2122 1122 22
ज़ोर तूफ़ान का चल जाने दो
मुझको लहरों पे निकल जाने दो
है मुख़ालिफ़ कि हवाओं का रूख
ठहरो कुछ देर सँभल जाने दो
फिर न दिल में कोई रह जाये मलाल
इक दफा दिल को मचल जाने दो
मोजज़ा हो न हो उम्मीदें हों मोजज़ा =चमत्कार
जी किसी तरह बहल जाने दो
आग आखिर ये बुझेगी तो ज़रूर
डर इसी आग में जल जाने दो
बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ
गिर के…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 27, 2014 at 10:00am — 21 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
उँगलियों पर हो निशाँ आँखों में पर पट्टी नहीं
मुल्क की जम्हूरियत बस इंतिखाबी ही नहीं
है यही मौका कि बदलें देश की तक़दीर हम
ये न फिर कहना पड़े उम्मीद ही बाकी नहीं
हाल क्या होगा हमारा गर्म होगी जब धरा
होगा आँखों में समंदर पर कहीं पानी नहीं
गिर पड़ा वो आखरी पत्ता शजर से टूट के
अब रही कोई बहारों की निशानी भी नहीं
सूख जायेगा चमन होगी हवा में आग सी
फूल होगा याद में…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 20, 2014 at 9:35am — 18 Comments
उसे मजदूरी में जितने रूपये मिले थे उसकी रोटियाँ खरीदी और खाने के बाद दो रोटियाँ बचा ली, उसने सोचा कल पता नहीं काम मिले या नहीं, इतने में उसकी नज़र एक बच्चे पर पड़ी वो उन रोटियो की तरफ कातर दृष्टि से देख रहा था। उसे दया आ गई, उसने रोटियाँ उस बच्चे को दे दी।
उधर - एक आम मध्यमवर्गीय परिवार में शादी थी मेहमानों के चले जाने के बाद काफी खाना बच गया था इतना कि कम से कम 20 भूखे पेट भर सकते थे। मेजबान से पूछा गया इस खाने का क्या करें ? ……………?
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by शिज्जु "शकूर" on April 5, 2014 at 8:30pm — 14 Comments
2122- 2122- 2122- 212
रात थी लेकिन अँधेरा उतना भी गहरा न था
सब दिखाई दे गया आँखो में जो पर्दा न था
झूठ की बुनियाद पर कोई महल बनता नहीं
झूठ आखिर झूठ है उसको तो सच होना न था
शोर था सारे जहाँ में इक लहर की बात थी
कोई दा'वा उस लहर का अस्ल में सच्चा न था
कहने को तो साथ मेरे कारवाँ था लोग थे
मैं वही था हाँ मगर वो दौर पहले सा न था
ये सफर गुज़रा बड़े आराम से तो अब तलक
आखिरश रुकना पड़ा मुझको कि…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2014 at 7:32pm — 28 Comments
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