आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को
खैर जो भी हो, मुहब्बत से निभाना मुझ को.
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जीत कर मुझ से, मुझे जीत नहीं पाओगे
हार कर ख़ुद को है आसान हराना मुझ को.
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मैं भी लुट जाने को तैयार मिलूँगा हर दम
शर्त इतनी है कि समझें वो ख़ज़ाना मुझ को.
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आप मिलियेगा नए ढब से मुझे रोज़ अगर
मेरा वादा है न पाओगे पुराना मुझ को.
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ओढ़ लेना मुझे सर्दी हो अगर रातों में
हो गुलाबी सी अगर ठण्ड, बिछाना मुझ को.
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मुख़्तसर है ये तमन्ना कि अगर जाँ निकले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 10:42am — 26 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,
बहुत मुश्किल है ऐबों को मगर उस के निभा लेना.
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नज़र मिलते ही उस का झेंप कर नज़रें चुरा लेना,
मचलती मौज का जैसे किसी साहिल को पा लेना.
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बहुत वादे वो करता है मगर सब तोड़ देता है,
ये दावा भी उसी का है कि मुझ को आज़मा लेना.
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मलंगों सी तबीयत है सो अपनी धुन में रहता हूँ
पिये हैं रौशनी के जाम फिर ग़ैरों से क्या लेना.
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मिलन होगा मुकम्मल जब मिलेगी बूँद सागर से…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 12:09pm — 14 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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ज़ाहिदो! रूतबा इबादत-गाहों का अपनी जगह
पर सुकूँ की राह में है मैकदा अपनी जगह.
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इश्क़ में मजबूरियों को बेवफ़ाई क्यूँ कहें
चाहना अपनी जगह था भूलना अपनी जगह.
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सादा-दिल होने के दुनिया में कई नुक्सान हैं
पर किसी के काम आने का मज़ा अपनी जगह.
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आपने जब दिल लगाया ही नहीं, समझेंगे क्या?
जीतना हो शौक़ कोई, हारना अपनी जगह.
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इम्तिहाँ कब “नूर” का है इम्तिहाँ आँधी का है
रात भर जलता रहेगा यह दीया…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2018 at 12:30pm — 11 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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जो किताबों ने दिया वो फ़लसफ़ा अपनी जगह.
लोग जिस पर चल पड़े वो रास्ता अपनी जगह.
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फिर लिपटकर रो सकूँ मैं ये दुआ अपनी जगह
लौट कर आए न तुम मैं भी रहा अपनी जगह.
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हक़ बयानी का सभी को हौसला होता नहीं
संग हैं बेताब फिर भी आईना अपनी जगह.
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छोड़ कर मुझ को तेरा क्या हाल है यह तो बता
तेरे पीछे हश्र मेरा जो हुआ अपनी जगह.
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ये वो मंजिल तो नहीं है आज पहुँचे हैं जहाँ
गो तुम्हारे साथ चलने का मज़ा अपनी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2018 at 8:30pm — 19 Comments
२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२
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जिस्म है मिट्टी इसे पतवार कैसे मैं करूँ
कागज़ी कश्ती से दरिया पार कैसे मैं करूँ.
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ऐ अदू तेरी तरह गुफ़्तार कैसे मैं करूँ,
फूल बरसाती ज़बां को ख़ार कैसे मैं करूँ.
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चाबियाँ मैंने ही दिल की सौंप दी थीं यादों को
आ धमकती हैं जो अब, इन्कार कैसे मैं करूँ.
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रेत का घर है ये दुनिया तिफ़्ल सी उलझन मेरी
ख़ुद बना कर ख़ुद इसे मिस्मार कैसे मैं करूँ.
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रूह बुलबुल है जिसे ये क़ैद रास आती नहीं
है क़फ़स…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2018 at 7:15pm — 18 Comments
उस दिन जन सामान्य का उत्साह देखते ही बनता था. टीवी, रेडियो, अखबार ..सब जगह नेता जी की पहल का चर्चा था. आख़िर किसी ने तो बेटी के महत्व को समझ कर बेटी बचाओ जैसा महान नारा दिया था समाज को ...
