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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

पिछले 83 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-84

विषय - "सूर्य/सूरज"

आयोजन की अवधि- 13 अक्टूबर 2017, दिन शुक्रवार से 14 अक्टूबर 2017दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु,  एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.    

  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 13 अक्टूबर 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें


मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आ0 सुशील सरना जी बहुत ही भावपूर्ण सृजन। अशेष बधाई।
आदरणीय सुशील सरना जी,सूरज उदास हो गया
बहतरीं प्रस्तुति ।हार्दिक बधाई स्वीकारें

आदरणीय सरना जी, सूरज के ताप को धरा पर उतरने में अवरोध होता है, सूरज उदास हो जाता है; जब वन प्रांतर के बेतहाशा क्षरण से धरती पर तप्त किरणों बरसने लगती हैं, तब भी सूरज उदास हो जाता है; स्वेद कणों में लथपथ मानव को देखकर भी सूरज उदास हो जाता है; जब सूरज के अहं के ताप को साँझ की शीतलता हर लेती है, तब भी सूरज को उदासी घेर लेती है...अद्भुत कल्पना...बहुत बहुत बधाई !

जनाब सुशील सरना जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
महोत्सव की अन्य रचनाओं से बिल्कुल अलग सूरज की उदासी, कारकों/कारणों का विचारोत्तेजक चित्रण। सूरज का पर्यवेक्षण। सादर हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।

पेड़ 
सवयं सहते रहे धूप
मगर 
अपनी छाया से 
धरा को जलने न दिया 
देख त्याग पेड़ों का 
सूरज 
उदास हो गया.//...अपने ताप के प्रति  सूरज की ये ग्लानि  का भाव , .मानव के कृत्यों के प्रति रोष और चाँद के आने से अपने भविष्य के प्रति चिंता ,,सूरज के उदास मन को खूबसूरती से टटोला है आपने  हार्दिक बधाई इस सार्थक प्रस्तुति पर आदरणीय सुशील सरना जी 

आ. भाई सुशील जी , भावपूर्ण रचना के लिए बधाई ।

वाह ! सूरज  भी श्रमिक की परेशानी से उदास हो जाता है. बहुत सुंदर भाव लिया है आदरणीय सुशील सरना साहब. बहुत सुंदर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर.

आदरणीय सुशील सरना जी, सूरज का उदास होना कई आयामों से उभर कर आ रहा है. यह इस रचना की विशेषता है.

इस अभ्यास और निवेदन केलिए हार्दिक बधाइयाँ 

शुभ-शुभ

आदरणीय सुशिल सरना सर, आपने बहुत बढ़िया कविता लिखी है. इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई. सादर 

ढल जाएगी रात ये सूरज निकलेगा
बदलेंगे हालात ये सूरज निकलेगा

बह जाएगा आँसू का एक इक क़तरा
थमनी है बरसात ये सूरज निकलेगा

पिघलेगी ज़ंजीर गु़लामी की इकदिन
होगी नई शुरूआत ये सूरज निकलेगा

श्रम की देवी को हम स्वेद से नहलाकर
करेंगे जब प्रणिपात ये सूरज निकलेगा

अभी वज़ीरों की है चाल, ज़रा दम लो
देंगे शह और मात ये सूरज निकलेगा

कब तक ये इंसान कराहेगा इसपर
कितने और आघात ये सूरज निकलेगा

अपने सपनों पर अपनी उम्मीदों पर
रुकेगा ये हिमपात ये सूरज निकलेगा

किसने किसकी पीठ पे ख़ंजर मारे हैं
होगी तहकीकात ये सूरज निकलेगा

राजव्यवस्था पर जो अब तक क़ाबिज़ है
मिटेगा पक्षाघात ये सूरज निकलेगा

घाटी से केरल तक धूप निकलनी है
त्रिपुरा से गुजरात ये सूरज निकलेगा

शबनम की बूंदें मोती सी चमकेंगीं
महकेंगे ज़र्रात ये सूरज निकलेगा

मौलिक एवं अप्रकाशित।
पिघलेगी ज़ंजीर गु़लामी की इकदिन
होगी नई शुरूआत ये सूरज निकलेगा वाह!वाह!! बहुत ही प्यारा शे'र ।
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र उम्दा बन पड़ा है । बहुत-बहुत बधाई आदरणीय बलराम धाकड़ जी ।

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