
" न जाने कब हो सहर कौन इन्तिज़ार करे "

तमाशा एहल-ए- करम का जो देखना चाहे
"समर",वह भैस फ़क़ीरों का इख़्तियार करे
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Krishnasingh Pela

किसी को हक़ नहीं क़ुदरत को शर्मसार करे
कि आबरू को सरे आम तार तार करे

दीया जो जल ही गया तो कहाँ विचार करे ?
कि जानबूझ के बुझ जाये अंधकार करे

गुलाब की है तमन्ना कोई दीदार करे
ये छेड़खानी हवा आ के बार बार करे

वो शख़्स ग़ैर नहीं है उसे झिझक कैसी ?
बेख़ौफ़ आ के वो सीने में मेरे वार करे

सूरज में आग औ चंदा में दाग देखे हैं
तो आज कैसे वो खुद पर भी एेतबार करे

सभी का ख़्वाब है औलाद उसकी ऐसी हो
कि उनकी नाक उठाके क़ुतुब मीनार करे

उसी के पाँव सदा चूमती है मंज़िल, जो
सफ़र की मस्त बहारों को दरकिनार करे

धरा ने इन्द्रधनुष ले के लक्ष्य साधा है
कि बाण व्योम की छाती को आरपार करे

ये कायनात सभी की है जीओ, जीने दो
ग़दर की राह कोई भी न इख़्तियार करे

जहाँ में इश्क़ के खेमे सजे हैं तो तय है
कि वो भी 'आज नक़द और कल उधार' करे

उठो मसाल लिए, रात को चुनौती दो
"नजाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे"
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arun kumar nigam

विलासिता में सभी,कौन माँ से प्यार करे
सवाल एक खड़ा , कौन जाँ निसार करे |

स्वतंत्रता के लिये प्राण कर गये अर्पित

उन्हीं की याद हमें आज बेकरार करे |

सभी तो पूत मगर वह सपूत है सच्चा
कफ़न पहन के चले, मौत अंगीकार करे |

गुलों पे वक्त पड़ा , बागबां हुये गायब
चमन गवाह,हिफाजत का काम खार करे |

किसी दिये को बना आफताब तू अपना
न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे |
__________________________________________________________________________________
umesh katara

मेरा कोई तो नहीं जो कि ऐतव़ार करे
व़फा निभाये मुहब्बत में इंतिज़ार करे

यकीं करे न करे वो ही जिन्दगी है मेरी
करे ज़लील मुझे चाहे तार तार करे

मेरे नसीब बता कब तलक मलाल करूँ
उसे बतादे कोई अब न बेक़रार करे

उज़ड़ न जाय चमन गिर न जाये सूख शज़र
कोई तो हो जो कि बगियाँ मेरी बहार करे

मिले खुशी भी उसे और जिन्दगी में चमक
दुआ यहीं ये मेरा दिल भी बार बार करे
__________________________________________________________________________________
शिज्जु "शकूर"

मुझे न दुनिया उन उश्शाक़ में शुमार करे
कि कोई तंगनज़र जिनपे इख़्तियार करे

न तीर में वो असर है न ये कटार करे
जिगर हो चाक जो अपना ही कोई वार करे

तेरे लबों के तबस्सुम से खिल उठे दिलो जाँ
जो ये करे मेरे दिलबर न वो बहार करे

हर एक लफ़्ज़ गुहर की तरह चमकता है
मेरी ग़ज़ल को तेरा हुस्न ताबदार करे

दिले हरीफ़ में नादान फ़ैज़ ढूँढे है
ख़ुलूसे शम्अ हवाओं पे ऐतबार करे

जला चराग न महरूम रौशनी से रहें
“न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे”

न जाने कैसे हवादिस से ज़िन्दगी गुज़री
कि अब गुरेज मुहब्बत से अश्क़बार करे
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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)

