ख़्वाब ...
नींद से आगे की मंज़िल
भला
कौन देख पाया है
बस
टूटे हुए ख़्वाबों की
बिखरी हुई
किर्चियाँ हैं
अफ़सुर्दा सी राहें हैं
सहर का ख़ौफ़ है
सिर्फ
मोड़ ही मोड़ हैं
न शब् के साथ
न सहर के बाद
कौन जान पाया है
कब आता है
कब चला जाता है
ज़िस्म की
रगों में
हकीकत सा बहता है
अर्श और फ़र्श का
फ़र्क मिटा जाता है
सहर से पहले
जीता है
सहर से पहले ही
मर जाता है…
Added by Sushil Sarna on March 27, 2017 at 7:06pm — 5 Comments
सुकून .......
ढूंढता हूँ
अपने सुकून को
स्वयं की
गहराईयों में
छुपे हैं जहां
न जाने
कितने ही
जन्मों के जज़ीरे
अंधे -अक़ीदे
तसव्वुर में तैरते
कुछ धुंधले से
साये
साँसों के मोहताज़
अधूरी तिश्नगी के
कुछ लम्हे
ज़िस्म पर आहट देते
ख़ौफ़ज़दा
कुछ लम्स
खो के रह गया हूँ मैं
ग़ुमशुदा दौर के शानों पर ग़ुम
अपने सुकून को ढूंढते ढूंढते
क्या
कर सकूंगा…
Added by Sushil Sarna on March 23, 2017 at 10:00pm — 4 Comments
ई-मौजी ...
आज के दौर में
क्या हम ई-मौजी वाले
स्टीकर नहीं हो गए ?
भावहीन चेहरे हैं
संवेदनाएं
मृतप्रायः सी जीवित है
अब अश्क
अविरल नहीं बहते
शून्य संवेदनाओं ने
उन्हीं भी
बिन बहे जीना
सिखा दिया है
हर मौसम में
सम भाव से
जीने का
करीना सिखा दिया है
अब कहकहा
ई-मौजी वाली
मुस्कान का नाम है
ई-मौजी सा ग़म है
ई-मौजी से चहरे हैं
ई-मौजी से…
Added by Sushil Sarna on March 21, 2017 at 5:30pm — 8 Comments
एक शब्द ....
एक शब्द टूट गया
एक शब्द रूठ गया
एक शब्द खो गया
एक शब्द सो गया
एक शब्द आस था
एक शब्द उदास था
एक शब्द देह था
एक शब्द अदेह था
एक शब्द में अगन थी
एक शब्द में लगन थी
एक शब्द जनम था
एक शब्द मरण था
एक शब्द प्यास था
एक शब्द मधुमास था
एक शब्द चन्दन था
एक शब्द क्रंदन था
एक शब्द मोह था
एक शब्द विछोह था
शब्दों की भीड़ थी
हर शब्द में पीर थी
नीर था शब्दों में
शब्द शब्द…
Added by Sushil Sarna on March 19, 2017 at 4:20pm — 8 Comments
यादें......
यादें !
आज पर भारी
बीते कल की बातें
वर्तमान को अतीत करती
कुछ गहरी कुछ हल्की
धुंधलके में खोई
वो बिछुड़ी मुलाकातें
हाँ !
यही तो हैं यादें
ये भीड़ में तन्हाई का
अहसास कराती हैं
आँखों से अश्कों की
बरसात कराती हैं
सफर की हर चुभन
याद दिलाती हैं
जब भी आती हैं
ज़ख़्म कुरेद जाती हैं
अहसासों के शानों पर
ये कहकहे लगाती हैं
ज़हन की तारीकियों में…
Added by Sushil Sarna on March 18, 2017 at 9:30pm — 6 Comments
चला गया ...
हवा
शयन कक्ष के परदों से
खेलती रही
टेबल पर पड़ी मैग्ज़ीन के पन्ने
वायु वेग से
बार बार
फड़फड़ाते रहे
तन्हा से पड़े
काफी के मग
खाली होते हुए भी
अपने में
बहुत कुछ समेटे थे
समेटे थे
अपने अंदर
अकेलेपन से बातें करते
वो क्षण
जो काफी के मग को
अधरों से लगाए
कनखियों से निहारते हुए
आँखों ने आँखों में
बिताये थे
समेटे थे…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 15, 2017 at 10:00pm — 10 Comments
पावन हो …….
सुना था
मतलब के लिए
जमीनों और घरों के
बंटवारे हो जाते हैं
इस धन लोलुप दुनिया में
जीते जी
जिन्दा रिश्तों के
बंटवारे हो जाते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
इंसान के जहाँ में
इंसानों के बंटवारे हो जाते हैं
मगर ये क्या
आज अखबार के
एक कालम ने
दिल को द्रवित कर दिया
अपने को श्रवण कुमार
साबित करने के लिए
अपने मृत जन्म दाता को
श्रद्धान्जली देने के लिए
अखबार में अलग अलग विज्ञापन दे दिये…
Added by Sushil Sarna on March 7, 2017 at 9:08pm — 10 Comments
दर्द के निशाँ ....
दर
खुला रहा
तमाम शब
किसी के
इंतज़ार में
पलकें
खुली रहीं
तमाम शब्
किसी के
इंतज़ार में
कान
बैचैन रहे
तमाम शब्
तारीकियों में ग़ुम
किसी की
आहटों के
इंतज़ार में
शब्
करती रही
इंतज़ार
तमाम शब्
वस्ले-सहर का
मगर
वाह रे ऊपर वाले
वस्ल से पहले ही
तू
ज़ीस्त को
इंतज़ार का हासिल
बता देता है
मंज़िल से पहले…
Added by Sushil Sarna on March 3, 2017 at 1:39pm — 6 Comments
अनबहा समंदर ....
थी
गीली
तुम्हारी भी
आंखें
थी
गीली
हमारी भी
आंखें
बस
फ़र्क ये रहा
कि तुमने कह दी
अपने दिल की बात
हम पर गिरा के
जज़्बातों से लबरेज़
लावे सा गर्म
एक आंसू
और
हमें
न मिल सका
वक़्ते रुख़सत से
एक लम्हा
अपने जज़्बात
चश्म से
बयाँ करने का
चल दिए
अफ़सुर्दा सी आँखों में समेटे
जज़्बातों का
अनबहा
समंदर
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 1, 2017 at 1:05pm — 8 Comments
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