ताकि, बचा सकूँ हताशा से
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इसलिये नही कि ,
सतत चलती सीखने की प्रक्रिया से भागना चाहता हूँ
इसलिये भी नही कि ,
मेरे लिए सब कुछ जाना-जाना , सीखा-सीखा है ,…
Added by गिरिराज भंडारी on March 27, 2014 at 4:30pm — 3 Comments
अल्प विराम – पूर्ण विराम
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वो मै होऊँ या आप
छोटा मोटा विद्यार्थी
सबके अंदर जीता है ,
आवश्यक रूप से
और वो जानता भी है ,
जीते रहने की…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 26, 2014 at 7:00am — 12 Comments
11212 11212 11212 11212
हुये रोशनी के प्रतीक जो , वो अँधेरों से हैं घिरे हुये
ये कहो नही, जो कहे अगर, तो ये जान लें कि गिले हुये
न ही दर्द की कोई जात है, न ही शादमानी की कौम है
ये सियासतों की है साजिशें , जो हैं बांटने को पिले…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 11:00am — 19 Comments
1222 1222 122
फ़क़त दो चार पल की बात है ये
हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये
कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर
कहूँ क्या? आदमी की जात है ये
रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?
असल में पीठ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 18, 2014 at 5:00pm — 25 Comments
कह मुकरियाँ “ – पाँच
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मुझे छोड़ वो कहीं न जाये
इधर उधर की सैर कराये
साथ रहे जैसे हो धड़कन
क्या सखि साजन , नहीं सखि मन
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 10, 2014 at 9:00pm — 15 Comments
11212 11212 11212 11212
ये न पूछ शाम ढली किधर , तू ये देख चाँद निकल रहा
समाँ सुर्मयी था जो रात का , वो भी चंपई मे बदल रहा
***
ये तो हौसले की ही बात है ,बड़ी तेज धूप है चार सूँ
किसी सायबाँ का पता नही ,बिना आसरा कोई चल रहा
***…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 6:30pm — 16 Comments
2122 2122 2122 2122
गर यक़ीं ख़ुद पर नहीं हर रास्ता दुश्वार होगा
ख़्वाब मे भी फूल देखोगे वहाँ पर खार होगा
बात बाहर जब गई है तो कोई गद्दार होगा
कल्पनाओं से ही तो छपता नही अखबार होगा
चौक में जो रात को चिल्ला रहा था बात…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 2, 2014 at 10:00am — 24 Comments
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