ज्वालाशर छंद
१६ ,१५ पर यति अंत में दो गुरू (२२)
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संकीर्णताओं से बचाती, निष्काम कर्म भावना ही.
हो जायें प्रवृत्त मनुज सभी, अधार हो सदभावना ही.
कर्तव्य का बस बोध होवे,इच्छा न कुछ पाने की हो,
संकल्पना कहती सदा ये,आशा सुधर जाने की हो.
कोई मार्ग खोजें मुक्ति का,आशय जीवन का यही है.
सद्कर्म से सम्भव बने यह,विचार दर्शन का सही…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 23, 2012 at 3:30pm — 14 Comments
मेरा यार मुझसे जुदा हुआ,
मेरी जान जैसे निकल गई.
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
उसे चाहना या न चाहना
उसे पूजना या न पूजना
मेरी चाहतों का हिसाब क्या,
मेरी रूह भी हो विकल गई..
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
मेरी आह मुझमे ही मिल गई..
कोई…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 13, 2012 at 8:00pm — 23 Comments
वाणी वंदना
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रसना पर अम्ब निवास करो,
माँ हंसवाहिनी नमन करूँ.
सेवक चरणों का बना रहूँ,
नित उठ बस तेरा ध्यान धरूँ.
छंदों का नवल स्वरुप लिखूँ,
लेखनी मातु रसधार बने.
हो प्रबल काव्य उर वास करो,
हर छंद मेरा असिधार बने.
मन…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 7, 2012 at 11:00pm — 12 Comments
(गणबद्ध) मोतिया दाम छंद
सूत्र = चार जगण (१६ मात्रा) यानि जगण-जगण-जगण-जगण (१२१ १२१ १२१ १२१)
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दिखी जब देश विदेश अरीत.
दिखा शिशु भी हमको भयभीत .
तजें हम द्वैष बनें मनमीत.
लिखूँ कुछ काव्य अमोघ…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 5:30pm — 12 Comments
(मात्रिक छंद)
उल्लाला = १५,१३ मात्रा
(मैथिली शरण गुप्त जी ने इस छंद पर कई रचनाएँ लिखी है)
(तुम सुनौ सदैव समीप है,जो अपना आराध्य है.)
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नहीं बड़ा परमार्थ से अब , धर्म …
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 5, 2012 at 9:00pm — 29 Comments
(चतुष्क-अष्टक पर आघृत)
पदपदांकुलक छंद (१६ मात्रा अंत में गुरू)
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सपनों पर जीत उसी की है,
जिसके मन में अभिलाषा है.
वह क्या जीतेंगे समर कभी,
जिनके मन घोर निराशा है ..
चींटी का सहज कर्म देखो,
चढ़ती है फिर गिर जाती है.
अपनें प्रयास के बल पर ही,
मंजिल वह अपनी पाती है..
स्वप्न की उन्नत…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 3, 2012 at 3:00pm — 24 Comments
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