174 members
393 members
27 members
376 members
97 members
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है
ये कैसा मौसम आया है जिसका रंग ज़ुदाई है
घूमते रहते हैं कई साये दिल के अँधेरे कमरे में
काट रही है पल पल मन को ग़म की रात कसाई है
जंगल जंगल घूम रहा हूँ लेकर अपनी बेचैनी
ख़ामोशी में शोर बपा है ये कैसी तन्हाई है
ना जाने क्या सोच रही है मन ही मन बैठी दुल्हन
आँखों में इक हैरानी है चेहरे पे रानाई है
शादी का अवसर लाया है ग़म के साथ…
ContinuePosted on October 5, 2024 at 10:40am
बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास
चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास
ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास
इस झूठे बाजार में, टूटी सब की आस
पल भर में मेला लगे, पल भर में वनवास
अभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खास
रहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पास
छोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रास
श्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसास
रंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास
(मौलिक व अप्रकाशित)
Posted on August 6, 2024 at 12:00am — 2 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम
हमारे दर्द-ए-जिगर का भी किसको क्या मालूम
करेगा दर्द से आज़ाद या जिगर छलनी
तुम्हारे तीर-ए-नज़र की किसे रज़ा मालूम
न जाने कैसे थमेगा ये सिलसिला ग़म का
कोई बताये किसी को हो गर ज़रा मालूम
झुकाएं कौन से दर पर ज़बीं ये दीवाने
वफ़ा का कौन सा घर है किसी को क्या मालूम
क़फ़स में क़ैद परिंदे की बेबसी देखो
न हश्र-ए-क़ैद पता है न है ख़ता…
ContinuePosted on July 14, 2024 at 11:30am — 10 Comments
२१२२ २१२२
ग़मज़दा आँखों का पानी
बोलता है बे-ज़बानी
मार ही डालेगी हमको
आज उनकी सरगिरानी
आपकी हर बात वाजिब
और हमारी लंतरानी
जाने किसकी बद्दुआ है
वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी
दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं
बुझ रही है ज़िंदगानी
कौन जाने कब कहाँ से
आये मर्ग-ए-ना-गहानी
ले के फागुन आ गया फिर
फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी
कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद…
ContinuePosted on April 1, 2024 at 5:30pm — 6 Comments
I need to have a word privately, please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com) Thanks.
आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन । मेरी गजलें आपको अच्छी लगीं यह हर्ष का विषय है । आपके इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।
मंच पर अपनी रचनाओं का आनन्द लेने का अवसर प्रदान करें और अन्य रचनाकारों का भी अपनी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करते रहिए ।
जनाब आज़ी साहिब,तरही मुशाइर: में शामिल सभी ग़ज़लों पर लाइव ही तफ़सील से गुफ़्तगू होती है, शिर्कत फ़रमाएँ, और कोई उलझन हो तो मुझसे 09753845522 पर बात कर सकते हैं ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |