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गीत -2

सुनाएये कोई शोक -गीत

आज मन उदास है ॥

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



फूलों का रंग भी फीका

भौरे भी दहशतज़र्द है

सब जगह उजड़ा हुआ चमन है

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



चलो ,खोलता हू वे सभी परतें

जो पूरी न सकी तुम्हारी हसरतें

किससे कहू , किससे वयां करूं

आज खोता हुआ हर बचपन है

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



कुछ चंदे दे दो भाई

महंगाई की मार से

मरने वालों के लिए

खरीदना आज कफ़न है

भरिये… Continue

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 12:53pm — 3 Comments

Gzal

इक तेरे तसव्वुर ने महबूब यूं संवार दी ज़िन्दगी



कि तेरे बगैर भी हमने हँस कर गुजार दी ज़िन्दगी



राहें -मुहब्बत में दर्दो -ग़म देने वाले बेदाद सुन



तेरी इस सौगात के बदले हमने निसार दी ज़िन्दगी



तमाम उम्र यूं रखा हमने अपनी साँसों का हिसाब



जैसे किसी सरफ़िरे ने ब्याज़ पर उधार दी ज़िन्दगी



बात मुक़दर की जब आये शिकवा -गिला बेमानी है



जिसने तुझे गुल बनाया उसी ने मुझे ख़ार दी ज़िन्दगी



तूं ही बता ऐ ख़ुदा उसकी आतिश -अफ़सानी… Continue

Added by asha pandey ojha on June 27, 2010 at 10:16am — 9 Comments

गीत -1

गीत लिखने का दुः साहस किया हू ,आप ही लोग बताएं कैसा लगा । पति -मिलन के पहले की स्त्रियोचित कल्पना , मगर उनके लिए नहीं जिनका लव -आफेयर चल रहा है





गीत -1

आज सजने की बेला है , सज लू सजन

मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥



आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहुं

गा रही है , ये लज्जा कहां से कहुं

गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन

मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥



पलकों की छावं में हू , कबसे बिठाये तुम्हें

जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे… Continue

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 7:52am — 1 Comment

महगाई मारक यन्त्र

मेरे पास

एक महगाई यन्त्र है

यन्त्र क्या , मन्त्र है ॥



बहू-बेटियों से कहें

भारतीय संस्कृति को धयान में रखें

सोमबार /मंगलवार /रविबार को

उपवास करे

भगवन भी खुश

पति भी खुश

और होनेवाले समधी भी खुश

स्लिम बॉडी की बहू मिलेगी ॥



फिर ,

महंगाई, हमलोगों की क्या

हमलोग महगांई की कमर तोड़ देंगे ॥



कुछ दिनों तक ऐसा करेगें

हमलोग

सोमालिया देश के वासी जैसे दिखेगें

संयुक्त राष्ट्र का ध्यान टूटेगा

मुफ्त का गेहू… Continue

Added by baban pandey on June 26, 2010 at 9:04pm — 1 Comment

कितना बदल गया इंसान

जाने क्या हो गया है
आजकल के इंसान को .
पेड काट के आता है
बिल्डिंग बना जाता है|

मार्बल मकराना पत्थर
खूब अच्छे से पहचानता है
बस बुढे बाप की
बढ़ती पथरी नहीं देख पता |

स्वार्थ जलन मोह धन वासना
लक्ष बन जाता है
गौर से देखो यारो इंसान
जानवर से भी पीछे नज़र आता है |



लेखक :- आनंद वत्स .

सह्रदय आभार- आदरणीय बब्बन पाण्डेय जी ..आपसे प्रेरणा मिली है |

Added by Anand Vats on June 26, 2010 at 3:00pm — 4 Comments

अब गोरैया कहां जायेगी

(महानगरों की आवास समस्या पर ...)

