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वो मुझसे दूर होती गई
और मैं देख्ता रहा चुपचाप
कुछ कर न सका
दुख की सीमा मत पूंछो
कितना कम्मपित था हृदय अरे
मन भीषण सन्ताप से पीडित था
कुछ कर न सका
कुछ कर न सका हे नाथ
वो मुझसे दूर होती गई
और मैं देख्ता रहा चुपचाप
मानव हृदय भी कैसा है
कुछ सोच रहा कुछ होता है
मानव हृदय भी कैसा है
कुछ सोच रहा कुछ होता है
बस में इसके कुछ भी तो नहीं
बस पडा पडा ये रोता है
वो दूर गई जाती ही रही…
Posted on April 10, 2023 at 1:30am
तेरे आकर्षण का पल पल प्रतिकर्ष सताता है
सामजिक ताना बाना मिरी उलझन बढ़ाता है //
नदिया के पास जाऊं तो शीतल हो जाऊं
साथ दो अगर तो मैं मुस्कान बन जाऊं //
आकर्षक सा छद्म आव्हान मुझे बुलाता है //
सामजिक ताना बाना मिरी उलझन बढ़ाता है //
तुमसे कहने का मैं कोई मौका न छोड़ता
बस एक इशारा मिलता तो ही तो बोलता //
ऊहा पोह के सागर में अब गोता खाता हूँ
सामजिक ताना बाना मिरी उलझन बढ़ाता है //
दर्द की बात न करूंगा दर्द अब बेमानी हुआ
चाय…
ContinuePosted on February 2, 2021 at 4:45pm — 2 Comments
वक़्त मिलता है कहाँ
आज के मौसुल में
रक़ीबा दर - ब - दर
डोलने का हुनर मंद है
ये ख़ाक सार
इक अदद पेट ही है
जिसने न जाने कितनी
जिंदगियां लीली है
तुखंम उस पर कभी भरता नहीं
हर वक्त सुरसा सा
मुँह खोल के रखता है
न जाने किस कदर
इसमें ख़ज़ीली हैं।
ईंते ख़ाबां मुलम्मा कौन सा
इस पर चढ़ा होगा
दिखाई भी तो नहीं देता
मगर इक बात मुझको
इसके जानिब ये ज़रुर कहनी है।
अगरचे ये नहीं होता
बा कसम ये दुनिया नहीं होती
ये जो…
Posted on February 2, 2021 at 4:30pm
बेबाक दिलबरी का आलम न पूँछिये।
हम से मोहब्बत का बस हुनर सीखिये ।
दिल में लगी हो आग तो सेक लीजिये।
वरना लगा के दाग यूँ सितम न कीजिये।
तारीफ़ कीजिये या के…
ContinuePosted on January 25, 2021 at 10:00pm — 2 Comments
जनाब अरुण कुमार जी,ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका धन्यवाद ।
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