221 1222 221 1222
चिलमन को ज़रा ऊपर , नज़रों से उठा दूँ तो
पर्दों की हक़ीक़त क्या , दुनिया को बता दूँ तो
ख़्वाबों में ख़यालों में , जीने का मज़ा क्या है
कुछ रंग हक़ीकत के , आज उसपे चढ़ा दूँ तो
ये उखड़ी हुई सांसे , लगतीं हैं बुलातीं सी
उन सांसों में मै अपनीं , सांसें भी मिला दूँ तो
नज़रों ने कही थी जो , नज़रों से कभी मेरी
वो बात सरे महफिल , मैं आज बता दूँ तो
राहे वफा में…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 28, 2015 at 3:44pm — 27 Comments
22 22 22 22 22 2
ये कैसी महफिल में मुझको ले लाया
हर कोई लगता है गुमसुम, थर्राया
सब रस्ते इन शहरों के बातूनी हैं
गाँवों की गलियों को सब ने फुसलाया
साहिल साहिल बात चली है लहरों में
तूफ़ाँ ने जब तोड़ी कश्ती, इतराया
क्या जज़्बा हाथों से बहते रहता है ?
धोते ही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 24, 2015 at 10:07am — 22 Comments
' मौन को भी जवाब ही समझें '
2122 1212 112 / 22
***************************
जिन्दगी को हुबाब ही समझें
संग काँटे, गुलाब ही समझें
बदलियों ने चमक चुरा ली है
पर उसे माहताब ही समझें
शर्म आखों में है अगर बाक़ी
क्यों न उसको नक़ाब ही समझें
इक दिया भी जला दिखे घर में
तो उसे आफ़ताब ही समझें
ठीक है , टूटता बिखरता है
पर उसे आप ख़्वाब ही समझें
दस्ते रस से अगर है दूर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 19, 2015 at 10:25am — 42 Comments
2122 2122 2122 2122
कौन सागर को मथेगा, और सागर कौन होगा
हर तरफ है ज़ह्र फैला , आज शंकर कौन होगा
कौन पर्वत से लिपट के पूँछ-मुँह बांटे किसी को
सब की बरक़त चाहता हो, ऐसा विषधर कौन होगा
चिलमनों से झाँक के सारे नज़ारे देखते हैं
आज सड़कों पे उतरने घर से बाहर कौन होगा
आज ज़िंदाँ की सलाखें सोचतीं हैं देख कर ये
सर परस्ती सब को हासिल, आज अंदर कौन होगा
ये ज़मीं तो चाहती है सब बराबर ही रहें…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 16, 2015 at 10:00am — 24 Comments
॥ पछतावा ॥ ॥ अतुकांत ॥
कहने से नहीं
समझाने से नहीं
कोई अगर गंदगी को चख के ही मानने की ज़िद करे
कौन रोक सकता है
बातें
कर्तव्यों को छोड़
केवल अधिकारों तक पहुँच जाये तब
ज़हर धीमा हो अगर
अमृत तो नहीं कह सकते न
संस्कारों की भूमि में
रिश्ते दिनों से मानयें जायें
ये दिन , वो दिन
अफसोस होता है
पता नहीं क्यों
रोज़ रोते हुये देखता हूँ मैं सपने में
राधा-कृष्ण-मीरा को ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 14, 2015 at 8:55am — 16 Comments
221 2121 1221 2 2
रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं --
रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं
शम्सो क़मर - चाँद सूरज
तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं
सब ख़ाक हो चुका यहाँ कोई शरर नहीं
रो ले अगर, तेरा बिना रोये गुज़र नहीं
लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं
सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना
मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं
मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 11, 2015 at 8:30am — 29 Comments
॥ मै ईश्वर नहीं ॥
**********
मै ईश्वर नहीं
किसी ईश्वरीय व्यवहार की उम्मीदें न लगायें
मै तो क्या कोई भी चाहे तो ईश्वर नहीं हो सकता
बस दूसरों में ईश्वरीय गुण खोजने में लगे रहते हैं
हम , आप , सब
इसलिये, आज
ये ऐलान है मेरा ,
मुझमें केवल इंसानी गुण ही हैं
अच्छों से उनसे अधिक अच्छा
बुरों से भरसक बुरा
उनके व्यवहार के प्रत्युत्तर में भेज रहा हूँ
कुछ दिल से निकली मौन गालियाँ
कुछ आत्मा से निकली बद…
Added by गिरिराज भंडारी on February 10, 2015 at 10:00am — 21 Comments
ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर खोजिये
********************************
122 122 122 12
जहाँ ग़म न हो ऐसा घर खोजिये
जो हँसता मिले , बामो दर खोजिये
कोई बाइसे ज़िंदगी भी तो हो
इधर खोजिये या उधर खोजिये
बाइसे ज़िंदगी = ज़िन्दगी का कारण
गिरा एक क़तरा था सागर में कल
ज़रा जाइये अब असर खोजिये
अँधेरा , यक़ीनों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 9:00am — 29 Comments
ग़लत कोई और है , हम क्यों बदलें
********************************
बैलों का स्वभाव उग्र होता है , प्रकृति प्रदत्त
होना भी चाहिये
बिना उग्रता के भारी भारी गाड़ियाँ नहीं खींची जा सकती
जो उसे जीवन भर खींचना है
बिना शिकायत
गायें ममता मयी , करुणा मयी होतीं है
गायों की थन से बहता दूध ,
दर असल उसकी ममता ही है ,
अमृत तुल्य , कल्याण कारी
गायें उग्र नहीं होतीं
प्रकृति जिसे धारिता के योग्य बनाती है , उसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 11:00am — 18 Comments
व्यर्थ का अचंभा
***************
अचंभित न होइये
आपके ही माउस के किसी क्लिक का परिणाम है
आपके कंप्यूटर स्क्रीन पर आई ये फाइल
गलती कंप्यूटर से हो नहीं सकती ,
कंप्यूटर ही गलत , बिग़ड़ा चुन लिया हो तो और बात
अगर ऐसा है तो,
इस ग़लत चुनाव का कारण भी आप ही हैं
कंप्यूटर सदा से निर्दोष है, और रहेगा
फाइल खुलने में देरी- जलदी हो सकती है
कंप्यूटर की शक्ति, प्रोसेसर , रेम , हार्डडिस्क के अनुपात में
लेकिन ये तय है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 5:36pm — 19 Comments
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |