कितना कम चाहिए
नून, तेल, गुड के अलावा
फिर भी मिल नही पाता
मुंह बाये आ खड़ी होती है
लाचारी सी हारी-बीमारी
डागदर-दवाई में चुक जाती है
जतन से जोड़ी रकम
जबकि हमारी इच्छाएं है कितनी कम...
कितना कम चाहिए
रोटी और कपड़े के अलावा
फिर भी मिल नही पाता
आ धमकता वन-करमचारी
थाने का सिपाही
या अदालत का सम्मन
और हम बेमन
फंसते जाते इतना
कि छूटते इनसे बीत जाती उमर
दीखती न मुक्ति की कोई डगर.....
(मौलिक…
ContinueAdded by anwar suhail on February 26, 2015 at 10:08pm — 8 Comments
तुम चलाओ गैंती-फावड़ा
काटो पत्थर, बनाओ नाली
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी
यही है तुम्हारी नियति....
तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो
और आराम के पल का ज़िक्र हो...
तुम लिखो कविता-कहानी
फट जाए चाहे
माथे की उभरी नसें
फूट जाए ललाई…
Added by anwar suhail on February 15, 2015 at 7:30pm — 7 Comments
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