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कभी जरा सा मैं मुस्कुरा लूँ कभी तो दिल को करार आये
कभी तो भूले से इस चमन में उतर के फ़स्ल-ए-बहार आये
कि इससे पहले ये साँस टूटे सफ़ीना डूबे ये ज़िन्दगी का
चले भी आओ सनम कहीं से कहाँ कहाँ हम पुकार आये
बड़ी अदा से नजर झुकाये वो पूछते हैं कहाँ थे अब तक
सुनाये कैसे वो आपबीती वो ज़िन्दगी जो गुजार आये
हजार लम्हे हजार बातें जिन्हें तड़पता ही छोड़ आया
वो शाम वो गेसुओं के साये वो याद फिर बेशुमार…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 26, 2018 at 10:00am — 24 Comments
विश्व कविता दिवस पर महाभारत युद्धकाल में भगवान के वचनों को अपने शब्दों में पिरोने की कोशिश
रे रे पार्थ ये क्या करते हो?
धनु धरा पर क्यों धरते हो?
ओ शूरवीर मत हो अधीर
नैनों में क्यों भरते हो नीर
जीवन तो आना जाना है
चिरकाल किसे रह जाना है
मन में यूँ न मोह धरो
गांडीव उठाओ कर्म करो
मृत्यु बंन्धन से मुक्ति है
किस बात की आसक्ति है
धर्म विमुख हो पाप न कर
रक्षा कर संताप न कर
हे धनंजय हे महारथी
मत भूलो 'मैं' तेरा…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 21, 2018 at 4:30pm — 12 Comments
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खन खन करता कंगन है
साँसों में भी कम्पन है
मैं पत्थर हूँ राहों का
तू खुश्बू है चन्दन है
आहट है किन कदमों की
उर में कैसा स्पंदन है
आँखों ने क्या कह डाला
आकुल ये मन वंदन है
मन मन्दिर में आ जाओ
स्वागत है अभिनन्दन है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 17, 2018 at 8:30am — 20 Comments
पता नहीं उस मिटटी के बड़े से आले में क्या तलाश रहा था थका मायूस आठ बर्षीय मोहन?कुछ गंदे फटे पुराने कपड़े और नाना की टूटी पनय्यियों के सिवा कुछ भी तो नहीं था उस आले में।अचानक उसके उदास चेहरे पे एक तेज चमक उभरी..कुछ मिला था उसे..लेकिन ये वो चीज नहीं है जिसे वो मासूम तलाश रहा था ।परंतु शायद उससे भी ज्यादा जरुरी था वो धूल मिटटी से सना हुआ रोटी का टुकड़ा।लगता है किसी चूहे ने यहाँ छोड़ा होगा।चोर निगाहों से उसने दांये बांये देखा..नहीं कोई नहीं देख रहा है..अगले ही पल वो रोटी का टुकड़ा उसकी निकर की जेब…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 12, 2018 at 10:30am — 10 Comments
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