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गीत पहले प्यार के मधु छंद सा
नीरजा के झर रहे मकरंद सा
नाव पर संगीत मांझी का मुखर
लोक को देता सुनायी मंद सा
है वही ब्रज और गोकुल की गली
नहीं दिखता किन्तु नंदन-नंद सा
छुप गया जो बांस के पीछे वहाँ
बादलों की ओट में है चंद सा
है मृगी बेचैन, व्याकुल भीत भी
बीहड़ों में कुछ दिखा है फंद सा
देवता सब हो गए है कैद अब…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 25, 2017 at 8:00pm — 5 Comments
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झिलमिल तारों सा सपनो के अम्बर में रहते हो क्यों ?
मलयानिल की मधु धारा सा मानस में बहते हो क्यों?
रेशम सी शर्मीली आँखे गाथा कहती है मन की
निर्ममता के अभिनय क्षण में अंतर्गत चहते हो क्यों?
अंतस में भावों की गंगा यदि पावन है पूजा सी
तो संकल्पों की वर्षा हो फिर पीड़ा सहते हो क्यों?
वृन्दावन की वीथी में तुमने ही झिटकी थी बाहें
फिर उन बाँहों को मंदिर की शाला में गहते हो…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2017 at 8:30pm — 21 Comments
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सियासत के जरिये हुआ है धमाका
जुबां बंद करिये हुआ है धमाका
किसे फ़िक्र है अब लहू फिर बहेगा
कि वहशत बजरिये हुआ है धमाका
कहाँ शांति रहती है सरहद पे यारों
ज़रा आँख भरिये हुआ है धमाका
है जाना जरूरी चले जाइयेगा
तनिक तो ठहरिये हुआ है धमाका
बड़ी देर से आप चश्मेकफस में
कि आहिस्ता ढरिये हुआ है धमाका
नहीं खून का खेल गर खेल सकते
तो…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2017 at 8:58pm — 13 Comments
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श्याम तेरी अलक में खो जाऊं
एक न्यारे खलक में खो जाऊं
नेह से आँख जो हुयी बोझिल
बंद तेरी पलक में खो जाऊं
तू अँधेरे में काश दिख जाये
और मैं उस झलक में खो जाऊं
रूप ऐसा कि थे सभी पागल
मैं उसी छवि-छलक में खो जाऊं
है सुना वह तेरा ठिकाना है
तो चलूँ उस फलक में खो जाऊं
(मौलिक /अप्रकाशित…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2017 at 8:00pm — 13 Comments
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