For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सालिक गणवीर
  • Male
  • Chhattisgarh
  • India
Share on Facebook MySpace

सालिक गणवीर's Friends

  • Shekhar
  • नाकाम/naakaam
  • रवि भसीन 'शाहिद'
  • Samar kabeer
  • लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

सालिक गणवीर's Groups

 

सालिक गणवीर's Page

Latest Activity

सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
Apr 18
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 17, 2024
रामबली गुप्ता commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।"
Nov 16, 2024
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में 'तुमको' की जगह "तुझको" कर लें, शुतर गुरबा हो रहा है । 'वो गला ही मेरा दबा देंगे' इस मिसरे को यूँ कहें :- 'इससे पहले कि वो दबा…"
Nov 6, 2024
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म मुझ्को ख़ुद को कितना बता सभालूँ मैं (२)तू मुझे क़ैद करके मानेगा क्यों न पिंजरे में ख़ुद को डालूँ मैं (३)ज़िंदगी दूर है बहुत मुझसे ज़ह्र है पास क्यों न खा लूँ मैं (४)ज़िन्दगी लिफ्ट माँगती ही नहीं मौत माँगे तो क्या बिठा लूँ मैं (५)पाँव में एक दिन जगह देगा क्यों न सर पे उसे बिठा लूँ मैं (६)वो गला ही मेरा दबा देंगे आखिरी गीत क्यों न गा लूँ मैं (७)* मौलिक एवं अप्रकाशितSee More
Nov 1, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"२१२२-१२१२-२२/११२ज़ीस्त ख़ामोशी थी सदा भी थीदर्द भी थी वही दवा भी थी (१) और कितना मैं झेलता उसकोबेहया थी वो बेवफ़ा भी थी (२) इक झिझक-सी थी उसके चहरे पर"कुछ मेरी आँख में हया भी थी"(३) कोई तुमसा नहीं था महफ़िल मेंथी वहाँ हूर अप्सरा भी थी…"
Sep 28, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"भाई साहब, न दुआ न सलाम! ऐसे कौन टिप्पणी करता है जी.?"
Sep 27, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"२२१-१२२१-१२२१-१२२ मर जाने से पहले तो उतारा नहीं जाताये बोझ तो जीवन का सँभाला नहीं जाता (१) तुम तोड़ तो सकते हो कली शाख से लेकिनख़ूशबू को कभी फूल से छीना नहीं जाता (२) हर चीज तो मिल जाती है बाज़ार में लेकिन"इज्जत को दुकानों में खरीदा नहीं…"
Aug 28, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीया  Richa Yadav जी आदाबअच्छी ग़ज़ल कही है आपने । बधाई स्वीकार करें। सुधार की गुंजाईश बरक़रार है"
Aug 28, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय भाई  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' अच्छी ग़ज़ल कही है आपने । बधाई स्वीकार करें। अमित जी से सहमत"
Aug 28, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय भाई  Sanjay Shukla जीअच्छी ग़ज़ल कही है आपने । बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीअच्छी ग़ज़ल कही है आपने । बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"भाई अमित जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-165
" २२१-१२२१-१२२१-१२२ मर जाने से पहले तो उतारा नहीं जाताये बोझ तो जीवन का सँभाला नहीं जाता (१) तुम तोड़ तो सकते हो कली शाख से लेकिनख़ूशबू को कभी फूल से छीना नहीं जाता (२) हर चीज तो मिल जाती है बाज़ार में लेकिन"इज्जत को दुकानों में खरीदा नहीं…"
Aug 28, 2024
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"१२२-१२२-१२२-१२ तू ग़म भेज दे या ख़ुशी भेज देजो है पास तेरे वही भेज दे (१) मेरी ज़ीस्त में है अँधेरा बहुतज़रा सी इधर रौशनी भेज दे (२) हूँ सहरा में पानी पिला दे ज़रानहीं कह रहा मैं नदी भेज दे (३) था वादा किया आएँगे अच्छे दिनहै कल किसने देखा अभी भेज दे…"
Oct 27, 2023
सालिक गणवीर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158
"भाई नादिर ख़ान जी सादर अभिवादन उम्दः तरही ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें।"
Aug 25, 2023

Profile Information

Gender
Male
City State
Bhilai, Chhattisgarh
Native Place
Bhilai
Profession
Retired from SAIL,as a Senior Electrical engineer
About me
Reading,writing and photography were my hobbies and after retirement I am totally indulged to fulfill my dreams.