पहले

घर के आँगन में भी

बना लेती थी

गोरैया अपना घोसला ॥



दाने की खोज में

भूलकर/भटककर

पहुँच गयी एक गोरैया

महानगर में ॥



पेड़ नहीं थे वहां

कहां बनाती अपना घोसला ॥



बिजली का खम्भा ही

एकमात्र विकल्प था

तिनका -तिनका जोड़ कर

बनाया अपना घोसला ॥



फिर एक दिन

बिजली कर्मियों ने

नष्ट कर दिया उसका घोसला ....

अंडे फूट गए ॥

अब गोरैया कहां जायेगी… Continue

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 11:00pm — 5 Comments

मानवता का अपहरण

यादों के समंदर में जब और जितनी बार डूबकी लगाया हूँ उतनी ही बार ईश्वर की असीम कृपा से कुछ न कुछ मिलता ही रहा है . यादें कुछ तो माँ के आँचल के समान ठंडक देने वाली होती हैं, कुछ यादें तो मन का मानों सन्धिविचेद कर देती रही हो भला इस मनोदशा को ईश्वर के अलावे कौन जान पाया है ! अगर कोई फरिश्ता उस मनोदशा को जानने की कोशिश भी करता है तो शायद इस संसार में उनकी गिनती एक अपवाद ही बन कर रही गयी हो . बचपन में माँ -बाप ,गुरुजनों से जो प्यार और शिक्षा मिली वो तो गंगाजल के सामान पवित्र था .आज भी सोचता हूँ तो… Continue

Added by Devesh Mishra on June 25, 2010 at 8:00pm — 3 Comments

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दिल में उतर जाओगे ,

हर कदम पर साथ में पाओगे ,

मगर इसके लिए कुछ करना होगा ,

दो शब्द प्यार के बोलना होगा ,

भूलना होगा वो सब नफरत भरे शब्द ,

भूलने के बाद सोचने की जरुरत नहीं ,

कारण, नफ़रत सोचने के लिए नहीं होती,

सोचने के लिए तो बस प्यार होता हैं ,

मेरी बातो पे विश्वास ना हो तो ,

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दिल में उतर जाओगे,

( राणा जी के सुझाव के अनुसार यह पोस्ट प्रबंधन स्तर से एडिट कर वर्तनी और…

Continue

Added by Neet Giri on June 25, 2010 at 7:30pm — 9 Comments

इस मुस्कुराहट का राज ,

मुस्कुराहट का राज़



मैं मुस्कुरा कर स्वागत करती हूँ ,

और वो हरदम पूछते हैं ,

इस मुस्कुराहट का राज़ ,

और मैं कहती हूँ ,

मैं हर दम खुश रहती हूँ ,

कारण गम मेरा हमदम नहीं हैं ,

खुशियों से हमने दोस्ती की हैं ,

अगर आप रोता हुआ चेहरा देखेंगे ,

और फिर करेंगे आप सवाल ,

क्या दुःख हैं हमें बतायो,

और मैं अपने दोस्तों को ,

अपने दुःख से दुखी न करूंगी ,

इसलिए आप को इस सवाल का ,

मौका नहीं दूंगी ,

हरदम खुश रहूंगी ,

अब समझ गए… Continue

Added by Neet Giri on June 25, 2010 at 6:30pm — 4 Comments

मैं खरगोश नहीं बनना चाहता

बनते -बिगड़ते
संबंधों की आपा-धापी में
मैं खो जाता हू ॥

हड़बड़ी के चक्कर में
प्रेम खोजने के बदले
नफरत खोज लेता हू ॥

रिंग पहनाने को
शादी में बदल पाता
उससे पहले तलाक खोज लेता हू ॥

इसलिए .....
मैं अब
जिंदगी के रेस में
खरगोश नहीं ,
कछुआ बन कर ही
मंजिल तक जाना चाहता हू ॥

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 9:20am — 5 Comments

मैं तुम्हे पढना चाहता हु ...

तुम्हारी बातें

एक -एक शब्द जैसे ॥



श्वासों का आना -जाना

किताब के पन्ने

पलटने जैसा ॥



तुम्हारी मुस्कराहट

कविता पढने जैसी ॥



तुम्हारी हँसी

ग़ज़ल की पंग्तिया ॥



तुम्हारी उम्र का

हर गुजरा वक़्त

एक अध्याय समाप्त होने जैसा ॥



तुम्हें समझना

एक समझ न आने वाली

रहस्यमई कहानी जैसा ॥



सचमुच, तुम्हें पढना

एक किताब पढने जैसा ॥



हे ! प्रिय !!!

मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन… Continue

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 7:45am — 4 Comments

मुक्तिका: ज़िन्दगी हँस के.... ---संजीव 'सलिल'

आज की रचना : मुक्तिका:

:संजीव 'सलिल'





ज़िन्दगी हँस के गुजारोगे तो कट जाएगी.



कोशिशें आस को चाहेंगी तो पट जाएगी..





जो भी करना है उसे कल पे न टालो वरना



आयेगा कल न कभी, साँस ही घट जाएगी..





वायदे करना ही फितरत रही सियासत की.



फिर से जो पूछोगे, हर बात से नट जाएगी..





रख के कुछ फासला मिलना, तो खलिश कम होगी.



किसी अपने की छुरी पीठ से सट जाएगी..





दूरियाँ हद से न ज्यादा हों 'सलिल'… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 24, 2010 at 10:58pm — 1 Comment

अपना दुःख किससे कहू मैं ,

अपना दुःख किससे कहू मैं ,

यहा कौन हैं सुनने वाला ,

हर तरफ फैला अन्धियारा ,

धधक रही दहेज की ज्वाला ,



बेटी के बाप तो हमभी हैं ,

बड़ी मुश्किल से पढ़ा पाए ,

हम खाय आधपेट मगर ,

बेटी को हम बी कॉम कराए ,



लड़का बढ़िया खोज रहा हु ,

दहेज़ के बिना हैं परेशानी ,

अब सोचता हु क्यों पढ़ाया ,

जन्मते क्यों नहीं नमक खिलाया ,



मर गई होती ये तब ,

परेशानी ये ना आती अब ,

ये लड़का वालो जरा समझो ,

हम भी पढाये ये तो समझो… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on June 24, 2010 at 4:00pm — 5 Comments

एक मृत लड़की की चिठ्ठी

मेरे पापा ने

माँ का गर्भ जांच कराया

सांप सूंघ गया उन्हें

शुक्र हो डाक्टर का

उन्होंने कहा ...

"एक ही बार माँ बन सकती है

आपकी पत्नी "

भूर्ण -हत्या से बच गयी मैं ॥



मेरी माँ ने

सिल्क साडी पहननी छोड़ दी

शौक -मौज फुर्र्र

मेरे विवाह की चिंता में

जन्म से ही ॥



पढाई के दौरान

प्यार हो गया एक लड़के से

शादी का लालच दिया उसने

माँ -पिता को खेत न बेचना पड़े

दहेज़ के लिए

यह सोच , भाग गयी उसके साथ… Continue

Added by baban pandey on June 24, 2010 at 4:00pm — 3 Comments

"एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर

पहले वह रोज आती थी

कभी बरामदे के मुंडेर पर बैठती

कभी खिड़की पर

और कभी-कभी तो

हद ही हो जाती जब वो

कमरे के अन्दर तक आ जाती ।



रोज सबेरे

जब उसकी आवाज सुनते

तब लगता

कि सुबह हो गई है

तब शुरू हो जाता

हमारा रोजनामचा ।



दिन ऐसे ही

रोज गुजरते रहे

वह रोज आती रही

हम रोज उसे देखते रहे

फिर एक दिन अचानक

लगा कुछ " मिसिंग" है ।



फिर अखबार में पढ़ा

गौरैया "एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर है

एक सदमा… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 24, 2010 at 3:11pm — 3 Comments

नदी की चाहत और हम

मित्रो, यह कोई कविता नहीं , बल्कि कविता के रूप में नदियों से होने वाले खतरे के प्रति मित्रो को आगाह करती है ..शायद आपको अच्छी लगे ...चुकी मैं इस छेत्र से जुड़ा हू ..तो लिखना मेरा फ़र्ज़ है ..



