कुडंली छंद
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु गुरु (यगण, मगण), यति ११-१०।
अँखियों से झर रहे,बूँद-बूँद मोती,
राधा पग-पग फिरे,विरह बीज बोती|
सोच रही काश मैं ,कान्हा सँग होती,
चूम-चूम बाँसुरी,अँसुवन से धोती|
मथुरा पँहुचे सखी ,भूले कन्हाई,
वृन्दावन नम हुआ ,पसरी तन्हाई|
मुरझाई देखता ,बगिया का माली,
तक-तक राह जमुना ,भई बहुत काली|
खग,मृग, अम्बर, धरा,हँसना सब…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 30, 2014 at 11:00am — 31 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
साधुओं के भेष में शैतान कितने
लूटते विश्वास के मैदान कितने
फितरतें इनकी विषैली अजगरों सी
डस चुके हैं जीस्त में इंसान कितने
इस सियासी दौर में गुलज़ार हैं सब
रास्ते जो थे कभी वीरान कितने
हाथ में इतनी मिठाई देख कर वो
भुखमरी से जूझते हैरान कितने
छीनना ही था हमेशा काम जिनका
आज देते जा रहे हैं दान कितने
हड्डियाँ फेंकी उन्होंने सामने…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 22, 2014 at 10:00am — 18 Comments
मनमोहन छंद : लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ८-६, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.
अब तक थी जो ,सुलभ डगर
आगे साथी,कठिन सफ़र
सँभल-सँभल कर ,रखें कदम
साथ चलेंगे ,जब- जब हम
सब काँटों को ,चुन-चुन कर
फूल बिछाएँ,पग-पग पर
आजा चुन लें ,राह नवल
जहाँ प्यार के ,खिलें कँवल
फूल हँसेंगे ,खिल-खिलकर
कष्ट सहेंगे, मिलजुलकर
पथ का होगा, सही चयन
सही दिशा में,…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 17, 2014 at 11:30am — 20 Comments
2122 2122 212
वक़्त की रफ़्तार तो पैहम रही
जिंदगी की लौ मगर मद्धम रही
बर्फ बनकर अब्र जो है गिर रहा
पीर की बहती नदी भी जम रही
ग़म भरे अशआर जिसमे थे लिखे
धूप में भी वो ग़ज़ल कुछ नम रही
टूट के बिखरे सभी वो आईने
रूप की चाहत जिन्हें हर दम रही
वक़्त रहते कुछ नहीं हासिल किया
सोचते हैं जिंदगी कुछ कम रही
कैसे कह दें वो जहाँ में खुश रहे
आँखे उनकी तो सदा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 15, 2014 at 9:30am — 31 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
रोक लो तूफ़ान चिंगारी भड़क फ़िर जाएँगी
नफ़रती लपटें जमीं से अर्श तक फ़िर जाएँगी
इन दरारों पे जरा आँचल बिछा कर छाँव दो
आंच पाकर बैर की वरना दहक फ़िर जाएँगी
अम्न- ओ-इंसानियत से चूर थी गलियाँ यहाँ
देख वो अपने उसूलों से भटक फ़िर जाएँगी
खाई जाती थी कसम जो दोस्ती के दरमियाँ
उस वफ़ा की पाक़ मीनारें चटक फ़िर जाएँगी
फिर झडेंगे शाखों से पत्ते ख़जां आये बिना
बिजलियाँ जब उन…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 8, 2014 at 11:00am — 14 Comments
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