सालिक गणवीर's Blog

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२



और कितना बता दे टालूँ मैं

क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)

छोड़ते ही नहीं ये ग़म मुझ्को

ख़ुद को कितना बता सभालूँ मैं (२)

तू मुझे क़ैद करके मानेगा

क्यों न पिंजरे में ख़ुद को डालूँ मैं (३)

ज़िंदगी दूर है बहुत मुझसे

ज़ह्र है पास क्यों न खा लूँ मैं (४)

ज़िन्दगी लिफ्ट माँगती ही नहीं

मौत माँगे तो क्या बिठा लूँ मैं (५)

पाँव में एक दिन जगह देगा

क्यों न सर पे उसे…

Continue

Posted on October 31, 2024 at 4:35pm — 3 Comments

ग़ज़ल : लड़ते झगड़ते रहते हैं यारो सभी से हम....

२२१-२१२१-१२२१-२१२

लड़ते झगड़ते रहते हैं यारो सभी से हम

मिलते हैं दुश्मनों से बड़ी सादगी से हम(१)

चक्कर लगाता रहता है दुनिया का एक शख़्स

आगे निकल न पाए तुम्हारी गली से हम (२)

कैसे बिताएँ वक़्त ज़रा सा भी उनके साथ

वो हैं नये समय के पुरानी घड़ी से हम (३)

मिलना है जिसका हक़ उसे धेला नहीं मिला

बाँटे गए हैं मुफ़्त में ही रेवड़ी से हम (४)

जब भी छुपाई हमने कहीं पर तुम्हारी बेंत

पीटे गए हमेशा हमारी छड़ी से हम…

Continue

Posted on July 5, 2023 at 5:23pm — 2 Comments

झूठ बोले हैं न जाने कितने.......ग़ज़ल- सालिक गणवीर

2122-1122-22/112

झूठ बोले हैं न जाने कितने

उसको आते हैं बहाने कितने (1)

मैं किसी से भी तो नाराज नहीं

आ गए लोग मनाने कितने (2)

अब भी लोगों के नई दुनिया में

हैं ख़यालात पुराने कितने (3)

एक भी लफ़्ज मुझे याद नहीं

याद आते हैं वो गाने कितने (4)

घर जला कोई बुझाने न गया

आ गए आग लगाने कितने (5)

साथ आया न निभाने कोई

रस्म आएंँगे निभाने कितने (6)

अब कहीं पर तू ठहर जा…

Continue

Posted on February 3, 2022 at 9:33am — 4 Comments

यही है शिकायत यही तो गिला है....ग़ज़ल ( सालिक गणवीर)

122-122-122-122

यही है शिकायत यही तो गिला है

चराग़ों तले क्यों अँधेरा हुआ है (1)

लुटाया है सब कुछ कहा जा रहा है

मैं ये सोचता हूँ मुझे क्या मिला है (2)

कभी सामने जो अकड़ता बहुत था

वही उसके क़दमों के नीचे पड़ा है (3)

न आगे कोई है न है कोई पीछे

बयाँ दे रहा बीच सबके खड़ा है (4)

बड़ी मुश्किलों से कटी ज़िंदगी ये

न जाने मुक़द्दर में क्या क्या लिखा है (5)

ख़ुशी के दो पल हाथ आते नहीं पर

ये ग़म है कि…

Continue

Posted on December 24, 2021 at 11:00pm — 4 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service