शाखें गुल ख्वाब में खिली है अभी
इश्क में चोट ये नई है अभी
दिल है नादान कोई समझाये
आबरू -ए-वफ़ा बची है अभी
इस लुटे घर में कैसी आबादी
गैरों के सदके में बसी है अभी
बंध गए हैं हवा के पर सारे
क्यों दुआ बे असर हुई है अभी
राज नजरों नें आज जान लिया
गिरह ये कौन सी कसी है…
ContinueAdded by kanta roy on January 27, 2016 at 12:00am — 6 Comments
Added by kanta roy on January 23, 2016 at 10:34am — 7 Comments
Added by kanta roy on January 22, 2016 at 9:51pm — 5 Comments
भव्य आॅफिस। उसका पहला साक्षात्कार ...... , घबराहट लाजमी था । इसके बाद दो साक्षात्कार और । पिता नहीं रहे। घर की तंगहाली ,बडी़ होने का फ़र्ज़ ,नौकरी पाना उसकी जरूरत , आगे की पढाई को तिरोहित कर आज निकल आई थी ।
" पहले कभी कोई काम किया है ? "
"जी नहीं , यह मेरी पहली नौकरी होगी । " गरीबी ढीठ बना देती है उसने स्वंय में महसूस किया ।
" हम्म्म ! इस नौकरी को आप क्यों पाना चाहती है ?"
" कुछ करके दिखाना चाहती हूँ , यहाँ मेरे लिए पर्याप्त अवसर है…
ContinueAdded by kanta roy on January 4, 2016 at 10:02am — 6 Comments
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