आज जब दो बेटियों के बलात्कार की और एक आठ साल की बेटी की नृशंस हत्या की ख़बर पढ़ी तो पहले पहल यह रोज़मर्रा की ख़बर ही लगी ... फिर ख़बर की डिटेल्स में पढने को मिला कि नेताजी के दल के लोग बलात्कारियों के समर्थन में सड़क पर तिरंगा लेकर वन्दे मातरम का घोष कर रहे हैं तो अचानक मन…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 14, 2018 at 11:30am — 14 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२
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तेरी ख़ातिर कुछ न हम कर पाए प्यारी आसिफ़ा
क्या ये तेरी मौत है या फिर हमारी आसिफ़ा?
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एक हम हैं जो लड़ाई देख कर घबरा गए
एक तू जो सब से लड़ कर भी न हारी आसिफ़ा.
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ऐ मेरी बच्ची, ज़मीं तेरे लिए थी ही नहीं
सो ख़ुदा भी कह पड़ा वापस तू आ री आसिफ़ा.
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हुक्मराँ इन्साफ़ देगा ये तवक़्क़ो है किसे
क़ातिलों की भी मगर आएगी बारी आसिफ़ा.
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इतनी लाशों से घिरा मैं लाश क्यूँ होता नहीं
सोच कर क्यूँ तुझ को मेरा दिल है भारी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2018 at 5:28pm — 16 Comments
२२/२२/२२/२२/२२/२२/२२/२
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ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में
क़तरा ख़ुद को माने समुन्दर जाने किस नादानी में.
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कैसा हिटलर कौन हलाकू, साहिब गर्मी काहे की
इक दिन सब को जाना है इतिहास की कूड़े दानी में.
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तैर नहीं सकते थे माना लेकिन चल तो सकते थे
डूब मरे हैं कुछ बेचारे टखनों से कम पानी में.
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जादू का इक झूठा कपड़ा पहने फिरते हैं साहिब
और ठगों की पौ-बारह है उनकी इस उर्यानी में.
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पहले जिस के लफ्ज़ लबों के पार न…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 12:30pm — 35 Comments
२१२२ /११२२ /११२२ /२२
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पार करने हैं समुन्दर ये दिलो-जाँ वाले
और आसार नज़र आते हैं तूफाँ वाले.
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फ़ितरतन मुश्किलें; मुश्किल मुझे लगती हीं नहीं
पर डराते हैं सवाल आप के आसाँ वाले.
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तितलियाँ फूल चमन सारे कशाकश में हैं
एक ही रँग के गुल चाहें गुलिस्ताँ वाले.
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ये न कहते कि रखो एक ही रब पर ईमाँ
इश्क़ करते जो अगर गीता-ओ-कुरआँ वाले.
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जानवर हैं कई, इंसान की सूरत में यहाँ
शह्र में रह के भी हैं तौर बयाबाँ वाले.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 7, 2018 at 1:02pm — 20 Comments
२१२/ १२२२// २१२/ १२२२
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हाँ! सराब का धोखा तिश्नगी में होता है,
ग़लतियों पे पछतावा आख़िरी में होता है.
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तितलियों के पंखों पर चढ़ते हैं गुलों के रँग
ज़िक्र जब मुहब्बत का शाइरी में होता है.
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शम्स ख़ुद भी छुपता है देख कर अँधेरे को,
इम्तिहान जुगनू का तीरगी में होता है.
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बीज यादों के बो कर सींचता है अश्कों से
दिल ख़याल उगाता है जब नमी में होता है.
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जिस ख़ुदा की ख़ातिर तुम लड़ रहे हो सदियों से
काश ये समझ पाते वो सभी में…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 3, 2018 at 9:00pm — 12 Comments
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