कुछ और दिन ही सही मेरा इंतिज़ार करे
मैं उसको प्यार करूँ वो भी मुझको प्यार करे

नज़र का तीर मेरे दिल के आर पार करे
मेरा भी चाहने वालों में वो शुमार करे

नज़र उठा के जो देखे गुनाहगार करे
तवाफ़ चेहरे का मेरे वो बार बार करे

उठो नमाज़ पढ़ें और ज़िक्रे यार करें
न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे

हम उसके झूठ का तो ऐतबार कर लेंगे
हमारी बात का वो भी तो ऐतबार करे

मिलेगा तुमको कहाँ मेरे जैसा दीवाना
खुद अपने हाँथ गिरेबां जो तार तार करे

मैं जिसपे जान छिड़कता हूँ एक मुद्दत से
वो मेरी तरह कभी मुझपे जां निसार करे

बड़ा करीम है वो और बड़ा रहीम भी है
मैं जो भी मांगूं दुआ पूरी किर्दीगार करे

किसे है वक्त ज़माने में आज ऐ "गुलशन"
जो तेरे वास्ते दिल अपना बेकरार करे
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rajesh kumari

तेरा ख़याल तेरी चाह बेक़रार करे
दिली सुकून की चादर को तार-तार करे

उजड़ गया था चमन नफरतों की आंधी में
तेरा करम ही तुझे आज शर्मसार करे

खड़ा हुआ वो लिए हाथ में कई पत्थर
मिलेगा प्यार से वो कौन एतबार करे

करेगा फ़ख्र ज़माना उसी शहादत पर
जो अपनी जान तिरंगे तले निसार करे

हवाएँ तुंद सफीनों को मोड़ लाओ अब
मिज़ाज कौन सा सागर ये अख्तियार करे

वजूद जिसके बिना जानता अधूरा है
उसी लहर को समंदर हदों से पार करे

पँहुचना है मुझे मंजिल पे वक़्त से अपनी
न जाने कब हो सहर कौन इन्तजार करे

बुरा है हश्र तेरा आज काटकर जंगल
शिकार खुद यहाँ लोगों का अब शिकार करे

फ़लक के चाँद की सूरत बिगाड़ने वालो
बचोगे तुम कहाँ कुदरत ही होशियार करे
______________________________________________________________________________
Dr Ashutosh Mishra

कली चमन की भला कैसे ऐतवार करे
वो कैसे मानं ले भंवरा भी उससे प्यार करे

वतन का सच्चा सिपाही मुझे वही लगता
वतन के वास्ते जाँ अपनी जो निसार करे

हवा ने जब भी उजाड़ा चमन थी मौन कली
मगर वो रोये यही काम जब बहार करे

है चारसू ही गया फ़ैल अँधेरा है घना
न जाने कब हो सहर कौन इन्तिज़ार करे

जो काम कर न सका वो फ़कीर जीकर भी
वो काम उसके सभी उसकी ये मज़ार करे

तेरे नगर में अमीरों का बोलबाला है
तू मुझ गरीब को अपनों में क्यूँ शुमार करे

ठहर के अश्क हंसी रुख पे मोतियों की तरह
हैं शायरों को जमाने से बेक़रार करे

ख़ुदा की रोज खिलाफत यूं करता है आशू
वो बदनसीब से भी प्यार बेशुमार करे
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नादिर ख़ान

तुझे ये हक़ है सितम मुझपे तू हज़ार करे
मगर वकार को मेरे न तार –तार करे

तेरी ही फ़िक्र में गुज़री है सुब्हो-शाम मेरी
कभी तो मुझको भी अपनों में तू शुमार करे

मै तेरे साथ हूँ जब तक तुझे ज़रूरत है
तुझे ये कैसे बताऊँ कि एतबार करे

तू मेरे साथ रहा और दो कदम न चला
अजीब फिर भी भरम है कि मुझसे प्यार करे

भुला चुका हूँ, नहीं है जुबां पे नाम तेरा
ये बात और है, दिल अब भी इंतिज़ार करे

सफर कठिन है बहुत और दूर है मंज़िल
न जाने कब हो सहर कौन इंतज़ार करे
____________________________________________________________________________
हरजीत सिंह खालसा

तेरी वफ़ा से शिक़ायत हज़ार बार करे,
मगर ये दिल ये दीवाना तुझ ही से प्यार करे...

