For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १९

परम स्नेही स्वजन,

देखते ही देखते हम ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के उन्नीसवें चरण में प्रवेश कर गए | प्रयोग के तौर पर प्रारम्भ हुआ यह सिलसिला आज कई नए फनकारों के उभरने का सबब बन गया है और भविष्य में भी आशा है कि प्रतिष्ठित रचनाकारों का मार्गदर्शन इसी प्रकार मिलता रहेगा | हर बार की तरह ही इस बार भी हम एक नया मिसरा लेकर हाज़िर हैं | इस बार का तरही मिसरा, महानतम शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है | इस बार की बह्र भी खास है और हो सकता है कि थोड़ा कठिन भी लगे पर यकीं मानिए जब एक बार आपके दिमाग में फिट हो जायेगी तो शेर तो खुद ब खुद निकल कर आने लगेंगे | तो चलिए आप और हम लग जाते हैं और अपने ख़ूबसूरत ग़ज़लों से मुशायरे को बुलंदी पर पहुंचाते हैं |

"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"

बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ

चित्र में तकतीई करते समय जहाँ पर मात्राओं को गिराकर पढ़ा जा रहा है उसे लाल रंग से दर्शाया गया है|

रदीफ: में

काफिया: आब (हिसाब, नकाब, अजाब, किताब आदि)

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिककर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें|

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ जनवरी दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० जनवरी दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

मुशायरे के समापन पर पिछली बार की तरह ही सभी बेबह्र और बाबह्र शेरों को अलग अलग रंगों से दर्शाते हुए ग़ज़लों को संग्रहित कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १९ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ जनवरी दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |

बह्र को समझने के लिए एक विडियो भी नीचे लगाया जा रहा है जिसका उद्देश्य मात्र यह है कि यह धुन आपके दिमाग में फिट बैठ जाए |

मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह

(सदस्य प्रबंधन)

ओपन बुक्स ऑनलाइन

Views: 13745

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

छोटा है घर जरूर मगर दिल तो है बड़ा

आने की खबर दीजिए खत के जवाब में,...........ऐसे न्योते को कौन ठुकराए

हाथों का देख जादू करामात आँख की

देखो बदल न जाय ये पानी शराब में, ..............क्या बात है....मजा आ जाए

आओगे सनम बन के तो फिर जा न पाओगे

'आलोक' ला के देखिये तशरीफ़ ख्वाब में,.........दुआ है,.ख्वाब हकीकत हो जाए

हसीन आगाज.....

छोटा है घर जरूर मगर दिल तो है बड़ा

आने की खबर दीजिए खत के जवाब में,---- बहुत खूब

//हाथों में है कमाल तो जादू निगाह में

देखो बदल न जाय ये पानी शराब में//

बहुत शानदार ग़ज़ल अलोक जी 

देर से reply के लिए क्षमा चाहता हूँ,

बहुत ही अच्छी लगी ये ग़ज़ल| सभी शेर बहुत ही अच्छे लगे|
पहले शेर से लेकर अंतिम शेर तक, बहुत बढ़िया|

बहुत खूब आलोक जी..बहुत उम्दा ग़ज़ल से शुरुआत हुई. बधाई आपको.

ख़त दूसरा रख आऊँ, फिर से चनाब में
मैं जानता हूँ, जो वो लिखेंगे जवाब में.

कोई राह भी दिखती नहीं, इतना अँधेरा है,
खुर्शीद छुप के बैठा है, क्यूँ कर नकाब में.

मद्धम सी रौशनी हुई, मायूस रात है,
कैसा ये दाग अबके लगा, माहताब में.

जो दिन ख़ुशी के थे, यूँही पल में गुज़र गए,
अब देखें क्या बचा है, जहान-ए-खराब में.

मिट्टी की कोख चीर के सोना निकाल दे,
इतना सकत कहाँ है अब, दरिया के आब में.

इससे निकलने की कोई तरकीब भी तो दे,
तू मुझको ले के, आ तो गया है अज़ाब में.

आजिज़ थे ऐसी कतरा-कतरा मैकशी से हम,
आखिर डुबो के छोड़ दी, प्याली शराब में.

घटायें देस की, परदेस में संदेशा लायी हैं,
अब लौट चल, हासिल है क्या आखिर सराब में.

//जो दिन ख़ुशी के थे, यूँही पल में गुज़र गए,

अब देखें क्या बचा है, जहान-ए-खराब में.//
बहुत खूबसूरत शेर कहा  है भाई अरविन्द जी !
केवल यही नहीं पूरी की पूरी गज़ल ही जोरदार है ....बहुत-बहुत बधाई मित्र ! :-)

शुक्रिया ज़नाब .

मान्यवर अरविन्द जी

आजिज़ थे ऐसी कतरा-कतरा मैकशी से हम,
आखिर डुबो के छोड़ दी, प्याली शराब में.

घटायें देस की, परदेस में संदेशा लायी हैं,
अब लौट चल, हासिल है क्या आखिर सराब में.

बहुत ही उम्दा शेर कहा है लेकिन थोडा उदास दिखता है उम्मीद का दामन मत छोडिये आपके अगली गज़ल के इंतज़ार में आपका बृजेश

आपकी कही पर मैं आपको सलाम भेज रहा हूँ डाक्टर साहब.  सही है उम्मीद छलावा नहीं, मायना है. बहुत सही कहा आपने.

सादर

 

अरविन्द जी आपका सादर स्वागत है. आपकी पूरी ग़ज़ल लिहाज़ में है. किसी एक शे’र पर क्या कहूँ ?

मतले ने तो वो बात कही कि मैं तेरे खत गंगा में बहा आया हूँ  की गूँज उभर आयी. बहुत खूब ! यों तो सारे अश’आर कहन के लिहाज से उम्दा हैं, मग़र कुछ को अण्डरस्कोर करने से खुद को नहीं रोक पा रहा हूँ.

मद्धम सी रौशनी हुई, मायूस रात है,

कैसा ये दाग अबके लगा, माहताब में...   ..  ...  माहताब के मआल की फ़िक़्र आपके कहे को ऊँचाइयाँ दे रही है.

 

जो दिन ख़ुशी के थे, यूँही पल में गुज़र गए,
अब देखें क्या बचा है, जहान-ए-खराब में...  ..   ..वाह-वाह !! ..

 

मिट्टी की कोख चीर के सोना निकाल दे,
इतना सकत कहाँ है अब, दरिया के आब में... ..  मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें, अरविन्द जी.

 

आजिज़ थे ऐसी कतरा-कतरा मैकशी से हम,
आखिर डुबो के छोड़ दी, प्याली शराब में... .  ...  आह्हाह ! इस एक शे’र पर सौ ग़ज़ल क़ुर्बान !! .. बहुत खूब भाई जी.

 

घटायें देस की, परदेस में संदेशा लायी हैं,
अब लौट चल, हासिल है क्या आखिर सराब में.. . इस सवाल का ज़वाब भला क्या कौन दे ? खुद ही अब लौट चल.

 

इस ग़ज़ल के लिये आपको बधाइयाँ.  अरविन्दभाईजी, आप प्रोफ़ाइल में अग़र हालिया फोटू चस्पां कर दें तो हम सभी पर उपकार होगा. और थोड़ा खुश हो कर कहें.. .

मिट्टी की कोख चीर के सोना निकाल दे,
इतना सकत कहाँ है अब, दरिया के आब में......सोना hi hai ye gazal Arvind ji.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - उस के नाम पे धोखे खाते रहते हो
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
10 hours ago
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
20 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"  कृपया  दूसरे बंद की अंतिम पंक्ति 'रहे एडियाँ घीस' को "करें जाप…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"पनघट छूटा गांव का, नौंक- झौंक उल्लास।पनिहारिन गाली मधुर, होली भांग झकास।। (7).....ग्राम्य जीवन की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"    गीत   छत पर खेती हो रही खेतों में हैं घर   धनवर्षा से गाँव के, सूख गये…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"गांव शहर और ज़िन्दगीः दोहे धीमे-धीमे चल रही, ज़िन्दगी अभी गांव। सुबह रही थी खेत में, शाम चली है…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service