कभी चाह थी बहुत दिल मे
कि छू लूँ मैं भी बढ़ा के हाथ
मिट्टी,हवा,पानी इन सब को
पीछे छोड़ शून्य को
जिंदगी को चाह थी भरपूर जीने की
थी ललक, कुछ भी कर गुजरने की
जिंदगी एक किताब खूबसूरत थी
जिसे पढ़ने की प्यार से तमन्ना थी
फिर घेरा ऐसा बादलों ने निराशा के
खुद से बातें करती,हंसती,रोती,बावली
सी, ना चाह रही जीने की ना…
Added by Meena Pathak on February 28, 2013 at 8:30pm — 21 Comments
इधर -…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 19, 2013 at 1:30pm — 31 Comments
आरती की थाली
लिए हाथों में
जाने कब से
निहार रही हूँ बाट ....
आएगी वह
जब सिमटी लाल-जोड़े में ,
मेहँदी रचे हाथों…
Added by Meena Pathak on February 18, 2013 at 2:00pm — 26 Comments
आज सुबह उठ कर घर का काम निपटाया बेटे को स्कूल भेज दिया | पतिदेव की तबियत कुछ ठीक नही तो वो अभी सो ही रहे थे |मैंने अपनी चाय ली और किचेन के दरवाजे पर ही बैठ गई कारण ये था कि आज आँगन में बहुत दिनों बाद कुछ गौरैया आयी थीं वो चहकते हुए इधर उधर फुदक रही थीं और मैं नही चाहती थी कि वो मेरी वजह से उड़ जाएँ | तो मैं वहीँ बैठ के उनको देखते हुएचाय पीने लगी | थोड़ी देर बाद गोरैया तो उड़…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 1, 2013 at 5:00pm — 19 Comments
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