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Rahila's Blog – May 2017 Archive (3)

***मेरा कसूर ***(कविता)राहिला

माँ! ये तुमने क्या किया?

एक तुम ही तो थीं अपनी

और तुमने ही मुँह मोड़ लिया।

मेरे आगमन की सूचना से,

माना तुम निराश थीं।

पर इतना क्रूर निर्णय लोगी,

इसकी मुझे ना आस थी।

जब ये भयानक विचार आया

तुम्हारे मन में।

बड़ा असुरक्षित महसूस किया

मैंने तेरे तन में।

जब अनजाने हत्यार ने ,

मुझपर प्रहार किया था।

माँ! ,भय से मैंने तेरी ,

कोख को थाम लिया था।

पर कब तक उस दानव से ,

मैं खुद को बचा सकती थी।

प्रयत्न किया उतना… Continue

Added by Rahila on May 27, 2017 at 12:18pm — 2 Comments

***बदलते सुर***(लघुकथा)राहिला

"ये लो दो चेक ,बैंक में जमा कर देना"

दफ्तर के लिए निकल रहे अनुराग के हाथ में चेक थमाते हुए वह बोली।"कहाँ से आये?"

"भेजी दी दो रचनाएँ ,पुरुस्कृत हुयी तो मिले।"

"वाह ..,क्या बात है।,मुबारक हो भई!फिर तो पार्टी बनती है।घर बैठे कमाने लगीं तुम तो!"पति ने कुछ गर्वित होकर कहा, तो उसके होंठों पर फीकी सी मुस्कान तैर गयी।

आज उसने अपने शौक पर खर्च किये लम्हों की परिवार को पहली क़िस्त अदा की थी।

रात में जैसे ही कमरे में अनुराग आये उसने सकपका कर ,झगड़े की जड़ को किनारे रख… Continue

Added by Rahila on May 26, 2017 at 9:30pm — 5 Comments

भगौड़ों की कतार में(लघुकथा) राहिला

एक पन्द्रह, सोलह साल का लड़का, जिसका चेहरा, जुबान और आँखे बाहर निकलने के कारण विकृत हो चुका था

"लीजिये !,एक और भगौड़ा फांसी पर लटक कर चला आया है।"मृत्युलोक का लेखा -जोखा देखने वाले से स्वर्ग के दरोगा ने कहा।

"तो ले जाओ इसे भी और नर्क में डाल दो।जितनी जिंदगी लिखी थी।उतनी उम्र तक फांसी पर बराबर लटकाते रहो।और साथ ही इसके नीचे हड्डी पिघला देने वाली आग भी जला दी जाए ।"

"लेकिन इतनी सख्त दोहरी सज़ा..., क्यों?"दरोगा ,बालक की कम उम्र देख कर उसके लिए विचलित हो उठा।

"हाँ..!दोहरी… Continue

Added by Rahila on May 13, 2017 at 3:47pm — 13 Comments

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