For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Hariom Shrivastava's Blog – March 2019 Archive (9)

सार छंद -

1-

अर्थ धर्म या काम मोक्ष में, अर्थ प्रथम है आता।

फिर भी पैसा मैल हाथ का,क्योंकर है कहलाता।।

सब कुछ भले न हो यह पैसा, पर कुछ तो है ऐसा।

जिस कारण जीवनभर मानव,करता पैसा-पैसा।।

2-

बिना अर्थ सब व्यर्थ जगत में,क्या होता बिन पैसा।

निर्धन से वर्ताव यहाँ पर, होता कैसा-कैसा।।

धनाभाव ने हरिश्चंद्र को,समय दिखाया कैसा।

बेटे के ही क्रिया-कर्म को, पास नहीं था पैसा।।

3-

इसी धरा पर पग-पग दिखती,पैसे की ही माया।

पैसा-पैसा करते भटके, पंचतत्व की…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 29, 2019 at 12:21pm — 2 Comments

कुण्डलिया छंद- 'मतदान'

1-

जिसको भी मतदान का, भारत में अधिकार।

उसको चुननी चाहिए, एक कुशल सरकार।।

एक कुशल सरकार, वोट देने से बनती।

जब देते सब वोट, चैन की तब ही छनती।।

यह भी करें विचार, वोट देना है किसको।

उसको ही दें वोट, लगे अच्छा जो जिसको।।

2-

नेता कहें चुनाव में, वोटर को भगवान।

लोकतंत्र के यज्ञ में, समिधा है मतदान।।

समिधा है मतदान, यज्ञ में शामिल होना।

यह अमूल्य अधिकार, नहीं आलस में खोना।।

करके सोच विचार, वोट जो वोटर देता।

वह वोटर निष्पक्ष, सही चुनता…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 26, 2019 at 1:30pm — 6 Comments

बरवै छंद -

1-

हिरणाकुश नामक था, इक सुल्तान।

खुद को ही कहता था, जो भगवान।।

2-

जन्मा उसके घर में, सुत प्रहलाद।

जो करता था हर पल, प्रभु को याद।।

3-

दोनोों  के  थे  विचार, सब  विरुद्ध।

हिरणाकुश था सुत से, भारी क्रुद्ध।।

4-

बहिन होलिका पर था, ऐसा चीर।

जिसे पहनने से ना, जले शरीर।।

5-

मिला होलिका को तब, यह आदेश।

प्रहलाद को गोद लो, कटे कलेश।।

6-

बैठा गोद जपा फिर, प्रभु का नाम।

हुआ होलिका का ही, काम तमाम।।

7-…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 25, 2019 at 8:00pm — 2 Comments

कुण्डलिया छंद -

1-

होते आम चुनाव से, नेता सत्तासीन।

वोटों की खातिर सभी, खूब बजाते बीन।।

खूब बजाते बीन, करें बढ़चढ़कर वादे।

बन जाते हैं मूर्ख, लोग जो सीधे-सादे।।

चुनकर स्वयं अयोग्य,बाद में खुद ही रोते।

लोकतंत्र की रीढ़, यही मतदाता होते।।

2-

आए हैं अब देश में, फिर से आम चुनाव।

इसीलिए गिरने लगे, नेताओं के भाव।।

नेताओं के भाव, फिरें घर-घर रिरियाते।

चुन जाने के बाद, न जो सुधि लेने आते।।

करिए सही चुनाव, वोट यह व्यर्थ न जाए।

पाँच वर्ष पश्चात्, चुनाव…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 15, 2019 at 9:32am — 5 Comments

समान सवैया या सवाई छंद

इसमें 32 मात्राऐं व 16'16 पर यति तथा अंत में भगण अर्थात् (211) अनिवार्य है।

【इस छंद में नया प्रयोग करने का प्रयास। अंत में भगण की अनिवार्यता के कारण ‘दीर्घ’ मात्रा प्रयुक्त, अन्यथा सम्पूर्ण छंद में लघु वर्ण】

----------------------------------------

झटपट सजधजकर लचक-धचक, डगमग चलकर पथ महकाकर।

तन झटक-मटक नटखट कर-कर, नयनन सयनन मन बहकाकर।।

फिर घट कर गहकर सरपट चल, पनघट पर झट अलि सँग जाकर।

जल भरकर सर पर घट रखकर, पग-पग चलकर खुश घर आकर।।

(मौलिक व…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 13, 2019 at 7:31pm — 5 Comments

कुण्डलिया छंद-

बेटा-बेटी  में  किया, जिसने   कोई  भेद।
उसने मानो कर लिया, स्वयं नाव में छेद।।
स्वयं नाव में छेद, भेद  की  खोदी  खाई।
बहिना से ही दूर, कर दिया उसका भाई।।
कोई  श्रेष्ठ न तुच्छ, लगें  दोनों  ही  प्रेटी।
ईश्वर  का   वरदान,  मानिये   बेटा-बेटी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on March 11, 2019 at 10:30am — 7 Comments

कुण्डलिया छंद -

बेटा-बेटी    में    करें, भेदभाव    क्यों    लोग।
सबका अपना भाग्य हैं, जब हो जिसका योग।।
जब हो जिसका योग, और प्रभु की जो मर्जी।
कौन  श्रेष्ठ  या  हेय,  धारणा  ही   ये    फर्जी।।
पुत्री  हो   या   पुत्र, नहीं   इसमें   कुछ   हेटी।
दोनों    एक    समान, आज   हैं    बेटा-बेटी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on March 10, 2019 at 10:30am — 7 Comments

सरसी छंद - "अरुणोदय"

1-

धीरे-धीरे आसमान का, रंग हो रहा लाल।

अतिमनभावन दृश्य सुहावन,है अरूणोदय काल।।

पसरा था जो गहन अँधेरा, अब तक चारों ओर।

उसे चीरकर आयी देखो, प्राणदायिनी भोर।।

2-

नवप्रभात ने फूँक दिए ज्यों, सकल सृष्टि में प्राण।

मंगलमय हो गया सबेरा, मिला तिमिर से त्राण।।

जलनिधि की जड़ता का जैसे, किया सूर्य ने अंत।

जीव-जंतु जड़-जंगम जलधर, हुए सभी जीवंत।।

3-

सागर की गहराई में भी, जीवन है संगीन।

घड़ियालों के बीच वहाँ पर, प्राण बचाती मीन।।

सूरज के आ जाने…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 8, 2019 at 1:41pm — 6 Comments

-कह मुकरिंयाँ -

महाशिवरात्रि की शुभकामनाओं सहित कुछ

- कह मुकरिंयाँ-

---------------------

1-

उसे कहें सब औघड़दानी,

फिर भी मैं उसकी दीवानी,

बड़ा निराला उसका वेश,

क्या सखि साजन? नहीं महेश !!

2-

खाता है वह भाँग धतूरा,

फक्कड़नाथ लगे वह पूरा,

पर मेरा मन उस पर डोले,

क्या सखि साजन ? ना बम भोले !!

3-

लोग कहें वह पीता भंग,

मुझ पर चढ़ा उसी का रंग,

मेरा मन उस पर ही डोले,

क्या सखि साजन ? ना बम भोले !!

4-

भस्म रमाता वह …

Continue

Added by Hariom Shrivastava on March 4, 2019 at 2:00pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service