मैं उम्र भर न करूँ ख्वाहिशें अज़ादी की,
अगर तू अपनी निगाहों में गिरफ़्तार करे...

कि ऐक ख्वाब अधूरा रुका हुआ है अभी,
कहो ये रात से नींदे ज़रा उधार करे,

चराग़े दिल को जला लो कि रौशनी बिखरे,
न जाने कब हो सहर कौन इन्तिजार करे

खुदा तलाश लिया लो दुआ कबूल हुई,
मगर 'विशेष' यहाँ किसपे ऐतबार करे....
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लक्ष्मण धामी

चमन में शूल तो बेशक सुमन से प्यार करे
हवा ही पर न हवाओं का एतबार करे

जो शख्स जात का अपनी जरा विचार करे
वो कैसे नार की इज्जत को तार -तार करे

खुदा तो खूब ये चाहे कि नामदार करे
धरम के नाम से आदम न व्यर्थ रार करे

बदी को त्याग के नेकी को हमकनार करे
करम से रोज मगर यह तो शर्मसार करे

कभी करार की बातों से बेकरार करे
उड़ा के नींद मेरी ख्वाब पायदार करे

झटक के जल्फ़ निगाहों को जब कटार करे
यही अदा तो तेरी सब को कर्जदार करे

पता है रात बहुत जुल्म अंधकार करे
गजर की देर भी उम्मीद का शिकार करे

हताश घर को जलाना नहीं ये सोच के पर
न जाने कब हो सहर कौन इंतिजार करे

गमों के बोझ से राहत मिले हमें भी कहीं
हॅसी की बात अगर आज गमगुसार करे

बहुत हुआ कि कटी उम्र खंडहर सी मेरी
खिजा को लूट ‘मुसाफिर’ कोई बहार करे
___________________________________________________________________________________
लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

रखे सदा अपनापन हमें नहीं शर्मसार करे
उदारवाद सदा ही सभी जन से प्यार करे |

अमानता रखदी तो नहीं रही वह अपनी
रखे वही गिरवी चीज जिसे न प्यार करे

गरीब लोग धन्ना सेठ से नहीं कुछ चाहे
सभी अमीर नहीं चोर आप एतबार करे |

हिसाब कौन करे आप तो नहीं सक्षम इसमें
यकीन हो जिसको भी वही तो तैयार करे।

अलाव और जले रात यही अपना सपना
न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे |
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मोहन बेगोवाल


रहे न दिल से कभी दूर वो जो प्यार करे
रहे करीब न रिश्ता, जो तार तार करे

दिखा गया जो नजारा करीब फिर न हुआ
हमारे दिल को हमेशा जो बेकरार करे

अभी जो खेल दिखाये चाहे हसीन सही
न दिल कभी ऐसे में चाहूँ उसे सुमार करे

अभी कोई न मिला रात को जो साथ चले
न जाने कब हो सहर कौ न इंतिजार करे

उसी ने जब यही बताया तो न बात बनी
बताए दिल से कोई तो वो ऐतबार करे
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वेदिका 

ये दिल तो ठहरा अनाड़ी जो प्यार प्यार करे
मेरा इलाज़ तो अब कोई जानकार करे

दिए हैं जिसने हमेशा ही प्यार में धोखे
उस एक शख्स से क्यों प्यार बार बार करे

यही बहुत है कि वो मेरे पास आ बैठे
भले ही बज्म में वो मुझको शर्मसार करे

चरागे दिल ही जला लो घना अँधेरा है
'न जाने कब हो सहर कौन इंतज़ार करे'

