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क़मर जौनपुरी's Blog – January 2019 Archive (9)

गज़ल ( इश्क़ उम्मीद है)

2122, 1122, 1122, 22/112

सुर्ख़रू शोख़ बहारों सा चहक जाओगे

इश्क़ के बाग़ में आओ तो गमक जाओगे

गर इरादे हुए हैं बर्फ़ से ख़ामोश तो क्या

गर्मी-ए-इश्क़ में आ जाओ दहक जाओगे

इश्क़ की ताब का अंदाज़ा भला है तुमको

इसकी ज़द में ही फ़क़त आओ लहक जाओगे

रौनक-ए-इश्क़ की ताक़त को न ललकारो तुम

ख़ूब ज़ाहिद हो मगर तुम भी बहक जाओगे

इश्क़ ख़ुश्बू है इसे बांधने की ज़िद न करो

इसमें घुल जाओ तो दुनिया में महक जाओगे

इश्क़ के रंग व…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 23, 2019 at 5:30pm — 7 Comments

गज़ल

122 122 122 122

ग़ज़ल

****

है दुनिया में कितनी रवानी न पूछो

महकती है कितनी कहानी न पूछो

इसे चाँद के पार जाना था मिलने

कहाँ रह गई ज़िंदगानी न पूछो

रहा दर बदर आशिक़ी का मैं मारा

गई बीत कैसे जवानी न पूछो

तेरे इश्क़ में मैंने गोता लगाया

मिली मुझको क्या क्या निशानी न पूछो

मुहब्बत की रस्में निभाते निभाते

रहा चश्म में कितना पानी न पूछो

कभी ग़म के बादल कभी सर्द आहें

पड़ीं कितनी बातें भुलानी न…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 19, 2019 at 4:07pm — 8 Comments

ग़ज़ल: यही सवाल मेरे ज़ेह्न में उभरता है

1212,1122, 1212, 22/112

यही सवाल मेरे ज़ेह्न में उभरता है

वो ज़िंदगी के लिए कैसे रोज़ मरता है//१

चली है सर्द हवा पूस के महीने में

किसान खेत में रातों को आह भरता है//२

वो धीरे धीरे मेरे दिल मे यूँ उतर आया

कि जैसे चाँद किसी झील में उतरता है//३

अक़ीदा जोड़ के देखो किसी की उल्फ़त से

जहान सारा नई शक्ल में निखरता है//४

नया ज़माना है फ़ैशन का दौर है यारों

चमन में भौंर भी तितली सा अब सँवरता…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 5, 2019 at 1:00pm — 2 Comments

गज़ल : जाम का मौजज़ा दिखा साक़ी

2122 1212 22

ग़ज़ल

*****

जाम आंखों से अब पिला साक़ी

होश मेरे तू अब उड़ा साक़ी//१

ज़िन्दगी भर रहा हूँ मैं काफ़िर

अपना कलमा तू अब पढ़ा साक़ी//२

इल्म के बोझ से परेशां हूँ

इल्म सारे मेरे भुला साक़ी//३

रंग मेरा उतर गया अब तो

रंग अपना तू अब चढ़ा साक़ी//४

बेख़ुदी ज़ीस्त में समा जाए

जाम ऐसा कोई पिला साक़ी//५

ख़्वाब आएं तो सिर्फ तेरे हों

ख़्वाब से ख़्वाब तू मिला साक़ी//६

हो गया मैं फ़ना…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 4, 2019 at 9:30pm — 6 Comments

गज़ल: चले भीआओ मेरे यार दिल बुलाता है

1212, 1122, 1212,22/112

*****

चले भी आओ मेरे यार दिल बुलाता है

यूँ रूठकर भी भला अपना कोई जाता है//1

सज़ा भी दे दो मुझे अब मेरे गुनाहों की

उदास चेहरा तुम्हारा नहीं सुहाता है//२

उदास तुम जो हुए ज़िंदगी उदास हुई

कोई भी जश्न मुझे अब नहीं हंसाता है//३

तुम्हारे दम से ही हर सुब्ह मेरी ज़िंदा थी

हर एक शाम का मंज़र मुझे रुलाता है//४

नज़र फिराई जो तुमने वो एक लम्हे में

हर एक लम्हा ही ठोकर लगा के जाता…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 2:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल: सुहानी शाम का मंज़र अजीब होता है

1212 1122 1212 22/112

.

सुहानी शाम का मंज़र अजीब होता है

भुला दिया था जिसे वो क़रीब होता है//१

वो पाक जाम मिटा दे जो प्यास सदियों की

किसी किसी के लबों को नसीब होता है//२

मिली जहाँ में जिसे भी दुआ ग़रीबों की

नहीं वो शख़्स कभी बदनसीब होता है//३

वफ़ा से दे न सका जो सिला वफ़ाओं का

वही जहान में सबसे ग़रीब होता है//४

करे मुआफ़ जो छोटी बड़ी ख़ताओं को

वही तो जीस्त में सच्चा हबीब होता है//५

क़लम की…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 7:00am — 4 Comments

नज़्म : नया साल



122, 122, 122 122

नज़्म - नया साल

*************

उमंगों भरा हो ये मौसम सुहाना

नया साल लाये खुशी का तराना

सभी के दिलों में ये रौनक़ जगाए

गली गाँव बस्ती सभी मुस्कुराए

सफों में हमेशा रहे जो किनारे

नया साल उनकी भी किस्मत सँवारे

दिलों से कभी भी न मग़रूर हों हम

ख़ुदी के नशे में नहीं चूर हों हम

सभी को गले से लगाते चलें हम

जो रूठे हैं उनको मनाते चले हम

रहे प्यार का बोलबाला जहाँ…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 1, 2019 at 1:39pm — 3 Comments

गज़ल -( ज़िंदगी है तो हसीं ख़्वाब सजाने होंगे)



2122, 1122, 1122, 22/112

ग़ज़ल

*****

ज़िन्दगी है तो हसीं ख़्वाब सजाने होंगे

यूँ तो रोने के हज़ारों ही बहाने होंगे//१

पास आएगा नहीं चल के हिमालय ख़ुद ही

ज़ौक़ से अपने क़दम तुमको बढ़ाने होंगे//२

रेंगना है जो ज़मीं पे तो किनारे बैठो

आसमां छूना है तो पंख लगाने होंगे//३

आरज़ू कर तो नई सुब्ह मचल जाएगी

रात के ग़म भी मगर थोड़े भुलाने होंगे//४

पास में घर ही बना लेने का मतलब क्या है

फ़ासले दिल में जो हैं जड़ से…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 1, 2019 at 1:34pm — 2 Comments

गज़ल - प्यार को वो आज़माना चाहता है

2122, 2122, 2122

ग़ज़ल

******

प्यार को वो आज़माना चाहता है

आसमाँ धरती पे लाना चाहता है//१

बांधकर जंज़ीर वो पंछी के पर में

इश्क़ का कलमा पढ़ाना चाहता है//२

बात दिल की जब ज़ुबाँ पे आ गई तो

और अब वो क्या छिपाना चाहता है//३

आंखों में उसकी जफ़ा दिखने लगी तो

मुझपे वो तोहमत लगाना चाहता है//४

इश्क़ में जलकर के मैं कुन्दन हुआ, वो

आग से मुझको डराना चाहता है//५

क़त्ल पहले कर दिया वो…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 1, 2019 at 1:00pm — 5 Comments

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