किस तरह रच रहे हो तुम ये संसार
हे ईश्वर...
तुम भी तो पुरुष ही हो...
जानते हो तुमसे, हम पुरुषों से
किस कदर खौफ खाती हैं स्त्रियाँ
एक अप्रत्याशित आक्रमण
कभी भी हो सकता है उन पर
इस डर से भयभीत होकर
रखती हैं पर्स में हथौड़ी
कोई सलाह देता तो रख लेतीं मिर्च-पाऊडर
और बाज़ार बनाकर बेचता
कोई स्प्रे, कोई धारदार छोटा चाकू
कोई करेंट पैदा करने वाला यंत्र
या सरकारें ज़ारी करतीं ढेर सारे हेल्पलाइन…
ContinueAdded by anwar suhail on March 9, 2015 at 7:30pm — 5 Comments
(अविजित राय की हत्या जैसे कायरतापूर्ण कृत्य ने दहला दिया...दुनिया भर के अल्पसंख्यकों को समर्पित कविता)
चेहरे-मोहरे
चाल-ढाल से जब
पहचाना न जा सका
तब पूछने लगा वो नाम
और मैं बचना चाह रहा बताने से नाम
फिर यूँ ही टालने के लिए
लिया ऐसा नाम
जो मिलता-जुलता हो उससे कुछ-कुछ
जिसे कहने से
बचा जा सके पहचान लिए जाने से
लेकिन ये क्या
अब पूछा जा…
Added by anwar suhail on March 6, 2015 at 10:03pm — 9 Comments
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