करूं दुआ मै यही रात दिन कि मेरे खुदा
किसी के खाब को कोई न तार तार करे

खुदा के खौफ से डरता नहीं है क्या ज़ालिम
ये किसकी आड़ में तू गलतियाँ हज़ार करे

बहुत सम्भल के गुजरना है बाग़ से हमको
न जाने फिर से नया खेल क्या बहार करे
____________________________________________________________________________
SURINDER RATTI

गुनाह रोज़ वो गिन-गिन के बेशुमार करे ।
बेकार हैं उसकी बातें शर्मसार करे ।।

शमीम-ए-यार हो पास आंखें चार करे,
अगर बहे दरिया आग का वो पार करे।

फ़ुज़ूल ही कहते प्यार तुम से है हमको,
गली-गली बदनीयत मुझे ख्वार करे।

ज़रा-ज़रा चोट लगती दीदा-ए-तर हैं ,
जुबां चले फिर शमशीर सी शिकार करे ।

दुआसलाम नहीं बात भी नहीं उनसे,
मैं दस्तरस हरपल फिर भी दरकिनार करे ।

चलो चलें अब मंज़िल पे वक़्त रहते हुए,
न जाने कब हो सहर कौन इन्तिज़ार करे ।

समझ न पाये कभी लोग हासिले मतलब,
हयात है पुरनम कैसे खुशगवार करे ।

खफ़ा नहीं हम "रत्ती" दुआ करें खुदा से,
बचा रखे बलाओं से न सोगवार करे ।
________________________________________________________________________________
भुवन निस्तेज


वो राज़दार मेरा बात धारदार करे
अज़ीब दे मुझे तुहफा के सोगवार करे

जिसे ये दिल मिरा खुद से भी बढ़ के प्यार करे
वो शख्स घात करे वार बार बार करे

जहाँ पे मंच को नेपथ्य वश में रखता है
वहाँ पे फ़न को क्यों फनकार शर्मसार करे

ये राजनीति है इसमें अज़ब तमाशे है
यहाँ पे फूल ही दे घाव फिर क्या खार करे

ये धुंद सर्दियों की ओढ़ के जो बैठा है
वो सूर्य सर्द हवाओं पे भी विचार करे

ये कहके आधी रात को चले हैं सोने चराग़
'नजाने कब हो सहर कौन इन्तिज़ार करे'
_______________________________________________________________________________

मिसरों को चिन्हित करने में कोई त्रुटि हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

 

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Replies to This Discussion

आदरणीय राणा सर, मुशायरे की ग़ज़लों का संकलन और लाल - हरा करने का काम बहुत श्रमसाध्य है. (मैंने भी प्रयास किया था दिमाग की चकरघन्नी बन गई)  आपने इतनी जल्दी संकलन प्रस्तुत कर दिया. इसके लिए साधुवाद और आभार . सफल आयोजन और संकलन के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है.

आदरणीय राणा प्रताप भाई , एक ही महीने में दूसरी बार आपकी लगन का परिचय मिला । बहुत बहुत साधुवाद । एक और तरही मुशयरा के सफल आयोजन और इस संकलन के लिये बहुत बधाइयाँ ।

संकलन मेरे लिए मात्राओं के सीखने का अच्छा स्रोत रहा है, OBO का सदस्य बनने के बाद से ही पिछले कुछ संकलनों को अच्छी तरह पढ़ा है। काफी सहायता मिलती है।इस बार भी मिली। बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी।
ये कहके आधी रात को चले हैं सोने चराग़.... इस मिसरे को पढ़ने में नाम मात्र दिक्कत आती है शायद।

संकलन मेरे लिए मात्राओं के सीखने का अच्छा स्रोत रहा है-----बिलकुल सही कहा आदरणीय दिनेश भाई जी, मात्राओं का अभ्यास करने के लिए मैंने इस बार खुद संकलन कर तक्तीअ करने का प्रयास किया था. 

आ० राणा प्रताप जी,तरही मुशायरे की ग़ज़लों के संकलन न्यायसंगत विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करने पर आपको हार्दिक बधाई. सभी ग़ज़लकारों और आपको आयोजन की सफलता पर दिल से बहुत- बहुत मुबारकबाद.  

एक साथ सभी ग़ज़लों को पढ़ने का एक अलग ही आनन्द है. संकलन के लिए हार्दिक बधाई.

बहुत कम समय में मुशायरे का संकलन प्रस्तुत कर सभी को लाभन्वित किया है आदरणीय राणा प्रताप जी ने । अत: आपको हार्दिक बधाइ ! ग़ज़ल में जो दोष रह गये हैं उन्हें महसूस करने का अवसर प्राप्त हुआ । यदि संशोधन संभव हो तो मैं पुनः आप से निवेदन करूँगा कि इस ग़ज़ल के चौथे व पाँचवे शेर को निम्नानुसार संशोधन करने की कृपा करें :

चौथे शेर का विकल्प:-
वो शख़्स ग़ैर नहीं है उसे झिझक कैसी ?
वो इत्मीनान से सीने में मेरे वार करे

पाँचवे शेर का विकल्प:-
दिखाई दाग दिए चाँद निहारा जब भी
वो आज कैसे स्वयं पर भी एेतबार करे

छठा शेर दोषमुक्त ही है संकलन में परंतु 'उसकी'और 'उनकी' का प्रयोग कुछ अरुचिकर लग रहा है । अत: इस का भी विकल्प रखता हूँ :-

सभी का ख़्वाब है औलाद हो तो ऐसी हो
कि उनकी नाक उठाके क़ुतुबमीनार करे

प्रस्तुत विकल्पों से ग़ज़ल दोषमुक्त हो सकती है या नहीं, इतना जानने के लिए मैं व्यग्र हूँ, कृपया संशय निवारण करें ।

आदरणीय  राणा सर त्वरित संकलन के माध्यम से आपने हम लोगों का मार्ग दर्शन किया । लिखने के बाद अकसर  जेहन मे संशय सा होता है हालांकि कुछ जानकारी तो सुधिजनों के कोमेंट्स से पता चल जाती है परंतु फिर भी  संकलन का इंतज़ार रहता है जैसा लगता है मानो रिज़ल्ट का इंतज़ार रहता है ।सादर .....

आदरणीय भाई राणा प्रताप जी को इस संकलन के लिए हार्दिक बधाई....

आदरणीय राणा प्रताप जी, मुशायरे की ग़ज़लों का संकलन और लाल - हरा करने का श्रमसाध्य कार्य नवसिखियों के लिए तो बहुत उपयोगी है इसके लिए आप वाकी  साधुवाद के पात्र है | मैंने कुछ प्रयास किया है अगर सुधार हो पया हो तो अवलोकन कर संशोधित करे | सादर -

रखे दिलों में मुहब्‍बत, न शर्मसार करे 

उदारवाद सदा ही सभी से प्यार करे |

रखे अमानत जिसे गर छुड़ा भी न सके

रहे नहीं मलाल जिसे न आप प्यार करे |

 गरीब लोग नहीं चाहते धनी खैरात दे

सभी अमीर नहीं चोर आप विश्वास करे |

 हिसाब कौन करे आप भी नहीं जानते

यकीन हो जिसको भी वही तैयार करे ।

तमाम रात बितादे यही गर अलाव जले

न जाने कब हो सहर  कौन इंतिज़ार करे | 

जैसे इम्तहान के बाद नतीजों का इंतज़ार रहता है, वैसे ही हमें भी इस संकलन की प्रतीक्षा रहती है. आदरणीय राना जी इतनी व्यस्तता के बाद भी इस श्रमसाध्य कार्य को त्रुटियों को इंगित कर अंजाम देते हैं वह प्रणम्य है.

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