सर्पीली रूप में बहना

मेरी नियति है ॥

बाँधने की कोशिस में

उग्र हो जाती हू ॥

किनारे का बाँध तोड़

निकल जाना चाहती हू ...

फिर पूछो मत ...

कई सभ्यता /संस्कृतियों के

विनाश का कारण बन जाउगी ॥



बहना चाहती हू

जैसे , उन्मुक्त उड़ना चाहती है

पिंजरे का… Continue

Added by baban pandey on June 24, 2010 at 10:48am — 1 Comment

दे दे

जिसमे शब्द नही, हो चेहरा तेरा ला मुझे वो किताब देदे

जो बहाएँ हें हर पल मेने, मेरे इन आंसूओं का हिसाब देदे



कोई पीता है आँसू यहाँ तो किसीने पिए हैं अपने सारे गम

मैं तो हर रात यह कहता हू ला साकी थोड़ी और शराब देदे



अब देगी या तब देगी यही सोच कर काट दी उमर अपनी मैने

जो पूछा था तुझसे मैने अब तो मेरे उस सवाल का जवाब देदे



नही पता तुझे काँटों का चुभना दर्द नही देता थोड़ा भी मुझे

ला मुझे तेरे बदन की खुश्बू वाला,तुझसा हसीन एक गुलाब देदे



कहती… Continue

Added by Pallav Pancholi on June 24, 2010 at 1:31am — 2 Comments

मुक्तिका: ...आँख का पानी. ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



आँख का पानी



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

आजकल दुर्लभ हुआ है आँख का पानी.

बंद पिंजरे का सुआ है आँख का पानी..



शिलाओं को खोदकर नाखून टूटे हैं..

आस का सूखा कुंआ है आँख का पानी..



द्रौपदी को मिल गया है यह बिना माँगे.

धर्मराजों का जुआ है आँख का पानी..



मेमने को जिबह करता शेर जब चाहे.

बिना कारण का खुआ है आँख का पानी..



हजारों की मौत भी उनको सियासत है.

देख बिन बोले चुआ है आँख का पानी..



किया… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 23, 2010 at 10:30pm — 2 Comments

ह्रदय की कोमलता मत खो देना.

जग की कटुता देख, ह्रदय की कोमलता मत खो देना.

मधुमास सुबास सुमन तन की, हर इक सांसों में भर देना.

तेरे होठों की लाली से, उषा का अवतरण हुआ.

तेरी जुल्फों की रंगत से, ज्योति का अपहरण हुआ.

अपने खंजन- नयन में रम्भे, अश्रु कभी मत भर लेना.

मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों में भर देना.

पाता है रवि रौनक तुमसे, चाँद- सितारे शीतलता.

पवन सुगंध- हिरण चंचलता, रसिक - नयन को मादकता.

जग को मिलता प्राण तुम्हीं से, तुम्हे जगत से क्या लेना.

मधुमास सुबास सुमन तन का,… Continue

Added by satish mapatpuri on June 23, 2010 at 3:53pm — 4 Comments

मैं सब कुछ जानता हू

मुझे हसाना तो नहीं आता

मगर, रुलाना आता है ..दोस्त !



मुझे स्तुति -गान नहीं आता

मगर ,निंदा -गान आता है ...दोस्त !



मुझे तैरना नहीं आता

मगर , डुबाना आता है ....दोस्त !



मुझे धोती पहनाना नहीं आता

मगर , नंगा करना आता है ...दोस्त !



मैं गाली नहीं सुन सकता

मगर ,मगर गाली देना आता है ...दोस्त !



मुझे लिखना नहीं आता

मगर ,गलतियां निकाल लेता हू ...दोस्त !



सच में ,

मैं जानता कुछ नहीं ...मेरे दोस्त

फिर भी ,… Continue

Added by baban pandey on June 23, 2010 at 3:35pm — No Comments

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